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हम फर्स्ट, हम फर्स्ट की वो रेस, जो कभी आईफोन स्टोर के बाहर सुलाती है तो कभी पुष्पा के प्रीमियर पर भगदड़ मचाती है

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का एक सीन है, जिसमें लूट के बाद दो अभिनेता भागते हैं. गाड़ी तैयार है. जाना भी दोनों को साथ है. लेकिन कुछ सेकंड्स के आगे-पीछे होने को भी जीत या हार की तरह लिया जा रहा है. गाड़ी में पहले जो बैठेगा, वही असल मालिक होगा- की तर्ज पर दोनों लुटेरे बगटूट भागते हैं. बेमतलब, बेमकसद ये रेस फिल्मी सीन तक सीमित नहीं, असल जिंदगी में बहुत गहरे तक इसकी घुसपैठ हो चुकी. फिर चाहे वो फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखना हो, या लेटेस्ट फोन की सबसे पहली खरीदी

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सबसे आगे रहने की होड़ लोगों की जान ले रही है.
सबसे आगे रहने की होड़ लोगों की जान ले रही है.

बात साल 2017 की है. जगह- आंध्रप्रदेश का वायएसआर जिला. वहां मार्च की एक शाम भरत कुमार नाम के युवक ने खुदकुशी कर ली. 20 साल का इंजीनियर. परिवार रोने-कूटने लगा. इश्क में धोखा देने वाली किसी बे-चेहरा लड़की को कोसा जाने लगा. इतने में पुलिस आ गई. दरयाफ्त में कुछ और ही सामने आया. मोहब्बत में मरना तो दकियानूसी अंदाज है. युवक ने फांसी इसलिए लगाई क्योंकि उसे एक फिल्म की फर्स्ट डे- फर्स्ट शो टिकट नहीं मिल सकी.

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चिता की आग राख हो चुकी थी, जब मीडिया की नजर इसपर पड़ी. इसके भी काफी-काफी वक्त बाद एक्टर पवन कल्याण का बयान आया. 

मश्वरे में पगी हुई अपील. तीन ठंडी लाइनें, जिसमें फैन्स को 'एक्सट्रीम' तक न जाने की सलाह थी. मरे हुए युवक का कोई जिक्र नहीं. उसके परिवार की कोई दिलजोई नहीं. बस, कसे हुए तबले की तरह सपाट अपील.

आठ साल बीत चुके लेकिन वक्त की सुई मार्च की उसी शाम पर ठिठकी हुई है. फर्स्ट डे शो के लिए अब भी जान की बाजियां लगाई जा रही हैं. अब भी कुछ सौ की टिकट के लिए हजारों लिए-दिए जा रहे हैं. पसंदीदा कलाकारों की एक उड़ती हुई झलक के लिए अब भी फैन्स रतजगा करते हैं. वो भी अकेले-अकेले नहीं, परिवार समेत. 

बीती रात हैदराबाद में पुष्पा 2 के प्रीमियर के दौरान एक हादसे में 39 साल की युवती की मौत हो गई. युवती बाल-बच्चों समेत आई थी. एक्टर को देखने के लिए मची भगदड़ में 9 साल का उसका बच्चा भी जख्मी होकर अस्पताल पहुंच चुका. खबर चर्चा में तो है, लेकिन चांदी में लिपटी मिठाई की तरह!

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pushpa two film premiere hyderabad death during stampede

देखा, पिक्चर और एक्टर के लिए जुनून! जान भले चली जाए लेकिन जुनून जिंदा रहना चाहिए. फिल्म देखने- न देखने के बीच अटके हुए लोग भी शायद इस कुर्बान-ए-जान की वजह से टिकट खरीद ही लें. कुछ न कुछ वजन जरूर होगा, तभी तो बाल-बच्चेदार मां-बाप भी आधी रात कतार में लगे थे. 

हिंदी-चीनी वैसे भले ही भाई-भाई न हों, इजरायल भले ही ईरान के नाम पर कुल्लियां करता हो, लेकिन 'फर्स्ट का फितूर' सबके लिए एक-सा है. 

लगभग 12 साल पहले चीन के एक जवान-जहान लड़के ने आईफोन के नए मॉडल के लिए अपनी किडनी बेच दी. वहीं निहायत प्रैक्टिकल माने जाते एक अमेरिकी जोड़े ने यूएसए से ऑस्ट्रेलिया का सफर केवल इसलिए किया कि वे आईफोन 6 पाने वाला पहला जोड़ा कहलाएं. वे कहलाए भी. फोन कंपनी ने ऐसे किसी जुनून पर कोई बयान जारी नहीं किया. न सीठा- न तीता. 

यही हादसे फोन कंपनी का हुनर बन गए. और पागलपन बन गया पैटर्न. 

