प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काम में तेजी लाने की दिशा में ठोस कदम उठाते हुए सभी 30 मंत्री समूह और उच्चाधिकार प्राप्त मंत्री समूहों को भंग कर दिया है. उन्होंने मंत्रालयों और विभागों से पेंडिंग मसलों पर जल्द फैसले लेने को कहा है.
उच्चाधिकार प्राप्त 9 मंत्री समूह (ईजीओएम) और 21 मंत्री समूह (जीओएम) को भंग करने के फैसले का ऐलान करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने कहा कि इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया तेज होगी और व्यवस्था में अधिक जवाबदेही आएगी.
बयान में कहा गया कि मंत्रालय और विभाग अब ईजीओएम और जीओएम के समक्ष लंबित मुद्दों पर विचार करेंगे और मंत्रालय और विभाग के स्तर पर ही उचित फैसला करेंगे.
पीएमओ ने कहा कि जहां कहीं भी मंत्रालयों को कठिनाई आएगी, कैबिनेट सचिवालय और पीएमओ निर्णय लेने की प्रक्रिया में मदद करेंगे.
बयान में ईजीओएम और जीओएम भंग करने के ऐलान को बडा कदम बताते हुए कहा गया है कि ऐसा मंत्रालयों और विभागों के सशक्तीकरण के लिए किया गया है.
गौरतलब है कि पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी अधिकांश ईजीओएम के अध्यक्ष थे. भ्रष्टाचार, अंतर राज्यीय जल विवाद, प्रशासनिक सुधार और गैस व दूरसंचार मूल्य जैसे मुद्दों पर फैसले के लिए उक्त समूहों का गठन किया गया था. ईजीओएम के पास केन्द्रीय मंत्रिमंडल की तर्ज पर फैसले लेने का अधिकार था. जीओएम की सिफारिशें अंतिम फैसले के लिए कैबिनेट के समक्ष पेश की जाती थीं.
इस बीच सरकारी सूत्रों ने बताया कि ईजीओएम और जीओएम को भंग करने का बडा नीतिगत कदम निर्णय लेने की प्रक्रिया को तेज करने तथा संबंधित मंत्रालयों और कैबिनेट के अधिकारों को बहाल करने के लिए है. सूत्रों ने कहा कि ये कदम निर्णय लेने के स्तरों को कम करने तथा व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है.
उन्होंने कहा कि यदि कोई अंतर-मंत्रालयी विवाद होता है, तो उसे कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली सचिवों की समिति द्वारा हल किया जा सकता है.
मनमोहन सिंह सरकार के समय 10 साल तक अस्तित्व में रहे जीओएम के बारे में सूत्रों ने कहा कि इनमें से कई जीओएम की बैठक ही नहीं हुई और केवल कुछ ने ही फैसले दिए. जीओएम प्रणाली की मुख्य कमी यह है कि निष्कर्ष निकालने के लिए कोई समय-सीमा नहीं तय होती है.