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नोटबंदी के ठीक 50 दिन बाद आज कहां खड़े हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी?

अगर 8 दिसंबर के बाद के घटनाक्रम को देखें तो इस सवाल का जवाब तो तलाशा ही जा सकता है कि अपने ऐतिहासिक कदम के पूरे 50 दिन बाद राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहां खड़े हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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नोटबंदी के ऐलान को आज पूरे 50 दिन हो गए हैं. 50 दिन पहले 8 नवंबर की रात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को चौंकाते हुए 500 और 1000 के पुराने नोट को एक झटके में चलन से बाहर कर अमान्य घोषित कर दिया था. तब से बैंकों के बाहर इन नोटों को बदलने अथवा अपने बैंक अकाउंट में जमा कराने के लिए देश लाइन में लगा है. नोटबंदी से अर्थव्यवस्था को क्या फायदा हुआ? काला धन बाहर निकला या नहीं? क्या वाकई आतंकियों की कमर टूट गई? नकली नोटों की समस्या क्या हमेशा के लिए खत्म हो गई? ये वो सवाल हैं जिनके सटीक जवाब पाने के लिए अभी कुछ वक्त और इंतजार करना होगा लेकिन अगर 8 नवंबर के बाद के घटनाक्रम को देखें तो इस सवाल का जवाब तो तलाशा ही जा सकता है कि अपने ऐतिहासिक कदम के पूरे 50 दिन बाद राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहां खड़े हैं.

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चुनाव में मोदी
नोटबंदी के दूसरे ही हफ्ते में देश में चार लोकसभा और 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए. ये वो समय था जब तकरीबन पूरे देश में कैश की भारी किल्लत थी, लोग बैंकों-एटीएम के बाहर कतार में लगे हुए थे लेकिन उस माहौल में भी बीजेपी मध्य प्रदेश की शहडोल और असम की लखीमपुर लोकसभा सीटों पर फिर से जीत हासिल करने में सफल रही. इसके बाद महाराष्ट्र के नगर पालिका और नगर परिषद के चुनाव में भी उसका प्रदर्शन संतोषजनक रहा। गुजरात में उसने भारी जीत दर्ज की तो चंडीगढ़ में हाल ही हुए नगर निगम चुनाव में तो उसे दो तिहाई बहुमत मिला. नोटबंदी महज एक आर्थिक नहीं बल्कि बड़ा राजनीतिक फैसला भी है और राजनीतिक फैसलों के सही या गलत होने का एकमात्र पैमाना चुनाव नतीजे माने जाते हैं. अगर इस पैमाने पर कसें तो नोटबंदी से बीजेपी के वोट बैंक पर कोई निगेटिव असर नहीं दिखता। हालांकि कुछ हफ्ते बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में असली तस्वीर सामने आ सकेगी।

संसद में मोदी
नोटबंदी के फैसले के बाद विपक्ष हमलावर हुआ और उसके निशाने पर सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहे. नतीजा ये हुआ कि इस बार का संसद का शीतकालीन सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया. पहले तो विपक्ष ने पीएम से जवाब की मांग करते हुए सदन ठप रखा लेकिन बीच सत्र में जब पीएम सदन में जवाब देने को तैयार हुए तो विपक्ष उनसे माफी की मांग पर अड़ गया. नतीजा न तो लोकसभा में कोई काम हुआ, न राज्यसभा में. पीएम अब अपनी हर सभा में विपक्ष पर ये आरोप लगा रहे हैं कि उसने उन्हें संसद में बोलने नहीं दिया. दूसरी ओर विपक्ष का आरोप है कि पीएम संसद से भागते रहे. हालांकि सच्चाई इन दोनों के बीच कहीं है. कुल मिलाकर चूंकि सदन चलाना सरकार की जिम्मेदारी है और सदन नहीं चलने व महत्वपूर्ण बिल अटकने का खामियाजा सरकार को ही भुगतना पड़ेगा इस लिहाज से कहा जा सकता है कि नोटबंदी के चलते संसद में मोदी को झटका लगा.

