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PM पद की शपथ लेते ही इस देश की यात्रा पर जा सकते हैं नरेंद्र मोदी

दरअसल इस द्वीपीय देश पर चीन की निगाहें लंबे समय से रही हैं. चीन अक्सर इस देश की राजनीति में दखल देता रहता है. यहां चीन से बड़े पैमाने पर निवेश किया है और भारत की व्यावसायिक हितों को नुकसान पहुंचा रहा है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

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दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी सबसे पहले मालदीव की यात्रा पर जा सकते हैं. यह लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता में आने पर उनकी पहली द्विपक्षीय यात्रा हो सकती है. राजनयिक सूत्रों और मालदीव मीडिया की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली है. बता दें कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी पीएम बने थे तो वह सबसे पहले भूटान यात्रा पर गए थे.

राजनयिक सूत्रों ने बताया कि नरेंद्र मोदी जून के पहले पखवाड़े में मालदीव की राजधानी माले की यात्रा पर जा सकते हैं. वहीं मालदीव की मीडिया की खबरों पर यकीन करें तो नरेंद्र मोदी की यह यात्रा 7-8 जून को हो सकती है. बता दें कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इसी साल मार्च में मालदीव की यात्रा पर गई थीं. सुषमा स्वराज की ये मालदीव यात्रा पिछले वर्ष नवंबर में राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की सरकार बनने के बाद पहली द्विपक्षीय यात्रा थी.

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हालांकि पिछले साल नवंबर में जब इब्राहिम मोहम्मद सोलिह शपथ ले रहे थे तो नरेंद्र मोदी भी इस कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे. 23 मई को जब पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीता तो सोलिह ने उन्हें बधाई दी थी. मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने भी पीएम के जीत पर उन्हें बधाई और कहा था कि भारत और मालदीव शांति, विकास और समृद्धि के साझा मूल्यों को साथ लेकर चलेंगे.

मालदीव ही क्यों?

बता दें कि भारत और मालदीव के बीच संबंध आमतौर पर अच्छे रहे हैं. हालांकि दोनों देशों के संबंधों में खटास तब आई जब पिछले साल फरवरी में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. इसी के साथ भारत के समर्थक के रूप में काम कर रहे कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. तब भारत ने इस फैसले की आलोचना की थी.

भारत ने कहा कि मालदीव सरकार को चुनावी प्रक्रिया के नेतीजे का सम्मान करना चाहिए और राजनीतिक बंदियों को छोड़ना चाहिए. ये इमरजेंसी 45 दिनों तक चली थी. अब्दुल्ला यामीन को हराकार ही सोलिह मालदीव के राष्ट्रपति बने. दरअसल इस द्वीपीय देश पर चीन की निगाहें लंबे समय से रही हैं. चीन अक्सर इस देश की राजनीति में दखल देता रहता है. यहां चीन से बड़े पैमाने पर निवेश किया है और भारत की व्यावसायिक हितों को नुकसान पहुंचा रहा है.

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