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राहत इंदौरी का वो अंदाजे बयां, जो पेशानी पर लिखवाना चाहता था हिन्दोस्तां!

Rahat Indori Famous Shayari राहत इंदौरी को शेर कहने के तरीके के लिए याद किया जाएगा. उनकी आवाज इतनी बुलंद थी कि मंच पर आते ही लोगों को खामोश कर देती. स्थिर होने में थोड़ा समय लगता लेकिन एक बार शुरू हो जाते तो महफिल उनकी हो जाती.

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Rahat Indori (Photo Credit: Bandeep Singh)
Rahat Indori (Photo Credit: Bandeep Singh)

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राहत इंदौरी (rahat-indori) मुशायरे के बादशाह थे, जहां जाते महफिल लूट लेते. उनमें कबीर जैसा फक्कड़पन और उनके जैसी ही निष्कंप दृढ़ता थी. वह खुले मंच से ललकार सकते थे, दहाड़ सकते थे, इशारों- इशारों में नहीं खुलेआम चुनौती दे सकते थे कि आती-जाती सरकारों से उन्हें क्या लेना. उनकी आवाज लोगों की आवाज बन जाती, अल्फाज जेहन में तैरने लगते. वह ऊर्दू के शायर थे लेकिन कोशिश हमेशा यही रहती कि उनकी बात हर किसी के दिल तक पहुंचे. वह खुलकर कहते कि गजलें पहले इशारों में कही जाती थीं लेकिन उनके शेर में ऐसा कुछ नहीं है कि जो समझ में न आए. कोरोना और हार्ट अटैक ने मंगलवार को उनकी जान ले ली, मौत ने उन्हें 'जमींदार' कर दिया.

राहत इंदौरी को शेर कहने के तरीके के लिए याद किया जाएगा. उनकी आवाज इतनी बुलंद थी कि मंच पर आते ही लोगों को खामोश कर देती. स्थिर होने में थोड़ा समय लगता लेकिन एक बार शुरू हो जाते तो महफिल उनकी हो जाती. वह शेर पढ़ते तो झूमकर पढ़ते, आसमान की तरफ देखते, ऐसा लगता कि वह अवाम ही नहीं खुदा से बातें कर रहे हैं. वह सत्ता ही नहीं खुदा को भी ललकार रहे हैं. वह इतराते, मुस्कुराते, शर्माते, अलहदा अंदाज में उनकी आवाज तेज होती जो अगले मिसरे में धीमी हो जाती.

कोई एक शब्द होता जिस पर जोर देते, उस शब्द के साथ एक खुस्की आती जिसमें कई तरह के बिंब निकलते जैसे विरोध के, बगावत के, चुनौती के, व्यंग्य के, मौज के, उसके बाद ही लग जाता कि अब कुछ ऐसा कहने वाले हैं जिसमें बड़ा संदेश होगा और आखिरी मिसरे तक आते-आते महफिल उनकी हो जाती. हर शेर के पीछे एक दर्द होता, एक कहानी होती.

उनका एक शेर है
मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना

हर महफिल में उनसे इस शेर की डिमांड होती थी. उनका अंदाज ऐसा होता कि जो इससे सीधे नहीं जुड़ते उन्हें इस बात का एहसास होता कि आखिर ऐसा कहने की नौबत ही क्यों आई?

मैं मर जाऊं----कम से कम 3 बार कहते, और शब्दों के टोन में उतार चढ़ाव इतना नपा तुला होता कि सुनने वाला मन में सोचता कि ऐसा क्यों? फिर पूरी बात. ‘मैं मर जाऊं मेरी अलग पहचान लिख देना’ यहां महफिल को समझ में आ जाता कि किसे जवाब दिया जा रहा है. आखिरी वाक्य एक आदेश, एक चुनौती, एक जवाब के तौर पर कहते ‘मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना’. इसके बाद चेहरे पर संतोष का भाव होता, आंखों में चमक होती. जवाब उनका न होकर पूरे जनमानस का हो जाता. राहत इंदौरी से पूछा, उम्रदराज होकर रोमांटिक शायरी कैसे लिखते हैं, दिल जीत लेगा जवाब

राहत इंदौरी कहते कि उनके लहजे को गाली, गुस्सा, नारा, शोर और चीख कहा जाता है. लेकिन उनका यह अपना अंदाज था और इससे समझौता करने वाले नहीं थे. ऐसा कहने वालों को जवाब देते हुए उन्होंने लिखा था...

