कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है या फिर नए जमाने का कोई कॉरपोरेट दफ्तर? एनएसयूआई अध्यक्ष का चुनाव भी टैलेंट हंट के जरिये किया जा रहा है.
साल 2010 से यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई में राहुल ने टैलेंट हंट के ज़रिए पदों को भरने की प्रक्रिया शुरू की थी, तब से कांग्रेस के भीतर सीनियर नेताओं का बड़ा गुट इसकी आलोचना करता रहा है. लेकिन फैसला राहुल का है तो भला कोई खुलकर बोले कैसे?
दिल्ली एमसीडी चुनावों में हार के बाद एनएसयूआई की राष्ट्रीय अध्यक्ष अमृता धवन ने इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद अब पार्टी की वेबसाइट पर फॉर्म डाला गया है. इसमें अध्यक्ष पद के लिए 8 मई तक आवेदन मांगे गए हैं, जिनकी जांच 12 मई तक होगी. छंटनी के बाद 15 और 16 मई को वॉक इन इंटरव्यू होगा. इस पूरी प्रक्रिया की देखरेख महासचिव मुकुल वासनिक और सचिव गिरीश के जिम्मे है.
लिखित सवाल भी होंगे
वैसे इस राजनीतिक नियुक्ति में लिखित सवाल भी होंगे. सवाल इस तरह के हो सकते हैं-
1. देश में इस वक़्त कौन से पांच बड़े मुद्दे हैं, उनमें से किसी एक को 300 शब्दों में बताइये.
2. एनएसयूआई में आपको क्या कमियां दिखती हैं, उससे निजात पाने के आपके पास क्या तरीके हैं?
3. अगले एक साल में एनएसयूआई के लिए आपके पास क्या रोड मैप है?
3. एनएसयूआई में और क्या अवसर हो सकते हैं?
इससे पहले भी राहुल टैलेंट हंट के जरिये ही एनएसयूआई और यूथ में नेताओं को चुनते रहे हैं, जिसकी पार्टी के बड़े तबके में खासी आलोचना होती रही है, लेकिन राहुल खेमे का मानना है कि इसमें ओपन चयन प्रक्रिया के जरिये सभी को पूरा मौका मिलता है और पारदर्शी तरीके से चयन होता है, साथ ही सिर्फ बड़े नेताओं की चमचागीरी करके पद पाने का कल्चर भी खत्म होता है.
वैसे राहुल खेमा इसको लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बढ़ावा देने वाला बताता है. उनके मुताबिक एनएसयूआई में टैलेंट हंट और यूथ कांग्रेस में चुनावी प्रक्रिया लाकर राहुल ने पार्टी में लोकतंत्र को मजबूत किया है. साथ ही लोकसभा प्रत्याशी के चयन में भी राहुल ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पार्टी संगठन में चुनाव कराए थे. हालांकि वो सभी 15 चुनाव हार गए थे. साथ ही बड़े नेता एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की खस्ता हालत के लिए भी राहुल के बदलावों को ही जिम्मेदार मानते हैं.
बड़े नेताओं का मानना है कि राजनीति का अपना कल्चर होता है और कॉरपोरेट जगत का अपना, लेकिन राजनीति में राहुल की एनजीओ मार्का स्टाइल और कॉरपोरेट कल्चर पार्टी की जड़ों को ही कमज़ोर कर रहे हैं. याद रहे कि दिल्ली विधानसभा चुनावों की बड़ी हार के बाद राहुल ने कहा था कि वह आम आदमी पार्टी और केजरीवाल से सीखेंगे. तभी एक बड़े नेता ने टिप्पणी की थी कि, क्या अब पार्टी को एनजीओ बनाने की तैयारी है, क्योंकि केजरीवाल तो एनजीओ मार्का राजनीति करके ही आगे आए हैं.
दरअसल, राहुल अपने अंदाज़ से पार्टी को बदलना चाहते हैं, लेकिन पिछले 10 सालों में उनके ज़्यादातर ऐसे प्रयोग फ्लॉप साबित हुए हैं. साथ ही पार्टी की हालत भी बद से बदतर हो गयी है. ऐसे में नाम ना छापने की शर्त पर एक नेता ने कहा कि बेहतर होगा पार्टी को बदलने में जुटे राहुल खुद ही बदल जाएं तो आधी मुश्किलें खुद हल हो जाएंगी, लेकिन फिलहाल तो राहुल हैं कि मानते नहीं...