एम्स के वार्ड में लालू प्रसाद यादव के साथ राहुल गांधी की तस्वीर सामने आई तो देखकर कई लोग हैरान हुए. ये वही लालू यादव हैं जिनके साथ 2014 के लोकसभा चुनावों में गठबंधन होने के बावजूद राहुल गांधी ने मंच साझा करने से इनकार कर दिया था. लालू उस समय जमानत पर थे जबकि इस समय तो वो सजायाफ्ता कैदी हैं और तकनीकी रूप से जेल में ही हैं. वो अप्रैल-2014 का महीना था और अब ठीक चार साल बाद ये तस्वीर सामने आने के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या राहुल बदल गए हैं या कांग्रेस के हालात?
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में लालू यादव की पार्टी आरजेडी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए में सहयोगी पार्टी थी. इसके बावजूद राहुल ने उनके साथ मंच साझा करने से परहेज किया. अब जब लालू चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता हैं. इसके बावजूद राहुल गांधी का एम्स जाकर मिलना सियासत के बदले समीकरण की ओर इशारा कर रहा है जिसमें दांव पर 2019 की बाजी है.
मौजूदा दौर की सियासत में कांग्रेस इस राजनीतिक हैसियत में नहीं है कि 2019 में अकेले दम पर पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी को सत्ता में आने से रोक सके. पार्टी विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में है लेकिन टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव गैरकांग्रेसी और गैरबीजेपी थर्ड फ्रंड की कवायद में जुटे हैं. अगर लालू यादव की आरजेडी इस कवायद को समर्थन दे दे तो कांग्रेस और राहुल के 2019 में सत्ता में वापसी के मंसूबे फेल हो सकते हैं. यही वजह है कि राहुल गांधी अपने सियासी किले को मजबूत करने में लगे हैं.
बिहार की सियासत में आरजेडी एक बड़ी सियासी ताकत है. लालू के जेल जाने के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे तेजस्वी यादव के हाथ में है. वो लगातार पार्टी को मजबूत करने में लगे हैं. नीतीश से अलग होने के बावजूद बिहार में आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन जारी है. राहुल और तेजस्वी इसे मजबूत करने में जुटे हैं. इसी के मद्देनजर पिछले दिनों राहुल गांधी ने तेजस्वी के साथ लंच भी किया था, जिसे दोनों नेताओं की लंच डिप्लोमेसी कहा गया था.
राहुल ने तेजस्वी के बाद अब खुद लालू यादव से मुलाकात की. हालांकि इसे शिष्टाचार भेंट बताया जा रहा है क्योंकि लालू की तबीयत ठीक नहीं है और वो एम्स में अपना इलाज करवा रहे थे लेकिन ये मुलाकात ऐसे समय में हुई है, जब कांग्रेस ने एक दिन पहले ही रामलीला मैदान से जन आक्रोश रैली के जरिए 2019 के चुनाव अभियान का आगाज किया है. इसलिए इस मुलाकात को भी सियासत से अछूता नहीं माना जा रहा.
लालू यादव खुलकर कांग्रेस और राहुल के समर्थन में बोल रहे हैं. पिछले दिनों उन्होंने साफ कहा था कि कांग्रेस के बिना थर्ड फ्रंड की बात अधूरी है. हालांकि राहुल के नेतृत्व के सवाल को वो टाल गए थे. कांग्रेस अखिलेश यादव और मायावती के गठबंधन से उत्साहित है. अगर लालू-तेजस्वी का भरोसा जीतने में कामयाब रही तो यूपी-बिहार जैसे बड़े राज्यों में अपने सीमित जनाधार के बावजूद पार्टी मोदी और अमित शाह का विजय रथ रोकने में कामयाब हो सकती है.
यही वजह है कि राहुल 2014 का चुनाव अभियान भूल गए हैं और लालू प्रसाद यादव भी भूलने को तैयार हैं कि किस तरह राहुल के अध्यादेश फाड़ने के चलते वे दोषी ठहराए जाने के चलते चुनावी राजनीति से बाहर हो गए.