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पुलवामा: कलाइयों में बंधी घड़ियां, जेब में रखे पर्स से हुई जवानों की पहचान

कुछ जवान की पहचान गले में लिपटी उनकी आईडी कार्ड से हो गई. लेकिन जिन जवानों के सिर के आस-पास चोट आया था उनकी पहचान आईडी कार्ड से हुई. कुछ जवान अपना पैन कार्ड साथ लेकर चल रहे थे इसके आधार पर उनकी शिनाख्त हो सकी. शवों की शिनाख्त के कुछ मामले तो बेहद दर्द भरे हैं. कई जवान घर जाने के लिए छुट्टी का आवेदन लिखकर आए थे. इस आवेदन को वह अपने बैग में या पॉकेट में रखे थे इसी के आधार पर उन्हें पहचाना जा सका.

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फोटो-twitter/PMOIndia
फोटो-twitter/PMOIndia

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जम्मू-कश्मीर में शहीद 40 सीआरपीएफ जवानों के पार्थिव शरीर को उन गांवों-घरों की ओर भेज दिया गया है जहां उनका जन्म हुआ था, जहां वो पले-बढ़े थे. आज जब तिरंगे में लिपटे इन जवानों का शव इनके घर पहुंच रहा है तो इन शवों की हालत को देख लोगों के मन में घोर गुस्सा भरा है. हमले की चपेट में आए जवानों के शरीर का वो हाल हो चुका है जिसे बता पाना मुश्किल है. हमले के तुरंत बाद आई तस्वीरें इसकी गवाही भी दे रही थी.

शवों का हाल देखकर इनकी पहचान करना सीआरपीएफ जवानों के लिए बेहद मुश्किल था. लगभग 200 किलो विस्फोटक का इस्तेमाल कर किए गए इस फिदायीन हमले के बाद शवों की हालत बेहद बुरी हो गई थी. कहीं हाथ पड़ा हुआ था तो कहीं शरीर का दूसरा भाग बिखरा हुआ था. जवानों के बैग कहीं और थे तो उनकी टोपियां कहीं और बिखरी हुई थी. हमले के तुरंत बाद ये इलाका युद्ध भूमि जैसा दिख रहा था.

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शरीर के इन अवशेष और सामानों को एक साथ इकट्ठा करने के बाद इनकी पहचान का काम शुरू हुआ. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक इस काम में जवानों के आधार कार्ड, आईडी कार्ड और कुछ अन्य सामानों से बड़ी मदद मिली.

कुछ जवान की पहचान गले में लिपटी उनकी आईडी कार्ड से हो गई. लेकिन जिन जवानों के सिर के आसपास चोट आया था उनकी पहचान आईडी कार्ड से हुई. कुछ जवान अपना पैन कार्ड साथ लेकर चल रहे थे इसके आधार पर उनकी शिनाख्त हो सकी. शवों की शिनाख्त के कुछ मामले तो बेहद दर्द भरे हैं. कई जवान घर जाने के लिए छुट्टी का आवेदन लिखकर आए थे. इस आवेदन को वह अपने बैग में या पॉकेट में रखे थे इसी के आधार पर उन्हें पहचाना जा सका.

इस प्रचंड विस्फोट में कई जवानों के बैग उनसे अलग हो गए थे. ऐसे में इनकी पहचान उनकी कलाइयों में बंधी घड़ियों से हुई. ये घड़ियां हमले में बचे उनके साथियों ने पहचानी. कई जवान अपने पॉकेट में पर्स लेकर चल रहे थे. ये पर्स उनके पहचान का आधार बने. इन तमाम कोशिशों के बाद भी कुछ शवों के पहचान में बेहद दिक्कत हुई. इनकी पहचान के लिए तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया.

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