राहुल गांधी ने अपनी जिंदगी के पचास साल का सफर ऐसे में समय में पूरा किया है, जब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए हुए उन्हें एक साल होने को जा रहा है. लेकिन अब तक पार्टी न तो राहुल को दोबारा पदभार संभालने के लिए मना पाई है और न ही उनका कोई विकल्प तलाश पाई है. पिछले 10 महीने से सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस को चला रही हैं. हालांकि, राहुल पिछले कुछ दिनों में अपनी छवि से इतर एक अलग छवि बनाने की कवायद जरूर करते दिखे हैं.
गौरतलब है कि बीते वर्ष लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने कांग्रेस को उसका खोया जनाधार वापस दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया था. लोकसभा चुनाव में 2 माह 8 दिन के चुनाव प्रचार में राहुल ने 148 रैलियां कीं, लेकिन देश भर में कांग्रेस को महज 52 सीटें मिल सकीं. इसके बाद हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने तब कहा था कि वो अध्यक्ष के रूप में काम नहीं करना चाहते लेकिन पार्टी के लिए काम करते रहेंगे. नया अध्यक्ष खोजने के लिए राहुल ने कांग्रेस को एक महीने की मोहलत दी थी.
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राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कुछ दिन तक तो यही पता नहीं चल रहा था कि कांग्रेस में अध्यक्ष का पद किसके पास है. कांग्रेस के नए अध्यक्ष के लिए पार्टी के कई नेताओं के नाम पर चर्चा होती रही लेकिन हफ्तों की माथापच्ची के बाद कांग्रेस के अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर फिर से सोनिया गांधी को कमान सौंप दी गई. इस तरह से 20 महीने के बाद अगस्त 2019 में दोबारा सोनिया गांधी पार्टी की अध्यक्ष बनीं.
सोनिया गांधी अपने पहले अध्यक्षीय कार्यकाल में बहुत सफल रही थीं, लेकिन अब वे 73 साल की हो चुकी हैं और अस्वस्थ होने के चलते पार्टी को भी उतना समय नहीं दे पा रही हैं, जितना पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनसे अपेक्षित है. सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन मध्य प्रदेश में पार्टी में फूट के चलते उसे सत्ता गवांनी पड़ी. कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच सोनिया थोड़ी सक्रिय नजर आईं. कांग्रेस कार्यसमिति की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बैठक कर उन्होंने पीएम मोदी को कुछ अहम सुझाव भी दिए.
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कांग्रेस के साथ दुविधा की स्थिति इसलिए भी है कि अगर वो दोबारा राहुल को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर लाना भी चाहे तो उसके लिए कोई माकूल वजह उसके पास नहीं है. सवाल उठेंगे कि आखिर राहुल ने इस्तीफा दिया क्यों था? और अगर दिया था तो अब ऐसा क्या बदल गया कि वो दोबारा पार्टी अध्यक्ष बनने को राजी हो गए हैं? यही वजह है कि पिछले एक साल से लगातार राहुल से अध्यक्ष पद संभालने की अपील पार्टी नेताओं द्वारा अलग-अलग स्तर पर होती है लेकिन पार्टी और राहुल खुद इसपर चुप्पी ही साधे रहे हैं.
कोरोना संकट और चीन सेना से हुई हिंसक झड़प ने राहुल गांधी को एक राजनीतिक अवसर दिया है, जिससे वह अपनी छवि संजीदा और संवेदनशील नेता की बना सकें और वापस विपक्ष की राजनीति में केंद्रीय भूमिका में आ सकें. कांग्रेस नेता भी ये बात समझ रहे हैं. वे लगातार यह बात प्रचारित कर रहे हैं कि राहुल गांधी देश में कोरोना संक्रमण के संकट को समझने वाले और उससे सावधान करने वाले पहले नेता थे. ऐसे ही चीन को लेकर जिस तरह से उन्होंने सवाल खड़े किए हैं, उससे भी उनकी गंभीरता बढ़ी है.
गौरतलब है कि 31 जनवरी को राहुल ने कोरोना को लेकर पहला ट्वीट किया, हालांकि उसका संदर्भ चीन से था. 12 फरवरी को राहुल ने भारत पर मंडराने वाले कोरोना संकट की तरफ सीधे तौर पर चेताया. उसके बाद से वे ट्विटर पर लगातार सक्रिय हैं. 15-16 मार्च के बाद के घटनाक्रम ने राहुल को सही साबित किया.राहुल गांधी भी कोरोना को लेकर अपने रुख को बेहद सियासी समझदारी से तय कर रहे हैं. उनके ट्वीट सरकार को घेरते हैं लेकिन उनका लहजा आक्रामक न होकर सुझाव देने वाला होता है.
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राहुल ने इस दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की जिनमें वो उन सवालों को टाल गए जिनमें सरकार की लापरवाही से संबंधित बात पूछी गई थी. इसके बजाय वे टेस्टिंग बढ़ाने, लॉकडाउन में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने, उनके खातों में पैसे डालने जैसी लोकलुभावन मांग ही उठाते रहे. हाल ही में राहुल दुनिया के अर्थशास्त्री और विशेषज्ञों के साथ कोरोना और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा कर मोदी सरकार को घेरते नजर आए हैं.
हाल ही में लद्दाख के गलवान घाटी के पास चीन और भारतीय सेना के बीच हुई हिंसक झड़प में देश के 20 जवान शहीद हो गए. चीन मामले को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर हैं. राहुल ने कहा कि बस, अब बहुत हुआ. हमें सच जानना है कि आखिर क्या हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिर चुप क्यों हैं? आप कहा छुप गए हैं आप बाहर आइए. हम सब आपके साथ खड़े हुए हैं. बाहर आइए और देश को सच्चाई बताइए, डरिये मत. आखिर चीन ने हमारे सैनिकों को मार कैसे दिया? उनकी हिम्मत कैसे हुई कि चीन ने हमारी जमीन को हड़प लिया.
राहुल दूध का जला, छाछ भी फूंक-फूंककर पीने वाली कहावत चरितार्थ करते हुए कोरोना पर अपनी प्रतिक्रियाओं को लेकर सजग हैं. वे जानते हैं कि इस संकट के टल जाने के बाद ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनेगा. जिसमें एक ओर सरकार इस संकट से निपटने के अपने प्रयासों को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही होगी और भारत को विकसित देशों की तुलना में बड़े नुकसान से बचाने की बात कह रही होगी, दूसरी ओर विपक्ष कमजोर अर्थव्यवस्था, नौकरियों का संकट, महंगाई, मजदूरों का पलायन आदि मुद्दों को लेकर सरकार को घेर रहा होगा. सरकार विरोधी खेमे के अगुआ राहुल ही होंगे और इसी से उनको कांग्रेस की कमान दोबारा संभालने का मौका भी मिलेगा.