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राष्ट्रपति चुनाव: लेफ्ट-ममता के फेर में फंसीं सोनिया गांधी, खा गईं मोदी-शाह से मात!

राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद के सामने अपना उम्मीदवार उतारने के लिए विपक्ष गुरुवार को बैठक तो कर रहा है, लेकिन बैठक से पहले ही कई विपक्षी पार्टियां यह मान रही हैं कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति बनाने में विपक्ष फिर चूक गया.

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राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर सियासी दांव में फंसी कांग्रेस
राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर सियासी दांव में फंसी कांग्रेस

राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद के सामने अपना उम्मीदवार उतारने के लिए विपक्ष गुरुवार को बैठक तो कर रहा है, लेकिन बैठक से पहले ही कई विपक्षी पार्टियां यह मान रही हैं कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए अपनी रणनीति बनाने में विपक्ष फिर चूक गया.

बैठक के पहले यह चर्चा पुरजोर तरीके से चल रही है कि विपक्ष पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को अपना उम्मीदवार बना सकता है. मीरा कुमार भी रामनाथ कोविंद की तरह दलित हैं, बड़े कद की नेता हैं और जगजीवन राम की बेटी हैं. साथ ही लोकसभा स्पीकर रह चुकी हैं. कई विपक्षी पार्टियों को लगता है कि अगर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बाकी विपक्षी पार्टियों से बातचीत कर एनडीए से पहले ही मीरा कुमार को उम्मीदवार घोषित कर दिया होता तो एनडीए के ऊपर दबाव बढ़ जाता.

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मीरा कुमार के नाम पर सहमत नहीं हुईं ममता
सूत्रों के मुताबिक सोनिया गांधी से कुछ नेताओं ने इस बारे में चर्चा की थी. सोनिया गांधी मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाए जाने के पक्ष में भी थीं. मगर उनका कहना था कि लेफ्ट और ममता बनर्जी गोपाल कृष्ण गांधी को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने के पक्ष में हैं. इसीलिए मीरा कुमार के नाम पर फैसला नहीं हो सका. इसके बाद तय किया गया कि पहले एनडीए को ही अपना उम्मीदवार घोषित करने दिया जाए.

अब कई विपक्षी पार्टियों को लगता है कि रामनाथ कोविंद के मुकाबले मीरा कुमार को उतारकर भले ही दलित के खिलाफ दलित खड़ा कर दिया जाए, लेकिन दलित राजनीति का संदेश देने के हिसाब से एनडीए बाजी मार चुकी है. संख्या बल के हिसाब से एनडीए के उम्मीदवार का जीतना तो पहले ही से तय है, मगर विपक्ष सांकेतिक तौर पर भी एनडीए से हार गया.

अब हालत यह है कि विपक्ष की बैठक से पहले ही उनके समर्थन में आने वाले दल रामनाथ कोविंद के नाम पर सहमत नजर आ रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रामनाथ को समर्थन देकर विपक्ष को बड़ा झटका दे चुके हैं.

वोट बैंक के लिए नीतीश का समर्थन!
दरअसल, सभी राजनीतिक दल रामनाथ कोविंद पर स्टैंड लेने के मामले में अपना नफा-नुकसान सोच रही है. नीतीश कुमार रामनाथ कोविंद के पाले में इसलिए आए क्योंकि वह महादलित हैं, जिसकी राजनीति नीतीश कुमार करते रहे हैं. इसके अलावा कोविंद का बिहार का गवर्नर होना भी एक कारण रहा. यही नहीं लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल से भी नीतीश कुमार की तनातनी लगातार चल ही रही है. ऐसे में रामनाथ कोविंद के बहाने बीजेपी के करीब जाकर नीतीश कुमार लालू यादव पर दबाव बढ़ा रहे हैं.

माया-अखिलेश का असमंजस
उत्तर प्रदेश की पार्टियों का असमंजस दूसरा है. आज तक उत्तर प्रदेश से कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति नहीं हुआ है. यूपी की कोई भी पार्टी यह संदेश देना नहीं चाहती कि जब यूपी के व्यक्ति के राष्ट्रपति होने की बारी आई तब उन्होंने रास्ते में रोड़े अटकाये थे. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का भी यही असमंजस है. बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती को रामनाथ कोविंद का विरोध करना इसलिए मुश्किल हो रहा है क्योंकि वह भी दलित हैं. दूसरी तरफ अगर विपक्ष ने मीरा कुमार को पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया होता तो शायद बीएसपी के लिए फैसला लेना आसान होता. वैसे भी समाजवादी पार्टी के पास सिर्फ 20000 वोट हैं और बीएसपी के पास सिर्फ 6000 वोट. इसलिए इन दोनों पार्टियों के विरोध से कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है.

अब हालत यह है कि विपक्ष की बैठक से पहले सिर्फ चार पार्टियां ऐसी दिखती हैं जो मजबूती से रामनाथ कोविंद के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारने के पक्ष में हैं. कांग्रेस, लेफ्ट, तृणमूल कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के अलावा कोई भी खुलकर उम्मीदवार उतारने के पक्ष में नजर नहीं आ रहा है.

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