हम भी कहां पीछे हैं. सितंबर में आए फोन के लेटेस्ट मॉडल के लिए मुंबई में एक युवक 21 घंटे लाइन में रहा. उज्ज्वल नाम का ये शख्स इससे पहले वाले मॉडल के लिए भी 17 घंटे इंतजार कर चुका था. वो क्या करता है,  कितना कमाता-गंवाता है, इसका कोई जिक्र नहीं. किसी को इससे मतलब भी नहीं. सोशल मीडिया से लेकर हर चैनल पर आ चुके उज्ज्वल की पहचान ही आईफोन है. लेटेस्ट मॉडल. स्टोर खुलते ही सीलबंद बॉक्स का हाथ में आना. देश में लाख धन्ने-खां हों, लेकिन पहली बाजी मैंने मारी. 

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pushpa two film premiere hyderabad death during stampede photo Unsplash

पहले को लेकर ये झूमझटक फोन और फिल्मों तक सीमित नहीं, ये हर जगह मिलेगी.

कुछ आप-बीती सुनते चलें. 10वीं में थी, जब पड़ोस के एक लड़के ने फिनाइल पीकर जान दे दी. रिजल्ट आए चौबीस घंटे भी नहीं बीते होंगे. मातमपुर्सी के लिए मैं भी घर पहुंची. सामने कमरे में बैठे पिता से हल्का परिचय था. कटकर अंदर जा रही थी कि उन्होंने रोक लिया. रिजल्ट पूछा. नंबर मेरे भी कम थे. आंसू ढुलक आए. पिता कन्फ्यूज हो गए. सिर पर हाथ रखते हुए कहा- हमारा बेटा कभी पीछे रहा ही नहीं. मेरिट का हिसाब था. नहीं मिला तो चला गया.

चेहरे पर गर्व-घुली भावुकता. चले जाने का दुख बेशक रहा होगा लेकिन मेरिट में न होने का दुख भी पचास फीसदी हिस्सेदार बने हुए. शील्ड्स से सजे कमरे से होते हुए अगले कमरे में गई तो वहां भी शीशे-लगी अलमारी में यही सब झांकता हुआ.

हमउम्र लड़की देख परिवार की कोई महिला फुसफुसाती है- का करीं बेटी, ऊ फर्स्ट ना आइल त सह ना सका. मातम यहां भी लेकिन उसी मिलावट के साथ. हम लौट आए. फिर कभी उस घर नहीं गई. उसके पिता कभी-कभार टकराए. दुख से जर्जर शरीर. अकेला बेटा. फर्स्ट. लास्ट. मैं चाहकर भी दोबारा बात नहीं कर सकी.
 
क्या है, जो कतार में सबसे आगे दिखने के लिए लोग कुछ भी कर गुजरते हैं!

इसे लेकर साइंस के पास कुछ स्टडीज हैं जो कहती हैं कि सारा दोष एक हॉर्मोन का है. जब भी कोई जीतता है तो उसके शरीर में डोपामाइन हॉर्मोन का स्तर एकदम से ऊपर चला जाता है. ये हैप्पी हॉर्मोन है. 

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pushpa two film premiere hyderabad death during stampede photo Unsplash

दिमाग के एक खास हिस्से में पैदा होने वाला ये हॉर्मोन जीत के तुरंत बाद ही रिलीज होता है, जो कुछ घंटों से लेकर कई दिनों या महीनों भी रह सकता है. ये इसपर तय है कि जीत कितनी बड़ी है.

आईफोन का लेटेस्ट मॉडल लेने वालों में हॉर्मोन कुछ दिन रह सकता है, वहीं पॉश कॉर लेने के बाद दिमाग के तार शायद कुछ महीनों तक झनकते रहें.

साल 2018 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च ह्यूमन नेचर में छपी. ये कहती है कि सिर्फ इतना भर समझ आ जाए कि हम जीत या हार रहे हैं, इतने में ही हॉर्मोन्स के स्तर में जमीन-आसमान की उठापटक हो जाती है. खासकर पुरुषों पर इसका असर इतना होता है कि वे कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. शायद यही वजह है कि फर्स्ट फोन, फर्स्ट शो या फर्स्ट गर्ल  के लिए वे कतार में लगने से लेकर दिल उड़ेल देने तक सब कर जाते हैं. 

यहां फर्स्ट गर्ल का जिक्र क्यों आया!

कुछ रोज पहले ट्विटर (अब X) पर एक ट्वीट वायरल थी. किसी गैस सिलेंडर की तस्वीर के साथ एक कमेंट- 'फलां कंपनी सालों से चेता रही थी, लेकिन हम लड़के ही नहीं समझ सके!' सिलेंडर पर लिखा था- 'लेने से पहले सील की जांच करें'. ट्वीट्स से गुजरती अंगुलियां रुक गईं. इसका क्या मतलब! नीचे कमेंट्स देखे तब जाना, हैंडल वर्जिन लड़कियों की बात कर रहा था. हल्का-फुल्का अंदाज लेकिन हर मजाक चुटकुला भी तो नहीं होता. 

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फर्स्ट की खब्त ने बुधवार रात एक मां की जान ले ली. एक बच्चा अस्पताल में है. फिल्म चल रही है. फोन भी चलेगा. और सोच भी. फर्स्ट के साथ जुड़े हादसों को ताज की सजाए हुए.

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