यूपी चुनाव में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस में राहुल गांधी के साथ ही एक और नाम निशाने पर आया. वो था कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके का. नतीजों के दिन ही यूपी कांग्रेस के महासचिव उमेश पंडित ने आजतक से कहा कि हार के ज़िम्मेदार राहुल के साथ ही उनके रणनीतिकार पीके हैं. जिन्होंने सत्ताविरोधी लहर झेल रही सपा के साथ गठजोड़ कराया. चूंकि पीके राहुल की पसंद थे इसलिए खुलकर तो कोई कांग्रेसी कुछ नहीं बोल रहा लेकिन यूपी में पीके को मिली खुली छूट से प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं के साथ ही पार्टी के वरिष्ठ नेता भी नाखुश हैं.
दरअसल इन सभी नेताओं का तर्क है कि पीके प्रचार-प्रसार में अपनी भूमिका निभा सकते हैं लेकिन गठबंधन करना या नहीं करना एकसियासी फैसला होता है, जिसमें पीके का दखल नहीं होना चाहिए.
वो उदाहरण भी देते हैं कि पंजाब में पीके ने सिर्फ प्रचार-प्रसार का ज़िम्मा संभाला लेकिन उस सब पर अंतिम मुहर कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही लगती थी. पीके, कैप्टन और प्रदेश पर हावी नहीं थे वहीं यूपी में इसका उल्टा था. पीके ही गठबंधन से लेकर हर फैसले के सूत्रधार थे. इन नेताओं का कहना है कि हद तो तब हो गई जब पीके ही गठबंधन में सीटों पर फंसे पेंच को सुलझाने के लिए अखिलेश से बात करने गए.
ऐसे में यूपी चुनाव के बाद पीके भी यह सोचने के लिए वक़्त ले रहे थे कि इन हालात में आगे कांग्रेस आलाकमान के साथ काम करना है या नहीं. वहीं दूसरी तरफ राहुल भी अपने नेताओं की पीके को लेकर नाखुशी जान चुके थे लेकिन सूत्रों की मानें तो दोनों तरफ से आगे भी साथ काम करने का मन बनाया जा रहा है.
सूत्रों के मुताबिक अब राहुल पीके का इस्तेमाल एक और अहम सियासी सूबे में करने की तैयारी में हैं. वैसे इसके पीछे वजह भी है. दरअसल, पीके ने बतौर सियासी रणनीतिकार अपनी शुरुआत गुजरात से ही नरेंद्र मोदी के साथ की थी और सफलता हासिल की थी. उनके पास गुजरात का खासा अनुभव भी है इसीलिए राहुल उस अमुभव का फायदा आगामी गुजरात चुनाव में लेना चाहते हैं. साथ ही पीके भी गुजरात में बीजेपी को हराकर यूपी की हार का बदला लेना चाहते हैं.
राहुल और पीके की होने वाली अगली मुलाकात में इस पर अंतिम फैसला होने की उम्मीद है. ये तय होना है कि पीके की भूमिका और राज्य के कांग्रेसी नेताओं की भूमिका के बीच सामंजस्य कैसे बैठाया जाए जिससे यूपी जैसा हाल ना हो बल्कि पंजाब जैसी जीत हो. हालांकि इस बारे में ना ही पीके और ना ही कांग्रेस का कोई नेता खुलकर बोलने को तैयार है.