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EXCLUSIVE: कोयला घोटाले में नई एफआईआर को लेकर खुद सवालों में घिरी सीबीआई

कोयला घोटाले की जांच में सीबीआई की नई एफआईआर अब खुद सवालों के घेरे में है. सीबीआई की इस एफआईआर में जिन कंपनियों के नाम हैं, खुद सरकार उन्हें क्लीन चिट दे रही है. आजतक के पास वे दस्तावेज हैं, जो बताते हैं कि हिंडाल्को जैसी कंपनियों को आवंटन के लिए तमाम नियम-कानून का पालन हुआ था.

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CBI पर उठे सवाल
CBI पर उठे सवाल

कोयला घोटाले की जांच में सीबीआई की नई एफआईआर अब खुद सवालों के घेरे में है. सीबीआई की इस एफआईआर में जिन कंपनियों के नाम हैं, खुद सरकार उन्हें क्लीन चिट दे रही है. आजतक के पास वे दस्तावेज हैं, जो बताते हैं कि हिंडाल्को जैसी कंपनियों को आवंटन के लिए तमाम नियम-कानून का पालन हुआ था.

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PM ने दी थी हिंडाल्को को कोल ब्लॉक के आवंटन की मंजूरी

कोयला घोटाला...एक ऐसा स्कैम, जिसकी कालिख प्रधानमंत्री कार्यालय तक पर चस्पा हुईं. लेकिन, आज का सवाल पीएम पर नहीं, उन फाइलों पर भी नहीं, जो गुम हो गईं, आज का सवाल है इस घोटाले की जांच कर रही एजेंसी सीबीआई पर. सवाल यह कि क्या सीबीआई बेमतलब दर्ज कर रही है एफआईआर?

सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि सीबीआई ने अपनी ताजा फाइल में जो एफआईआर दर्ज की है, वो हिंडाल्को के खिलाफ है, जबकि दस्तावेज बताते हैं कि कोयला खदान को लेकर इस हिंडाल्को कंपनी ने नियमों की अनदेखी नहीं की.

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कोयला को लेकर हिंडाल्को के साफ-सुथरे हाथ की गवाही हम नहीं, बल्कि वो दस्तावेज दे रहे हैं, जो सरकार ने ही तैयार किए हैं. आजतक के हाथों में तमाम दस्तावेज हैं, जो ओडिशा से लेकर दिल्ली के टेबल तक घूमे हैं.

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आजतक के पास वह चिट्ठी है, जो ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की तरफ से प्रधानमंत्री कार्यालय को लिखी गई थी. इस चिट्ठी में लिखा है कि हिंडाल्को को खदान आवंटन करने में हर नियम का पालन हुआ था.

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आइए, आपको इस खत का मजमून भी बता देते हैं. 17 अगस्त, 2005 को नवीन पटनायक ने लिखा था:
'हमने अलग-अलग 37 MOU साइन किए हैं, जिनमें हिंडाल्को भी एक है. मैं बताना चाहता हूं कि इन प्लांट्स को इसलिए भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए, क्योंकि इससे रोजगार पैदा होते हैं, देश के लिए संपत्ति बढ़ती है और मैनुफैक्चरिंग सेक्टर का ग्रोथ भी होता है. इसलिए मैं आपसे जोर देकर निवेदन करता हूं कि इन्हें कोल ब्लॉक आवंटित किया जाए.'

बात इतनी-सी ही नहीं है. ओडिशा सरकार के तत्कालीन खनन सचिव आई श्रीनिवास ने कोयला मंत्रालय को बाकायदा चिट्ठी लिखकर हिंडाल्को कंपनी को कोल ब्लॉक आवंटन को जायज ठहराया था. आजतक के हाथों में वो खत भी है. अगस्त, 2006 में लिखे इस खत में साफ-साफ लिखा है:
'कंपनी के लिए जमीन का अधिग्रहण आखिरी चरण में है. 2008-09 में ये चालू हो जाएगी. ऐसे में कोयले के खनन का आदेश दे दिया जाए.'

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सवाल यह है कि जब सब कुछ नियम से चल रहे थे, सरकार जब खुद सारे हालात पर नजर रखे हुई थी, तो फिर अचानक इसमें गड़बड़ी कैसे दिखने लगी? आखिर सीबीआई ने क्यों दर्ज की एफआईआर?

