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सिर्फ छुट्टी मनाने भारत नहीं जाना चाहता: कुरैशी

पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हालात को जाहिरा तौर पर और जटिल बनाते हुए कहा कि वह तब तक नई दिल्ली जाने के इच्छुक नहीं हैं, जब तक भारत पाकिस्तान के साथ सभी लंबित मुद्दों पर ‘सार्थक, रचनात्मक और परिणाम-मूलक’ बातचीत करने के लिये तैयार नहीं हो जाता.

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पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने हालात को जाहिरा तौर पर और जटिल बनाते हुए कहा कि वह तब तक नई दिल्ली जाने के इच्छुक नहीं हैं, जब तक भारत पाकिस्तान के साथ सभी लंबित मुद्दों पर ‘सार्थक, रचनात्मक और परिणाम-मूलक’ बातचीत करने के लिये तैयार नहीं हो जाता.

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कुरैशी ने ब्रिटेन की मंत्री सैयदा वारसी के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन के बाद कहा, ‘‘मैं महज अवकाश मनाने भारत दौरे पर नहीं जाना चाहता. अगर सही माहौल निर्मित हो और अगर वे (बातचीत के लिये) पूरी तरह तैयार हों तो मैं सार्थक, रचनात्मक और परिणाम-मूलक बातचीत के लिये जाना चाहूंगा.’’ वह संवाददाताओं के पूछे इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या वह भारत सरकार के मौजूदा रुख के मद्देनजर बातचीत के लिये नई दिल्ली जायेंगे.

इस्लामाबाद में गत गुरुवार कुरैशी के साथ बैठक के बाद विदेश मंत्री एस एम कृष्णा ने घोषणा की थी कि उन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष को अगले दौर की बातचीत के लिये भारत आने का न्यौता दिया है. कुरैशी ने दोहराया कि कृष्णा सीमित लक्ष्य के साथ पाकिस्तान आये थे.{mospagebreak}उन्होंने कहा, ‘‘हमारे बीच बातचीत में मैंने कहा था कि वे (भारतीय पक्ष) आतंकवाद का मुद्दा उठायें, बशर्ते वह उनकी प्राथमिकता हो, क्योंकि यह हमारे लिये भी चिंता का विषय है. आप मुंबई (हमलों का मुद्दा) उठा सकते हैं लेकिन हमारी अपनी चिंताएं हैं.’’ कुरैशी ने कहा कि पाकिस्तान की चिंता जम्मू-कश्मीर के हालात के बारे में है जहां कर्फ्यू लगा है और मौतें हो रही हैं.

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कुरैशी ने दावा किया कि भारत ने अपनी चिंताएं जाहिर की और फिर वह पाकिस्तान की चिंताओं के बारे में ‘चयनात्मक’ हो गया. उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप (भारत) आतंकवाद पर अपने लोगों के प्रति जवाबदेह हैं तो हम भी लोकतंत्र में हैं और हमें भी हमारे लोगों को संतुष्ट करना है.’’

पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने ऐसे कोई भी मुद्दा नहीं उठाया जो समग्र वार्ता के आठ घटकों का हिस्सा नहीं हो. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि पाकिस्तान नहीं चाहता था कि समग्र वार्ता में चार वर्ष में हुईं कोशिशें बर्बाद हो जायें.

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