राफेल लड़ाकू विमान डील में भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच विमान बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने दावा किया कि जहां अनिल अंबानी की रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर के तौर पर चुनने का काम खुद दसॉल्ट ने किया, वहीं रिलायंस का इतिहास भी इस फैसले को लेने का अहम कारण था.
एरिक ट्रैपियर ने बताया कि क्यों भारत सरकार की एरोनॉटिक्स कंपनी एचएएल की तुलना में दसॉल्ट के लिए रिलायंस एक बेहतर ऑफसेट पार्टनर बनी. ट्रैपियर ने कहा कि अनिल अंबानी की रिलायंस उस रिलायंस समूह का हिस्सा है जिसकी नींव धीरूभाई अंबानी ने रखी. हालांकि उस वक्त की रिलायंस अब मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी के बीच बंट चुकी है लेकिन अभी भी उनकी मां बतौर गार्जियन मौजूद हैं.
इसके अलावा ट्रैपियर ने कहा कि भले रिलायंस के पास विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं था लेकिन अंबानी परिवार की कंपनियों के पास इंजीनियरिंग क्षेत्र में काम करने का अच्छा अनुभव है और यह एक बड़ी वजह है कि दसॉल्ट ने ऑफसेट पार्टनर के तौर पर उसका चुनाव किया.
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दसॉल्ट के सीईओ ने कहा कि एचएएल की जगह रिलायंस को प्राथमिकता देने में कंपनी ने इस बात पर भी गौर किया कि आखिर राफेल विमान को भारत में कितने समय में बनाया जा सकता है. ट्रैपियर ने कहा कि दसॉल्ट की कोशिश थी कि ऐसी कंपनी से करार किया जाए जो लगभग उसी समय में राफेल का निर्माण कर सके जितना समय फ्रांस में दसॉल्ट को एक राफेल विमान बनाने में लगता है.
खास बात है कि ट्रैपियर ने यह भी दावा किया कि अनिल अंबनी के नेतृत्व वाली रिलायंस ने देश हित में एरोनॉटिक्स क्षेत्र में बड़ा कदम बढ़ाने की पहल की है. इसके चलते भी दसॉल्ट ने एक नई कंपनी के साथ इस करार को करने की पहल की जिससे दोनों कंपनियों के बीच भविष्य में भी बड़ा काम करने की संभावना तैयार हो सके.
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दसॉल्ट के राफेल विमान की कीमत के सवाल पर भी सीईओ ने कहा कि भारत से पुरानी डील की अपेक्षा नई डील करने के लिए कंपनी ने राफेल विमान की कीमत में 9 फीसदी की कटौती की है. इसके चलते जहां पुरानी डील में कंपनी को 18 राफेल लड़ाकू विमान रेडी टू फ्लाई स्थिति में सप्लाई करने थे वहीं नई डील में उसे 36 रेडी टू फ्लाई विमान सप्लाई करने है. इसके चलते कंपनी ने लड़ाकू विमान की पुरानी कीमत में 9 फीसदी का डिस्काउंट देने का फैसला किया और अब भारत को प्रत्येक लड़ाकू विमान 9 फीसदी कम कीमत पर सप्लाई किए जाएगा.