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NPA पर रघुराम राजन की सफाई से उठे सवाल, क्या गलत थे सिब्बल और चिदंबरम के दावे?

राजन की इस सफाई के बाद एनपीए की समस्या पर हो रही राजनीति को नई दिशा मिलने की उम्मीद है. हालांकि अब जहां कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम यह दावा करते रहे कि एनपीए की समस्या यूपीए के कार्यकाल के बाद विकट हुई वहीं सत्तारूढ़ एनडीए का दावा है कि एनपीए की समस्या उन्हें विरासत में मिली है. ऐसे में देखना है कि राजनीतिक दल एनपीए के मुद्दे पर आपसी लड़ाई को क्या नया आयाम देंगे?

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रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया
रघुराम राजन, पूर्व गवर्नर, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया

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बैंकों के सामने नॉन परफॉर्मिंग असेट की समस्या पूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन के बयान के बाद और गंभीर हो गई है. लोकसभा की एस्टिमेट कमेटी को लिखे पत्र में रघुराम राजन ने NPA समस्या के रहस्य से पर्दा उठाते हुए लिखा है कि देश के बैंक एक टाइम बम पर बैठे हैं और जल्द इस बम को निष्क्रिय नहीं किया गया तो इसे फटने से कोई रोक नहीं सकता.

गौरतलब है कि एस्टिमेट कमेटी ने पूर्व गवर्नर से कमेटी के सामने पेश होने की अपील की थी और बैंकों के एनपीए पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. कमेटी ने राजन को अपना पक्ष पत्र के जरिए रखने की छूट भी दी थी जिसके बाद रघुराम राजन ने एनपीए पर सिलसिलेवार ढंग से लोकसभा की समिति को अपना जवाब दिया.

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रघुराम राजन ने दावा किया कि बैंकों के सामने सबसे ज्यादा बैड लोन ऐसे हैं जिन्हें 2006 से 2008 के बीच आवंटित किया गया. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह ऐसा समय था जब आर्थिक विकास दर बेहद अच्छी थी और बैंकों को अधिक से अधिक कर्ज देकर इस रफ्तार को बढ़ाने की जरूरत थी. लेकिन ऐसी परिस्थिति में बैंकों को चाहिए था कि वह कर्ज देने से पहले यह सुनिश्चित करता कि जिन कंपनियों को वह कर्ज दे रहा है उनका स्वास्थ्य अच्छा है और वह समय रहते अपने कर्ज का भुगतान करने की स्थिति में हैं.

बेमिसाल है बैंकों की लापरवाही

रघुराम राजन ने दावा किया कि जहां बैंकों ने इस दौरान नया कर्ज बांटने में लापरवाही बरती वहीं ऐसे लोगों को कर्ज देने का काम किया जिनका कर्ज नहीं लौटाने का इतिहास रहा है. लिहाजा, यह बैंकों की बहुत बड़ी गलती थी और देश में गंदे कर्ज की शुरुआत थी. राजन ने दावा किया कि इस दौर में कर्ज लेने वाले एक प्रमोटर ने उन्हें बताया कि बैंक ऐसे लोगों को भी कर्ज दे रहा था जिन्हें कर्ज की जरूरत नहीं थी और बैंक ने महज कंपनी से यह बताने के लिए कहा कि उसे कितने रुपयों का कर्ज चाहिए और वह कर्ज कंपनी को दे दिया गया.

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हालांकि रघुराम राजन ने कहा कि ऐसे दुनिया के अन्य देशों में भी देखने को मिला कि जब अर्थव्यवस्था अच्छा कर रही होती है तो बैंक ज्यादा से ज्यादा कर्ज बाजार को देने को प्राथमिकता देते हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में बैंक को जरूरत से ज्यादा सजग रहने की जरूरत थी क्योंकि इन कर्जों के वापस न लौटने से तेज दौड़ती अर्थव्यवस्था कमजोर पड़ सकती है.

सरकारी बैंकों से नहीं थी ये उम्मीद

रघुराम राजन ने एनपीए का ठीकरा देश की बैंकिंग व्यवस्था पर फोड़ते हुए लिखा कि एनपीए के खेल में देश के सरकारी बैंकों की भूमिका बेहद खराब रही. राजन के मुताबिक सरकारी बैंकों से कर्ज आवंटन में ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती थी. राजन के मुताबिक कर्ज देने के बाद बैंकों ने समय-समय पर कंपनियों द्वारा कर्ज की रकम खर्च किए जाने की सुध नहीं ली जिसके चलते ज्यादातर कंपनियां कर्ज के पैसे का गलत इस्तेमाल करने लगीं.

