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राष्ट्रपति कोविंद के सामने होंगी सबसे पहले ये पांच 'चुनौतियां'

राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद का राज एक नए युग का आगाज कई मायनों में अहम है. देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति होने के साथ ही कोविंद का दौर देश में कई अहम और संवेदनशील मसलों का दौर भी है.

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राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने पद की शपथ ले चुके हैं. इसके साथ ही राष्ट्रपति भवन में आज से 'राम'राज शुरू होगा. जी हां, 'राम'राज. क्योंकि अब यहां देश के 14वें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद रहने वाले हैं. यूं तो हर राष्ट्रपति के साथ रायसीना हिल्स का नया दौर शुरू होता है. लेकिन इस बार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ पूरा युग बदल रहा है क्योंकि ये बीजेपी और खासतौर से प्रधानमंत्री मोदी की पसंद के पहले राष्ट्रपति का युग है.

राष्ट्रपति भवन में रामनाथ कोविंद का राज एक नए युग का आगाज कई मायनों में अहम है. देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति होने के साथ ही कोविंद का दौर देश में कई अहम और संवेदनशील मसलों का दौर भी है. विदेशी मोर्चों पर चीन और पाकिस्तान के रक्षा से जुड़े मसले हैं. क्योंकि तीनों सेनाओं का प्रधान राष्ट्रपति ही होता है तो दार्जिलिंग, जम्मू-कश्मीर जैसे घरेलू मोर्चे हैं जहां राष्ट्रपति की सलाह बहुत ही महत्वपूर्ण होंगे.

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पार्टी की छवि से बाहर निकलना

राष्ट्रपति किसी पार्टी का नहीं होता वह देश का होता है. राष्ट्रपति कोविंद के लिए सबसे पहली चुनौती यही होगी कि उन पर यह दाग ना लगने पाए. हालांकि वे राज्यपाल जैसा जिम्मेदार पद निभा चुके हैं जाहिर है इस पद पर उनका राजनीतिक अनुभव काफी मदद करेगा. राष्ट्रपति बनने के बाद कोविंद को अपनी पार्टी की सदस्यता तो छोड़नी होगी साथ ही साथ अगले पांच साल एक निष्पक्ष पंच की भूमिका भी निभानी होगी.

सीमा सुरक्षा

सीमा सुरक्षा इन दिनों भारत के लिए सबसे गंभीर मुद्दा है. जम्मू-कश्मीर से तनातनी के बीच सिक्किम क्षेत्र के डोकलाम में भारत के साथ चीन का भी विवाद चरम पर चल रहा है. ऐसे में तीनों सेनाओं की कमान अपने हाथ में लेने वाले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की सबसे बड़ी चुनौती होगी के वे इस समस्या से निकलने की क्या सलाह देते हैं.

राज्यों के हालात पर नजर

जम्मू-कश्मीर में अलगाववाद का जहर भरा हुआ है तो दार्जिलिंग में गोरखालैंड की मांग को लेकर विवाद चल रहा है. केंद्र के साथ कई राज्यों में बीजेपी की सरकार है. देश के सभी भागों में राजनीतिक स्थिरता और शांति बहाली के लिए राष्ट्रपति की क्या सलाह होगी यह भी देखने लायक होगा. गौरतलब है कि पिछले साल प्रणब मुखर्जी ने अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को मंजूरी दे दी थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट ने दोनों फैसले पलट दिए थे. प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल पर ये फैसले हमेशा दाग-धब्बे सरीखे रहेंगे. कोविंद को ऐसे फैसलों से बचना होगा और निष्पक्ष होकर संवैधानिक दायित्वों को पूरा करना होगा. इन परिस्थितियों में रामनाथ कोविंद की निष्पक्षता को लगातार चुनौती मिलेगी.

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लंबित विधेयक

आपको बता दें कि अपने पांच साल के कार्यकाल के दौरान पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने करीब 156 राज्य विधेयकों को मंजूरी दी. कई विधेयक उन्होंने पुनर्विचार के लिए वापस भी किए. प्रणब मुखर्जी ने राज्यों द्वारा भेजे गए उन विधेयकों को कभी मंजूरी नहीं दी, जो संगठित अपराध से लड़ने के नाम पर मानवाधिकारों के हनन की वजह बन सकते थे. अब जब राष्ट्रपति पद पर रामनाथ कोविंद हैं तो पीएम मोदी की एनडीए सरकार काफी राहत महसूस करेगी. अब सरकार चाहे तो अध्यादेश लाकर अपने तमाम लंबित विधेयक पास करा सकती है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को इस बात की इजाजत भी देता है. लेकिन ऐसे में कोविंद पर मोदी सरकार का 'रबर स्टैंप' बनने का ठप्पा लगेगा. कोविंद इस चुनौती से कैसे बाहर निकलते हैं यह भी देखने वाला होगा.

मॉब लिंचिंग

देश के लगभग सभी राज्यों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं. देश को अपने अंतिम संबोधन में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी इस बात पर दुख जताया था. अब देखना होगा कि इन मुद्दों पर देश के 14वें राष्ट्रपति क्या रुख अख्तियार करते हैं.

 

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