सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया है. ये फैसला कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) में लिया गया. इससे पहले राहुल गांधी अध्यक्ष पद छोड़ने पर अड़ गए थे. राहुल गांधी द्वारा पार्टी नेताओं का आग्रह अस्वीकार किए जाने के बाद सीडब्ल्यूसी ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया. वह नए अध्यक्ष के चुनाव तक यह जिम्मेदारी निभाएंगी.
बहरहाल, राजनीतिक गलियारों में कहा जाने लगा है कि समृद्ध विरासत, बड़ा संगठन और जी-तोड़ मेहनत भी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सियासत के उस मुकाम तक नहीं पहुंचा सकी, जहां उनसे पहले गांधी-नेहरू परिवार के कई लोग न सिर्फ पहुंचे, बल्कि लंबे समय तक बने रहे.
संगठन में चुनाव की परंपरा शुरू की
कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनके करीब 20 महीने के सफर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावी जीत के तौर पर बड़ी सफलताएं मिलीं, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी की करारी हार उनकी नाकामी की बड़ी इबारत लिख गया. अध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी ने पार्टी की कार्य संस्कृति में बदलाव का प्रयास किया. उन्होंने टिकट आवंटन, संगठन की कार्यशैली में पारदर्शिता लाने के लिए कदम उठाया और संगठन में चुनाव कराने की परंपरा शुरू की.
चुनावी रणनीति की तारीफ
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र राहुल ने अपनी सियासी पारी के आगाज से ही मीडिया, आमजन और बौद्धिक वर्ग का ध्यान खींचा और पहले पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने फिर दिसंबर, 2017 में गुजरात चुनाव के समय कांग्रेस अध्यक्ष बने. गुजरात के चुनाव में कांग्रेस भले ही मामूली अंतर से हार गई, लेकिन कई सियासी जानकारों ने राहुल गांधी के नेतृत्व और पार्टी की चुनावी रणनीति की तारीफ की.
राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद 2018 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हुई तो 2018 में हुए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत ने उनके नेतृत्व में पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास बढ़ाने का काम किया.
अमेठी से मिला दोहरा झटका
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की जीत से उत्साहित राहुल गांधी को लगा कि 2019 के चुनाव में केंद्र की सत्ता में भी वापसी होगी, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की बड़ी जीत ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया. अपनी परंपरागत अमेठी सीट पर राहुल की हार से उन्हें दोहरा झटका लगा.
लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की स्थिति यह है कि वह 2014 के अपने 44 सीटों के आंकड़ों में महज कुछ सीटों की बढ़ोतरी कर पाई और उसे 52 सीटें मिलीं. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी कई जानकारों का यह कहना था कि अगर कांग्रेस सीटों का शतक भी लगा लेती है तो वह उसके और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी लिए सहज स्थिति होती.
न्याय की गारंटी पर फिरा पानी
राहुल गांधी ने राफेल मुद्दे के अलावा न्यूनतम आय गारंटी (न्याय) योजना को शानदार तरीके से पेश किया. कांग्रेस पार्टी को उम्मीद थी कि गरीबों को हर महीने 6 हजार रुपये देने का उसका वादा बीजेपी के राष्ट्रवाद की बहस को धूमिल कर देगा, लेकिन हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी शिकस्त के बाद 25 मई को हुई पार्टी कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उस वक्त उनके इस्तीफे को अस्वीकार करते हुए सीडब्ल्यूसी ने उन्हें पार्टी में आमूलचूल बदलाव के लिए अधिकृत किया था, हालांकि राहुल गांधी अपने रुख पर अड़े रहे और स्पष्ट कर दिया कि न तो वह और न ही गांधी परिवार का कोई दूसरा सदस्य इस जिम्मेदारी को संभालेगा. वैसे, राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि वह अध्यक्ष नहीं रहते हुए भी पार्टी के लिए सक्रियता से काम करते रहेंगे.