देश की राजधानी दिल्ली के लाल किला मैदान में दशहरे के दिन आयोजित रावण दहन कार्यक्रम में हिस्सा लेने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू समेत कई नेता पहुंचे. जहां एक ओर रामनाथ कोविंद ने गिलहरी की कहानी सुनाई, तो दूसरी ओर पीएम मोदी ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि साल 2022 में देश आजादी की 75वीं सालगिरह मनाएगा. ऐसे में सभी देशवासी विजयादशमी पर संकल्प करें कि साल 2022 तक देश को कुछ न कुछ सकारात्मक सहयोग दें.
पीएम मोदी ने कहा कि हमारे उत्सव खेत से लेकर नदी, प्रकृति और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़े हुए हैं. हमारे उत्सव सामाजिक शिक्षा का माध्यम हैं. रावण दहन भी परंपरा का हिस्सा है. रावण प्रवृत्ति का विनाश करने के लिए समाज में लगातार जागरुक प्रयास किए जाते हैं. ऐसे उत्सव से सिर्फ मनोरंजन ही नहीं, बल्कि कुछ कर गुजरने का संकल्प बनना चाहिए.
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भी इतने विनम्रता के साथ जनसमाज को अपने आपको आहूत करने में लगे रहे. इस बार पीएम मोदी का भाषण बेहद संक्षिप्त रहा. वहीं, कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गिलहरी की कहानी सुनाई. उन्होंने कहा कि दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है. यह नैतिकता और सदाचार की विजय और अनैतिकता की पराजय का भी पर्व है.
राष्ट्रपति ने कहा कि हम सभी को भगवान राम के आदर्शों को आचरण में लाने का प्रयास करना चाहिए. गिलहरी की कहानी सुनाते हुए उन्होंने कहा कि हनुमान के नेतृत्व में रामसेतु का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसमें नल, नील और जामवंत समेत तमाम बानर सेना जुटी हुई थी. सभी मिलकर पत्थर तोड़कर सेतु निर्णाण में लगे थे.
इसी बीच कुछ गिलहरी भगवान राम के पास आती है और कहती है कि सेतु के निर्माण का कार्य राष्ट्र के निर्माण का कार्य है. लिहाजा हम सब गिलहरियां भी इसमें योगदान करना चाहती हैं. इस पर भगवान राम प्रसन्न हुए और सभी गिलहरियों को अनुमति दी. ये लिहरियां पत्थर को छोटे-छोटे टुकड़े लेकर योगदान देने लगीं.
तभी हनुमान समेत कई ने भगवान राम से शिकायत की कि ये गिलहरियां सेतु निर्माण में सहायक नहीं, बल्कि बाधक हैं. इनका ख्याल रखना पड़ता है कि कहीं ये पैर के नीचे न आ जाएं. इस पर राम ने गिलहरियों को बुलाकर पूछा कि आखिर तुम इस सेतु निर्माण में क्यों लगी हो? गिलहरियों ने कहा कि राष्ट्र की अस्मिता और गौरव के संरक्षण और बचाने का कार्य है. यह सेतु का निर्माण राष्ट्र निर्माण का है. लिहाजा हम अपनी जान को जोखिम में डालकर इसमें लगे हुए हैं. उन्होंने कहा कि इससे हमको भी सीख लेनी चाहिए.