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सपा चीफ मुलायम सिंह से मिले प्रशांत किशोर, बिहार की तरह महागठबंधन की राह पर उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले महागठबंधन की कोशिशें तेज़ होती जा रही हैं. मंगलवार को कांग्रेस के चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की.

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यूपी में गठबंधन की सुगबुगाहट के बीच हुई मुलाकात
यूपी में गठबंधन की सुगबुगाहट के बीच हुई मुलाकात

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले महागठबंधन की कोशिशें तेज़ होती जा रही हैं. मंगलवार को कांग्रेस के चुनाव प्रबंधक प्रशांत किशोर ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की.

माना जा रहा है कि यह बातचीत गठबंधन के व्यापक दायरे के मद्देनज़र ही हो रही है. इससे पहले प्रशांत किशोर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव से भी मुलाकात कर चुके हैं.

आजतक ऑनलाइन को मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के कुछ आला नेताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उनकी पार्टी किसी जड़ता की शिकार नहीं है और अगर एक स्वस्थ गठबंधन बनने की स्थिति राज्य में पैदा होती है तो वो उसपर विचार कर सकते हैं.

हालांकि प्रशांत किशोर या कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि वो महागठबंधन के लिए ही मिल रहे हैं. लेकिन दोनों ने ही इसकी संभावना से इनकार भी नहीं किया है. माना जा रहा है कि सीटों के बंटवारे से लेकर प्रचार के बाकी पहलुओं पर कोई शुरुआती सहमति बनने के बाद ही किसी तरह की घोषणा की जा सकती है.

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यूपी में बिहार फार्मूला
ऐसा साफ दिखाई दे रहा है कि बिहार में महागठबंधन की ऐतिहासिक सफलता के बाद उसी फार्मूले को यूपी में दोहराने की तैयारी की जा रही है. अगर ऐसा हो पाता है तो भाजपा विरोधी दल सूबे में एक मज़बूत गठबंधन खड़ा कर पाने में सफल होंगे और चुनाव पर इसका व्यापक असर भी पड़ेगा.

कांग्रेस के पास कुछ दलित वोट और कुछ अगड़ों का वोट है. इसमें गैर जाटव दलित जातियां और कुछ अगड़े आते हैं. नीतीश कुमार के पास अति पिछड़ों को रिझाने का दमखम है तो मुलायम सिंह यादव के पास यादव और मुसलमान मतदाता है. अजीत सिंह इसमें जाटों के कुछ वोट जोड़ सकते हैं जो कई सीटों पर जीत के लिए निर्णायक हो सकता है.

अगर यह गठबंधन बन पाता है कि इससे मुसलमानों में यह संदेश जाएगा कि भाजपा को रोकने के लिए एक मज़बूत महागठबंधन यूपी में बन गया है. इस गठबंधन के कमज़ोर होने की गुंजाइश भी कम है क्योंकि सबसे कमज़ोर कड़ी मुलायम सिंह यादव हैं और उनके लिए अपने ही राज्य में डिसक्रेडिट होना उनकी पार्टी को महंगा पड़ेगा. ऐसे में अगर वो महागठबंधन में जाते हैं तो उसमें बने रहेंगे. यहां बिहार वाली स्थिति की पुनरावृत्ति की संभावना कम ही है.

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महागठबंधन मायावती के लिए भी चिंता की बात होगा. इसबार मायावती का चुनाव दलित-मुस्लिम समीकरण पर टिका है. अगर मुसलमानों को एक मज़बूत महागठबंधन का विकल्प मिल जाता है तो वो वापस नेताजी के पाले में आना पसंद करेंगे.

कांग्रेस को भी साफ दिखता है कि अगर भाजपा को बिहार के बाद यूपी में भी रोकने का श्रेय लेने में उनकी अहम भूमिका बन पाई तो वो उनके लिए एक बड़ी सफलता होगी. ऐसे में प्रशांत किशोर से मुलायम सिंह यादव की मुलाकात खास है.

देखना यह है कि क्या इन बैठकों के बाद ये राजनीतिक दल किसी सहमति और महागठबंधन वाली स्थिति तक पहुंच पाएंगे.

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