क्या सीबीआई जान-बूझकर इस केस को और उलझा रही है? क्या सीबीआई जांच से भटक रही है? अगर यह सही है, तो बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों? आजतक के हाथ जो कागजात लगे हैं, प्रधानमंत्री की तरफ से जो सफाई दी गई है, उससे तो यही लगता है कि कोयले की जांच करते-करते सीबीआई के हाथ भी कहीं न कहीं कालिख लग गई है.

सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई रखेगी अपनी बात
कोयला घोटाले की जांच को लेकर सीबीआई मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात कहेगी. लेकिन इस एफआईआर पर जो सवाल उठ रहे हैं, वो बेहद गंभीर हैं. सियासत से लेकर उद्योग जगत तक इस मुद्दे पर बवाल मचा हुआ है.

जिस कोयला घोटाले पर बवाल मचा था, अब उसकी जांच पर ही सवालिया निशान लगने लगे हैं. सवाल इसलिए उठने लगे हैं, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से सफाई दी गई है कि हिंडाल्को को जो भी कोल ब्लॉक आवंटित किया गया, वो सही था.

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कोयला घोटाले पर नई एफआईआर को लेकर इतना बवाल मचा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने बाकायदा सफाई दी, 'हमारी सरकार ने ये साफ तौर पर कहा है कि कोल ब्लॉक का आवंटन राज्य सरकारों की सलाह पर पीएसयू ने किया है. हम कुछ भी नहीं छिपा रहे हैं. हमारे साथियों को लगता है कि जिस तरह से यह मामला आया है, वो देश के लिए अच्छा नहीं.'

वैसे प्रधानमंत्री को भी यह सफाई ऐसे ही नहीं देनी पड़ी थी. केस में आवाज तब निकली, जब अपना गला फंसने लगा. तत्कालीन कोयला सचिव ने तो यहां तक कह डाला कि अगर मैं दोषी हुआ, तो पीएम भी दोषी हैं. इस मुद्दे को लेकर कुमार मंगलम बिड़ला खुद वित्तमंत्री चिदंबरम से मिले. जांच और एफआईआर पर बात भी हुई.

सीबीआई की एफआईआर में जैसे ही हिंडाल्को का नाम आया, कंपनी ने फौरन प्रेस रिलीज जारी कर पूरे आवंटन पर एक-एक सिरे को खोलकर बता दिया. कंपनी ने साफ किया कि उसे जो भी कोयला खदान आवंटित हुआ, वो नियम के मुताबिक थे.

कोयला घोटाले की जांच पर ये आंच इतने से ही नहीं आती है. आजतक के हाथों में और भी दस्तावेज हैं. ओडिशा सरकार की तरफ से भेजी गई थी चिट्ठी और उस चिट्ठी में साफ-साफ लिखा था कि हिंडाल्को को ब्लॉक आवंटन में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं थी.

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ओडिशा के संयुक्त सचिव जीसी सेठी ने 19 जुलाई, 2012 को ये चिट्ठी लिखी थी. चिट्ठी लिखी गई थी सीबीआई के एसपी को. इसमें लिखा गया था, 'आपने 12 जून, 2012 को जो जानकारी मांगी थी, वो मैं आपको भेज रहा हूं. इसमें हमारे वे पत्र भी हैं, जो हमने सिफारिश के तौर पर केंद्र को भेजे थे. इस आधार पर मैं आपको ये बताऊं कि कहीं भी कोई भी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ.'

सवाल यही उठता है कि जब सब ठीक ही था, तो फिर इस एफआईआर का क्या मतलब है? कंपनी बोली, कोई गलती नहीं हुई. ओडिशा सरकार ने सारे दस्तावेज दे दिए. पीएम तक कह रहे हैं कि जो हुआ, वो ठीक नहीं हुआ. फिर सवाल है कि सीबीआई ने ये एफआईआर दर्ज की, तो किस आधार पर? जांच में अचानक इस मोड़ का क्या मतलब है? सवाल गंभीर हैं और आने वाले वक्त में सीबीआई को इसका जवाब देना पड़ेगा.

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