कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी जल्द ही पार्टी के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं. आजादी के बाद कांग्रेस में अबतक 16 अध्यक्ष हुए हैं और राहुल गांधी के पार्टी के 19वें अध्यक्ष होने जा रहे हैं. कांग्रेस में सोनिया गांधी ने जितने साल पार्टी की अध्यक्षता की है उतने ही साल जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तीनों ने मिलकर अध्यक्ष पद संभाला है.
38 साल से गांधी परिवार का राज
कांग्रेस पार्टी में 19 साल से सोनिया अध्यक्ष हैं, जबकि नेहरू 4 साल, इंदिरा 8 साल और राजीव गांधी 7 साल तक अध्यक्ष रह चुके हैं. साफ है कि 70 साल की आजादी में 38 साल तक गांधी परिवार के लोग ही पार्टी अध्यक्ष रहे हैं. बाकी बचे 32 साल में जेबी कृपलानी, पी सितारमैया, पुरुषोत्तम दास टंडन से लेकर कामराज, जगजीवनराम और पीवी नरसिम्हा राव, सीताराम केसरी ने भी अध्यक्ष पद संभाला.
अतीत के आसरे भविष्य की राह
आजादी से पहले के 61 बरस यानी 1985 से 1946 तक कांग्रेस में 50 अध्यक्ष बने और अध्यक्ष होने की इस फेरहिस्त में गोखले से लेकर महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम आजाद और सरदार पटेल से लेकर मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, दादा भाई नौरोजी और सुभाष चंद्र बोस से लेकर राजेन्द्र प्रसाद तक अध्यक्ष रहे. तो राहुल गांधी अपने परिवार के अलावा भी आजादी के लड़ाई में शामिल नेताओं से सीख लेकर पार्टी की कमान संभाल सकते हैं.
सिर्फ 4 महिलायें ही रहीं अध्यक्ष
पार्टी में अध्यक्ष पद सिर्फ चार महिलाओं ने ही संभाला. इनमें एनी बेंसट, सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी और सोनिया शामिल हैं. अध्यक्षों की इस पेरहिस्त में सोनिया और इंदिरा से पहले जो दो महिलाये कांग्रेस अध्यक्षा रहीं उसमें 1917 में एनी बेंसट तो 1925 में सरोजनी नायडू का नाम है.
कांग्रेस अध्यक्षों का ये इतिहास दिखलाता है कि एक वक्त कांग्रेस ही देश का प्रर्याय थी. लेकिन मौजूदा वक्त कांग्रेस अपने होने के एहसास में सबसे कमजोर है और 19 बरस बाद जब सोनिया गांधी से राहुल के हाथ में कांग्रेस की कमान आयेगी तो राहुल गांधी के सामने सवाल तीन होंगे. विरासत, पुनर्जागरण और संघर्ष. इन तीन कसौटियों पर खरा उतरकर ही राहुल कांग्रेस को मौजूदा वक्त में उबार पाएंगे.
मोदी लहर से निपटने की चुनौती
पार्टी जिस हाल में अभी है वहां से संघर्ष बहुत कड़ा करना होगा, क्योंकि देशभर में मोदी लहर ऐसी है कि कांग्रेस मुक्त भारत का सपना संजोए बीजेपी जनमानस की बीच जा पहुंची है. कांग्रेस को अपने काडर में नए जागरण की भी जरुरत होगी, क्योंकि हाल के दिनों में विपक्ष की भूमिका सिमटती जा रही है और उसे लड़ाई न सिर्फ संसद तक बल्कि सड़कों पर उतर के करनी होगी.
बीते कुछ दिनों में राहुल गांधी में वो जोश दिखा भी है जिससे लगता है कि वो आगे आकर कमान संभालने को तैयार हैं. लेकिन पद के बाद उनके सामने पार्टी, काडर और जनता तीनों को साथ लेकर चलने की चुनौती भी होगी.