प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुधारों के तहत पुराने व बेकार हो चुके कानूनों व प्रक्रियाओं को समाप्त करने के लिए एक समिति का गठन किया है. मोदी का मानना है कि इस तरह के कानून असमंजस की स्थिति पैदा कर कामकाज में रुकावट डालते हैं.
यह समिति तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. समिति की सिफारिशों के आधार पर संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक लाया जाएगा. समिति उन कानूनों व नियमों की समीक्षा करेगी जो पिछले 10 से 15 साल के दौरान बेकार पड़ चुके हैं. मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जो पहला बड़ा बयान दिया था उसमें कहा गया था कि कामकाज में बाधा पैदा करने वाले पुराने कानून की पहचान कर उन्हें समाप्त किया जाना चाहिए. समिति के गठन का फैसला इसी के अनुरूप किया गया है.
प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘प्रधानमंत्री ने पुराने पड़ चुके कानूनों की समीक्षा के लिए समिति के गठन को मंजूरी दी है.’ यह नई समिति उन सभी कानूनों की समीक्षा करेगी जिन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा 1998 में गठित प्रशासनिक कानूनों की समीक्षा समिति ने रद्द करने की सिफारिश की थी.
पीएमओ ने कहा कि मोदी ने इस बात पर चिंता जताई है कि उस समिति ने जिन 1,382 कानूनों को रद्द करने की सिफारिश की थी उनमें से सिर्फ 415 ही अभी तक समाप्त किए गए हैं.
पीएमओ के बयान में कहा गया है कि मोदी ने पुराने कानूनों व नियमों को समाप्त करने के लिए एक केंद्रित व नतीजे वाली प्रक्रिया पर जोर दिया है. इसमें कहा गया है कि समिति अपनी रिपोर्ट तीन माह में देगी. इसकी सिफारिशों के आधार पर संसद के शीतकालीन सत्र में एक वृहद विधेयक पेश किया जाएगा. पीएमओ में सचिव आर रामानुजम समिति के अध्यक्ष होंगे. विधायी विभाग के पूर्व सचिव वी के भसीन इसके सदस्य होंगे.
मोदी ने केंद्र सरकार के सभी सचिवों के साथ अपनी पहली बैठक में एक तेजी आपूर्ति प्रणाली पर जोर देते हुए पुराने नियमों व प्रक्रियाओं को समाप्त करने की बात कही थी. उन्होंने 4 जून को अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘कुछ ऐसे कानून व प्रक्रियाएं हैं जो कि आज की तारीख से मेल नहीं खाते. ये कानून कामकाज को सुगम बनाने के बजाय इसके रास्ते की अड़चन बनते हैं और ऐसी असमंजस की स्थिति पैदा करते हैं जिनसे बचा जा सकता है.’