प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड में सुप्रीम कोर्ट ने दोषी संतोष कुमार सिंह की याचिका पर अपना फैसला गुरुवार को सुरक्षित रखा. सिंह ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसे मट्टू के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या का दोषी पाया गया था और मौत की सजा सुनाई गई थी.
न्यायमूर्ति न्यायाधीश एच एस बेदी और न्यायाधीश सी के प्रसाद की एक पीठ ने सिंह की पैरवी कर रहे वकीलों और सीबीआई की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा. पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के पुत्र संतोष को निचली अदालत ने तीन दिसम्बर वर्ष 1999 को बरी कर दिया था.
लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने 27 अक्तूबर वर्ष 2006 को निचली अदालत के आदेश को पलटते हुए संतोष को प्रियदर्शिनी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या का दोषी पाया था. सीबीआई ने यह कहते हुए संतोष की सजा बरकरार रखने की मांग की थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने साक्ष्यों को सही तरीके से समझा जिसमें आरोपी को दोषी पाया गया. संतोष (40) फिलहाल तिहाड़ जेल में बंद है.
उसका दावा है कि ‘निचली अदालत का बरी किए जाने का फैसला सही और उचित था.’ संतोष की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील सुशील कुमार ने दावा किया कि उच्च न्यायालय द्वारा संतोष को दोषी ठहराना सुबूतों के अनुरूप नहीं था.
इससे पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर एस सोढी और न्यायमूर्ति पी के भसीन ने निचली अदालत के फैसले को दरकिनार करते हुए और इसे ‘प्रतिकूल’ बताया था और संतोष को मौत की सजा सुनाई थी एवं कहा था कि ‘उसे इससे कम सजा नहीं दी जा सकती.’ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जी पी थरेजा ने तीन दिसम्बर वर्ष 1999 को संतोष को बरी कर दिया था.
इसके बाद लोग आक्रोशित हो गए थे क्योंकि न्यायाधीश ने कहा था कि वे जानते हैं कि आरोपी ने अपराध किया है लेकिन सुबूतों के अभाव में उसे संदेह का लाभ दिया गया. उल्लेखनीय है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि की 23 वर्षीय छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू की उसके दक्षिण दिल्ली स्थित आवास में 23 जनवरी वर्ष 1996 को हत्या कर दी गई थी.