राहुल गांधी कांग्रेस के अगले अध्यक्ष होने जा रहे हैं, उनके हाथों में पार्टी की कमान ऐसे समय आ रही है जब वह अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इतिहास गवाह है कि नेहरू-गांधी परिवार से जो भी अध्यक्ष बना उसने पार्टी के आगे बढ़ाया ही है, अब राहुल पर इस रिकॉर्ड को बनाए रखने की चुनौती होगी.
जानते हैं देश की सबसे पुरानी पार्टी के नए मुखिया जो अपने खास 'नवरत्नों' के सहारे कांग्रेस को 'दुख भरे दिन' से बाहर ले जा सकते हैं
सचिन पायलट
देश के सबसे संजीदा राजनेताओं में सचिन पायलट का नाम शीर्ष पर लिया जाता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेश पायलट के शहजादे 15वें लोकसभा में अजमेर के सांसद रहे थे, हालांकि 2014 के चुनाव में वह 'मोदी लहर' का शिकार बने और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 40 वर्षीय सचिन फिलहाल राजस्थान में पार्टी के राज्य प्रमुख हैं और उनकी राहुल के साथ अच्छी ट्यूनिंग है.
मीनाक्षी नटराजन
राहुल के नवरत्नों में मीनाक्षी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. वह छात्र राजनीति के दौरान तेजतर्रार नेता के रूप में उभरीं और भावी अध्यक्ष की खास बनती चली गईं. कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई की अध्यक्ष रहीं, फिर मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस की अगुवाई भी किया.
साल 2008 में राहुल ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का सचिव बनाया. फिर 2009 के आम चुनाव में उन्हें मंदसौर से टिकट दिया गया, जिस पर बड़ी जीत हासिल कर संसद पहुंची. हालांकि 2014 के चुनाव में हार मिली. लेकिन राहुल का भरोसा कायम रहा और उन्हें गुजरात में भाजपा के 22 साल के शासन को खत्म करने के लिए इस युवा नेता को अपनी खास टीम में शामिल किया हुआ है
ज्योतिरादित्य सिंधिया
अध्यक्ष पद के लिए नामांकन के दौरान राहुल गांधी के साथ हर पल रहने वाले ज्योतिरादित्य उनके लिए सबसे बड़े संकटमोचक बन सकते हैं. जिस तरह से राहुल राजनीतिक वंशवाद से आगे आए हैं उसी तरह से सिंधिया खानदान का यह चिराग भी आगे आया है. 2014 में 'मोदी लहर' के बीच मध्य प्रदेश के गुना संसदीय क्षेत्र से वह जीत हासिल की और लोकसभा पहुंचने में कामयाब रहे.
मध्य प्रदेश की राजनीति में बीजेपी राज के दौरान अपनी अहमियत कई बार साबित की है और न सिर्फ नरेंद्र मोदी बल्कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती देते रहे हैं. हाल के दिनों में उन्होंने खुद को अपने राज्य में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पहचान भी बनाई है.
अध्यक्ष बनने की सूरत में राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी शुभचिंतक उनकी छोटी बहन प्रियंका गांधी होंगी. फिलहाल वह राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन नाजुक मौकों पर उनके लिए मददगार बन सकती हैं. माना जा रहा है कि पर्दे के पीछे रणनीति बनाने और सलाहकार की भूमिका में रहेंगी. जहां तक मैदान में साथ-साथ चलने का सवाल है तो वह हमेशा की तरह रायबरेली और अमेठी में ही प्रचार करने तक खुद को सीमित रख सकती हैं
सैम पित्रोदा
सत्यनारायण गंगाराम पित्रोदा जिन्हें दुनिया सैम पित्रोदा के नाम से जानती है, भी राहुल के नवरत्नों में शामिल हो सकते हैं. वैसे वो राहुल के पिता राजीव गांधी के बेहद करीबी और उनके कई निर्णायक फैसलों के पीछे पित्रोदा का दिमाग माना जाता है. 75 बरस के हो चुके इंजीनियर और उद्धोगपति पित्रोदा पर अभी भी गांधी परिवार जमकर भरोसा करता है. खबरें यह भी है कि गुजरात चुनाव में राहुल के लिए खास तरह की रणनीति वही बना रहे हैं. पिछले दिनों अमेरिका में राहुल के सफल कार्यक्रमों का श्रेय पित्रोदा को ही जाता है
कांग्रेस के प्रवक्ता और हरियाणा से विधायक रणदीप के लिए राहुल गांधी के नवरत्नों में से एक हैं. मौजूदा समय वह केंद्र में सत्तारुढ़ बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. वह कांग्रेस के संचार विभाग के प्रमुख के तौर कार्यरत हैं और बीजेपी पर लगातार हमला करने के कारण राहुल के करीब होते जा रहे हैं.
मिलिंद देवड़ा
मिलिंद कांग्रेस के उन चंद युवा नेताओं में शुमार हैं जो अपनी बेहतरीन संवाद शैली के कारण पहचाने जाते हैं. यूपीए-2 में वह राज्य मंत्री के रूप में काम किया और सुर्खियां भी बटोरी. इस साल सितंबर में राहुल के चर्चित अमेरिकी दौरे के दौरान मिलिंद भी उनके साथ थे और सोशल मीडिया में सक्रिय भी रहते हैं
कोप्पूला राजू
देश की राजनीति में दलित कार्ड हमेशा ट्रंप कार्ड जैसा रहा है और हर पार्टी इस कार्ड के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है. ऐसे में नौकरशाह से राजनीति में कदम रखने वाले राजू राहुल के लिए बड़े उपयोगी साबित हो सकते हैं. फिलहाल वो इस समय कांग्रेस की अनुसूचित जाति विंग के प्रमुख हैं और पार्टी के दलित कार्ड की रुपरेखा तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका है.
शशि थरूर
अंतरराष्ट्रीय मामलों के बड़े जानकार शशि राहुल के नवरत्नों में शामिल किए जा सकते हैं, उनके पास अंतरराष्ट्रीय स्तर की जितनी सूझबूझ है उतनी शायद उनकी पार्टी में किसी और को होगी. लंबे समय तक वह संयुक्त राष्ट्र से जुड़े रहे हैं और बतौर डिप्लोमैट काफी सफल भी रहे हैं.
वह कांग्रेस के उन 44 सांसदों में से एक हैं जिन्होंने 2014 में 'मोदी लहर' के बीच खुद का वजूद बचाए रखा और लोकसभा में पहुंचने में कामयाब रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार विदेश दौरे को लेकर घेरने के वास्ते वह राहुल के लिए मददगार साबित हो सकते हैं.