जहां-जहां से टूटा है जोड़ दूंगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उसका
इरादा मैंने किया था कि छोड़ दूंगा उसे
पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे

राहत इंदौरी कहा करते थे कि सरकारें उन्हें पसंद नहीं करतीं, और आती-जाती सरकारों से उन्हें क्या लेना देना. उनका एक मशहूर शेर है...

ऊंचे-ऊंचे दरबारों से क्या लेना !
नंगे भूखे बेचारों से क्या लेना !
अपना मालिक अपना खालिक तो अल्लाह है
आती-जाती सरकारों से क्या लेना!

गजल क्या है?
आजतक से बातचीत करते हुए राहत इंदौरी ने कहा था कि 30 साल तक शायरी पढ़ाता रहा लेकिन मैं भी इसे समझ नहीं पाया. जितना समझ पाया उसके मुताबिक गजल पढ़ने के लिए, पढ़ाने के लिए, लिखने के लिए, समझाने के लिए आदमी को थोड़ा दीवाना, थोड़ा सा उत्साही, थोड़ा पागल, थोड़ा आशिक और थोड़ा बहुत बदचलन होना चाहिए. अपना बड़प्पन दिखाते हुए उन्होंने यह भी कहा था कि वह बड़े शायर इसलिए नहीं हो पाए क्योंकि गजल के लिए जो शर्तें हैं उस पर वह खरे नहीं उतरे.

'मायानगरी में शब्द मर गए हैं'
राहत इंदौरी ने फिल्मों के लिए गाने लिखे, वहां उन्होंने 20 साल काम किया. आजतक को उन्होंने बताया था कि मर्डर और मुन्ना भाई एमबीबीएस उन्होंने लिखी. लेकिन बाद में उन्होंने वह नगरी छोड़ दी क्योंकि उनका मानना था कि मायानगरी में शब्द मर गए हैं और वह मुर्दों के साथ जिंदा नहीं रहना चाहते. उनका मानना था कि गानों में शायरी भले न हो शायरी की खुशबू जरूर हो.

उनके कई शेर आंदोलनों की आवाज बने
2019 में सरकार नागरिकता संशोधन कानून लेकर आई. पूरे देश में इसके खिलाफ आवाज उठी. एक समुदाय विशेष के लोगों को लगा कि यह उनके खिलाफ है, कई जगह धरने प्रदर्शन होने लगे. आंदोलनाकारियों के हाथ में तख्तियां होती थीं जिस पर राहत इंदौरी का मशहूर शेर होता.

'लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है,
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं, ज़ाती मकान थोड़ी है,
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है!

राहत इंदौरी ने कहा था कि जो साहित्य और अदब लिख रहे हैं वह ध्यान रखें कि आपका सोचा हुआ, आपका बोला हुआ, आपका लिखा हुआ एक-एक लफ्ज समाज के काम आए.

राहत इंदौरी का जन्म आजादी के 3 साल बाद 1950 में हुआ. कपड़ा मिल में कर्मचारी के बेटे राहत इंदौरी को बचपन से पेंटिंग और शेरो-शायरी का शौक था. इंदौर में स्कूली शिक्षा लेने के बाद उन्होंने उर्दू साहित्य में एमए और पीएचडी की. इंदौर के एक कॉलेज में उन्होंने 30 साल तक अध्यापन का कार्य किया. आज वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जब उर्दू की बात होगी, तहजीब की बात होगी, शेरो-शायरी और साहित्य की बात होगी, अपने लेखन से अपनी शायरी से लोगों के लिए लड़ने वालों की बात होगी, राहत इंदौरी को जरूर याद किया जाएगा.

आखिर में उनका ये शेर
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने उस पार कर दिया
साहब अफवाह थी कि मेरी तबीयत खराब है
लोगों ने पूछ-पूछकर बीमार कर दिया
दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है

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ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया


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