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अयोध्‍या फैसले पर प्रभु चावला की राय

आज के इस ऐतिहासिक दिन का इस देश को वर्षों से इंतजार था. और जब यह फैसला आया है तो यह पूर्ण रूप से सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने वाला साबित होगा.

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आज के इस ऐतिहासिक दिन का इस देश को वर्षों से इंतजार था. और जब यह फैसला आया है तो यह पूर्ण रूप से सांप्रदायिक सौहार्द कायम करने वाला साबित होगा. जब इस मामले में सभी के लिए समाधान की बात की जा रही थी, तो अब माननीय जजों ने यह साफ कर दिया कि जिस स्‍थान पर रामलला की मूर्ति विराजमान है, वह जगह रामजन्‍म भूमि है और इसे हिन्‍दुओं को सौंप दी जानी चाहिए.

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लेकिन इस बीच कोर्ट ने स्‍थान के मालिकाना हक के मसले को छोड़ दिया है. इस फैसले के बाद राजनीतिक दल और अवसरवादी मंदिर और मस्जिद बनाने के लिए जमीन को लेकर विवाद करेंगे, जिसकी गुंजाइश कोर्ट ने छोड़ रखी है. यह फैसला निश्चित रूप अग्रगामी है, लेकिन इससे यह अनुमान लगाना काफी मुश्किल होगा कि आगे कोई और कठिनाई नहीं आएगी.

जब मैं पहली बार 1988 में अयोध्‍या गया था, तब से लेकर अब तक भारत काफी आगे निकल चुका है. उस समय वहां पर बाबरी मस्जिद मौजूद थी और वहां आप सांप्रदायिक तनाव महसूस कर सकते थे. 1992 के बाद मैं वहां तीन बार जा चुका हूं. पिछली बार 2008 में गया था. अंतिम बार का अनुभव पहली बार के अनुभव जैसा ही था-सुलह की बजाए टकराव का वातावरण.

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