वहीं कुछ प्रमोटर्स ने बैंकों की इस लापरवाही के चलते सस्ते उपकरणों की महंगी खरीद दिखाने के लिए फर्जी रसीद का सहारा लिया और बैंकों ने इसकी जांच किए बगैर उन्हें पास करने का काम बड़े स्तर पर किया. राजन ने दावा किया जहां देश प्राइवेट बैंक ऐसी कंपनियों को कर्ज देने से कतराने लगे जहां पैसा डूबने का डर था लेकिन सरकारी बैंकों ने इससे कोई सीख नहीं ली और लगातार डिफॉल्टर कंपनियों को कर्ज देने का काम जारी रखा.

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यूपीए और एनडीए की कमजोरी

रघुराम राजन ने लोकसभा की समिति को लिखे पत्र में दावा किया कि जहां बैंक बड़े स्तर पर कंपनियों को कर्ज देने का काम कर रहे थे वहीं देश में पहले यूपीए और फिर एनडीए सरकारें फैसला लेने में देरी करती रहीं. इस दौरान कोयला खदानों के आवंटन पर सवाल खड़ा हुआ, अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर फैसला करने में देरी हुई  और नतीजा यह रहा कि कर्ज लेकर शुरु किए गए ज्यादातर प्रोजेक्ट्स या तो शुरू नहीं हो सके, शुरू हुए तो उनकी लागत में बड़ा इजाफा हो गया अथवा प्रोजेक्ट्स को बंद करने की नौबत आ गई.

नीति आयोग को भी राजन की दो टूक

हाल ही में नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने दावा किया कि बीते तीन साल अर्थव्यवस्था में दर्ज हुई गिरावट के लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जिम्मेदार हैं. राजीव कुमार ने कहा कि वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही से पहले लगातार 9 तिमाही में दर्ज हुई गिरावट के लिए राजन की आर्थिक नीतियां जिम्मेदार हैं.

राजीव कुमार ने कहा कि बीते तीन साल के दौरान विकास दर में गिरावट बैंक के एनपीए में हुई बढ़ोतरी के चलते है. कुमार ने कहा कि जब मोदी सरकार ने सत्ता संभाली, तब बैंकों का एनपीए 4 लाख करोड़ रुपये था. लेकिन मार्च 2017 तक यह एनपीए बढ़कर 10.5 लाख करोड़ का आंकड़ा पार कर गया. एनपीए में हुई इस बढ़त के चलते तीन साल के दौरान जीडीपी में लगातार गिरावट देखने को मिली और इसके लिए सिर्फ रघुराम राजन जिम्मेदार हैं.

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इन आरोपों को सिरे से नकारते हुए राजन ने संसदीय समिति को बताया कि नीति आयोग की तरफ से यह बयान बिना होमवर्क किए दिया गया. राजन ने कहा कि जब उनके कार्यकाल में बैंके की खराब बैलेंसशीट को सुधारने की कवायद शुरू की गई तो कुछ लोगों ने निहित स्वार्थ के चलते विकास दर के मुद्दे पर केन्द्रीय बैंक को जिम्मेदार ठहराने का काम किया.

राजन ने कहा कि वह चाहते थे कि बैंक अपने गंदे कर्ज को छिपाने का काम बंद करे और जल्द से जल्द रुके हुए प्रोजेक्ट्स को शुरू किया जाए जिससे बैंक कर्ज में दिए गए अपने पैसे का एक बड़ा हिस्सा वापस ले सके. लेकिन इस काम को बैंकों ने उचित ढंग से नहीं किया और बैंकों के एनपीए में लगातार इजाफा होता रहा.

राजन की इस सफाई के बाद एनपीए की समस्या पर हो रही राजनीति को नई दिशा मिलने की उम्मीद है. हालांकि अब जहां कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम यह दावा करते रहे कि एनपीए की समस्या यूपीए के कार्यकाल के बाद विकट हुई वहीं सत्तारूढ़ एनडीए का दावा है कि एनपीए की समस्या उन्हें विरासत में मिली है. ऐसे में देखना है कि राजनीतिक दल एनपीए के मुद्दे पर आपसी लड़ाई को क्या नया आयाम देंगे?

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