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जनता के बीच मोदी
मई 2014 के बाद देश-दुनिया ने पहली बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जनता के भरोसे का असली रूप देखा. लाइन में घंटों खड़े और अपने पैसों के लिए मोहताज लोग भी नोटबंदी के फैसले का समर्थन करते और पीएम मोदी का साथ देते नजर आए. ऐसा नजारा सिर्फ महानगरों या छोटे शहरों में नहीं बल्कि गांवों-कस्बों में भी देखने को मिला. लोग इस बात से तो नाराज थे कि बैंक में धांधली हो रही है या एटीएम बदइंतजामी के शिकार हैं लेकिन नोटबंदी के मकसद और पीएम मोदी की मंशा पर सवाल उठाने वाले गिनती भर के ही लोग मिले. पीएम मोदी ने अपने ऐप के जरिए नोटबंदी पर जो सर्वे कराया उसके परिणामों में भी यही बात झलकी. पीएम मोदी की इस दौरान हो रही सभाओं में उमड़ रही भीड़ और उस भीड़ के रिस्पांस देखकर भी कहा जा सकता है कि उनके प्रति नाराजगी का कोई माहौल नहीं बन पाया है. शायद यही वजह रही कि नोटबंदी के खिलाफ भारत बंद का आयोजन करने वाली पार्टियां इसके फुस्स होने की आशंका से डरकर इससे पीछा छुड़ाती नजर आईं. यही नहीं नोटबंदी के खिलाफ सबसे मुखर अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी की उनके इलाकों के बाहर हुई रैलियों में गिनती की भीड़ जुटी.

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विपक्ष के बीच मोदी
मोदी सरकार के पिछले ढाई साल में ये पहला बड़ा मौका था जब पूरा विपक्ष सरकार के खिलाफ एकजुट हो सकता था. लेकिन अलग-अलग कारणों के चलते विपक्ष की ऐसी एकता बन नहीं पाई. पहले राहुल गांधी की पीएम मोदी से अकेले मुलाकात के चलते राष्ट्रपति से मिलने जाने वाले विपक्ष के प्रतिनिधिमंडल से चार बड़ी पार्टियां गायब रहीं. उसके बाद सोनिया गांधी की पहल पर 27 दिसंबर को विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की गई लेकिन इसमें भी जनता दल (यू), समाजवादी पार्टी, लेफ़्ट और एनसीपी जैसे दूसरे विपक्षी दल शामिल नहीं हुए. जाहिर है पीएम मोदी के लिए ये बड़ी राहत की बात है.

लेकिन चुनौतियां और बढ़ीं
कुल मिलाकर कहा जाए तो नोटबंदी के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राजनीतिक रूप से कोई बड़ी दिक्कत नजर नहीं आती लेकिन जहां तक चुनौतियों की बात है तो इस मामले में उनपर दबाव बढ़ गया है. नोटबंदी के बाद पीएम ने जिस तरह काला धन बाहर आने, नकली नोटों की समस्या खत्म होने, आतंकियों-नक्सलियों की कमर टूटने का सपना दिखाया था, वैसा होता नजर नहीं आ रहा है. पीएम ने जब 50 दिन की मोहलत मांगी थी तो सपना दिखाया था कि उसके बाद वे देशवासियों को उनके सपनों का भारत देंगे. जाहिर है अब जनता को उनसे अपने वादे पर खरे उतरने की उम्मीद होगी. अब जबकि 90 फीसदी से ज्यादा पैसा वापस अकाउंट में आ गया है तब सरकार को कोई बड़ा वित्तीय लाभ होने की उम्मीद नहीं बची है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने, नोटबंदी से व्यापार पर असर पड़ने और जीएसटी के और आगे खिसकने की आशंका के बीच पीएम जनता को कैसे नोटबंदी के लाभ दे पाते हैं, यही देखना दिलचस्प होगा.

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