राहुल गांधी ने 2004 में जब से पहला चुनाव लड़ा तभी से उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना तय था. ऐसे में अब कांग्रेस कार्यसमिति ने फैसला किया है कि अब इस 47 वर्षीय नेता को पद का भार सौंपने का समय आ गया है. नामांकन दाखिल हो चुका है. अब वे ऐसी पार्टी के मुखिया होंगे जो घातक और अंतिम पतन से बस थोड़ा ही बची हुई है. राहुल खुद भी निजी पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहे हैं. गुजरात में प्रचार के दौरान उन्होंने आत्मविश्वास का परिचय दिया. तीखे तेवर दिखाते हुए लड़ाई भाजपा के घर तक ले गए. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वे कांग्रेस को उबार लेंगे?
अब तक ऐसा रहा सियासी सफर...
2004: अपने 34वें जन्मदिन से जरा ही पहले राहुल गांधी अपने पिता राजीव गांधी की पुरानी सीट अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़े. कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा को झटका दे दिया.
2007: महासचिव बनाए गए और यूथ कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन का प्रभार दिया गया. युवाओं की राजनीति में सुधार लाने का वादा किया, युवा कांग्रेस में चुनाव शुरू करवाए. सदस्यता अभियान अभूतपूर्व स्तर पर चलाया.
2008: किसानों की आत्महत्या के बारे में एक भाषण में, राहुल ने संसद को महाराष्ट्र के सूखे से प्रभावित विदर्भ क्षेत्र की एक विधवा कलावती के बारे में बताया. भाषण राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बना. पत्रकारों की भीड़ कलावती के घर पहुंच गई.
2009: आम चुनावों में अमेठी सीट बरकरार रखी. रात में एक दलित के घर में रहे, खुले में खाना खाया, स्नान किया और सोए. भारत दर्शन शुरू किया. छह हफ्तों में 125 रैलियां संबोधित कीं.
2011: किसानों की जमीन के जबरदस्ती सस्ते दामों में अधिग्रहण के विरोध में भट्टा पारसौल गांव में राज्य सरकार के खिलाफहो रहे प्रदर्शन से जुड़े. यूपी पुलिस ने गिरफ्तार किया. बाद में यूपीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास विधेयक पारित किया.
2012: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 28 सीटें मिलीं. 16 दिसंबर को ज्योति सिंह की गैंगरेप-हत्या के बाद राहुल ने उसके दो भाइयों की शिक्षा का खर्च उठाया.
2013: कांग्रेस उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए. उन्होंने कहा, सत्ता जहर है. दोषी राजनेताओं को अयोग्य ठहराने से रोकने वाले अपनी ही पार्टी के प्रस्तावित अध्यादेश को "कंप्लीट नॉनसेंस' करार दिया. दिसंबर में कांग्रेस दिल्ली चुनाव में तीसरे स्थान पर आई. राहुल का दावा है कि वे कांग्रेस को उस तरह बदल देंगे, "जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते."
2014: आम चुनाव में कांग्रेस सिर्फ 44 सीटों पर सिमट गई. पार्टी के लोगों ने बहन प्रियंका से नेतृत्व देने की मांग की.
2015: विपश्यना के लिए दो महीने तक गायब रहे. नई ऊर्जा के साथ अप्रैल में उन्होंने मोदी सरकार के लिए :'सूट-बूट की सरकार' का मुहावरा दिया. सरकार को 2011 के भूमि अधिग्रहण विधेयक के संशोधन से भाग खड़े होने के लिए मजबूर किया. बिहार चुनाव जीतने के लिए लालू प्रसाद और नीतीश कुमार को साथ लाए.
2015-17: कांग्रेस महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, असम और केरल में चुनाव हारने के बाद कांग्रेस में उनके नेतृत्व पर राष्ट्रीय मजाक बनने का खतरा. यूपी में अखिलेश यादव के साथ गठबंधन घातक रहा. मणिपुर और गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी पर सरकार बनाने में विफल रही. केवल पंजाब में जीत हासिल हुई. पर इसका श्रेय अमरिंदर सिंह को गया.
2017: अमेरिकी विश्वविद्यालय के परिसर में प्रभावी भाषणों ने राहुल को गजब का आत्मविश्वास दिया. गुजरात में भाजपा के विकास के वादे का मजाक उड़ाता कांग्रेस का एक सोशल मीडिया अभियान—श्विकास गंडो थायो छे्य—वायरल हो जाता है, जो राहुल को ट्विटर अपनाने के लिए प्रेरित करता है. जीएसटी को 'गब्बर सिंह टैक्स' कहकर सुर्खियां बटोरते हैं तो अमित शाह के बेटे जय का, चतुराई से 'शाह-जादा' कह कर मजाक उड़ाते हैं.