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CAA: नागरिकता के लिए शरणार्थियों को भी देना पड़ेगा धर्म का सबूत, असम में 3 महीने अहम

CAA के तहत पात्रता रखने वाले रिफ्यूजियों को नागरिकता यूं ही नहीं मिल जाएगी. इसके लिए उन्हें अपनी धार्मिक मान्यता का सूबत देना पड़ेगा. इसके अलावा उन्हें ये भी साबित करना पड़ेगा कि वे भारत में 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले प्रवेश कर चुके थे.

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मजनूं का टीला में मौजूद पाकिस्तान से आए हिन्दू रिफ्यूजी (फाइल फोटो-एएनआई)
मजनूं का टीला में मौजूद पाकिस्तान से आए हिन्दू रिफ्यूजी (फाइल फोटो-एएनआई)

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  • नागरिकता पाने के लिए देना होगा धर्म का सबूत
  • CAA के तहत नागरिकता पाने के लिए प्रावधान
  • असम में 3 महीने में ही करना होगा आवेदन

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों को भारत की नागरिकता पाने के लिए अपने धर्म का भी सबूत देना पड़ेगा. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक अधिकारियों ने बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को CAA के तहत भारत की नागरिकता का आवेदन करने के लिए धर्म का सबूत भी देना पड़ेगा.

देना होगा धार्मिक मान्यता का सबूत

हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्मावलंबियों को  दस्तावेजों के जरिए ये भी साबित करना होगा कि वे भारत में 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले आए हैं.

सरकारी अधिकारी ने बताया कि CAA के तहत जो भी शख्स भारत की नागरिकता चाहेगा, उसे अपनी धार्मिक मान्यता का साक्ष्य देना होगा और CAA के तहत जारी होने वाली नियमावली में इसका उल्लेख किया जाएगा.

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CAA के तहत 3 देशों के गैर मुस्लिमों को नागरिकता का प्रावधान

नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक या उससे पहले धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी धर्मावलंबियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.

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असम के लिए खास होगा 3 महीना

एक अन्य अधिकारी के मुताबिक असम में CAA के तहत नागरिकता पाने के लिए आवेदन की अवधि मात्र 3 महीने की होगी. 3 महीने के अंदर ही भारत की नागरिकता पाने के लिए इच्छुक लोगों को आवेदन देना होगा.

CAA से जुड़ी नियमावली में असम से जुड़े कुछ विशेष प्रावधान किये जाएंगे. बता दें कि असम के सीएम सर्बानंद सोनोवाल और वित्त मंत्री हेमंता बिस्व शर्मा ने लगभग 15 दिन पहले केंद्र से अपील की थी कि असम में नागरिकता पाने के लिए आवेदन की अवधि छोटी रखी जाए. इसके अलावा नियमावली में असम से जुड़े खास प्रावधान किए जाएं.

माना जाता है कि असम में CAA के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के मद्देनजर केंद्र ने ये फैसला किया है. CAA के वजूद में आने के बाद असम के मूल निवासियों में ये डर है कि नया कानून लागू हो जाने के बाद उनकी राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान प्रभावित होगी.

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बता दें कि असम समझौता राज्य में घुसे अवैध प्रवासियों की पहचान और प्रत्यर्पण की व्यवस्था करती है. असम समझौते के मुताबिक 1971 के बाद देश में अवैध रूप से आए और असम में रह रहे लोगों को बाहर किया जाएगा चाहे उनका धर्म कोई भी हो. असम में CAA विरोधियों का तर्क है कि यह कानून असम समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन करता है.

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