पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस जिस तरह प्रत्याशियों का चयन कर रही है, उससे यह साफ होता जा रहा है कि यह पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी का 'वन मैन शो' साबित हो सकता है. पार्टी के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब राहुल गांधी के कद का नेता एक-एक टिकट खुद फाइनल कर रहा हो.
सूत्रों की मानें, तो राहुल गांधी ने सभी राज्यों के लिए पहले से ही अपने लोगों से सर्वे कराकर रख लिया था. जब पार्टी अध्यक्ष या प्रदेश कांग्रेस अपना पैनल या प्रत्याशी टिकट के लिए सामने लाते हैं, तो राहुल उस नाम का मिलान अपने गोपनीय सर्वे के नाम से कराते हैं. अगर ये नाम उनकी लिस्ट से मेल खाता है, तभी नाम पास होता है. ऐसा न होने पर दुबारा नाम मंगाया जाता है.
सूत्रों की मानें, तो छत्तीसगढ़ के लिए अब तक जारी सभी 17 नामों में से ज्यादातर युवा चेहरे हैं और ये ऐसे नेता हैं जिनको लेकर प्रदेश नेतृत्व बहुत उत्साहित नहीं था. लेकिन राहुल ने इन्हीं लोगों को टिकट देने का फैसला किया.
सूत्रों की मानें, तो जब छत्तीसगढ़ के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चरणदास महंत सूची लेकर बैठक में पहुंचे तो उन्हें राहुल के कड़े और सीधे सवालों का सामना करना पड़ा. बैठक में मौजूद एक नेता ने बताया, ‘वैसे तो वहां कई लोग मौजूद थे, लेकिन सवाल सिर्फ राहुल जी पूछ रहे थे और महंत किसी तरह जवाब दे रहे थे.’
मामला सिर्फ छत्तीसगढ़ का नहीं है. दिल्ली की कद्दावर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी इसीलिए प्रत्याशियों की सूची फाइनल नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि उनकी सूची के बहुत से नाम राहुल गांधी की सूची से मेल नहीं खा रहे हैं. राहुल की इस मुस्तैदी का ही असर है कि मध्य प्रदेश में सब बड़े नेता एक मंच पर दिख रहे हैं और प्रत्याशी का नाम बढ़ाने से पहले 10 बार सोच रहे हैं. दिगिवजय सिंह जैसे कद्दावर नेता ने खुद को टिकट वितरण से अगल ही कर लिया है.
पहले दागी नेताओं संबंधी अध्यादेश को पूरी दबंगई से खारिज कराना और उसके बाद विधानसभा चुनावों को पूरी तरह अपने हाथ में लेना. ये दो ऐसी ताजा घटनाएं हैं जो राहुल गांधी की पारंपरिक छवि को तोड़ रही हैं. अब तक यही माना जाता रहा है कि राहुल गांधी सक्रिय राजनीति में बड़ी जिम्मेदारी निभाने से बिदकते रहे हैं, लेकिन अब तो लगता है कि वह नई लीक बनाने की तैयारी में हैं.