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पिछले महीने ही हुआ था कानपुर के पास रेल हादसा, नहीं लिया सबक

उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास बुधवार सुबह सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस पटरी से उतर गई. बताया जा रहा है कि इस ट्रेन के 15 डिब्बे पटरी से उतर गए जिससे ये हादसा हुआ.अभी गत 20 नवंबर को ही कानपुर के पास ही पुखरायां में हुए एक बड़े रेल हादसे में करीब 142 लोगों की मौत हो गई थी, लेकिन तमाम हादसों के बाद भी भारतीय रेल अपने मुसाफिरों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है, यह कानपुर के पास फिर से रेल हादसे से साफ हो गया है.

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कानपुर के पास नवंबर में भी हुआ था बड़ा ट्रेन हादसा
कानपुर के पास नवंबर में भी हुआ था बड़ा ट्रेन हादसा

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उत्तर प्रदेश के कानपुर के पास बुधवार सुबह सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस पटरी से उतर गई. बताया जा रहा है कि इस ट्रेन के 15 डिब्बे पटरी से उतर गए जिससे ये हादसा हुआ.परेशान करने वाली बात यह है कि अभी गत 20 नवंबर को ही कानपुर के पास ही पुखरायां में हुए एक बड़े रेल हादसे में करीब 142 लोगों की मौत हो गई थी, जब इंदौर-पटना इंटरसिटी ट्रेन के 14 डिब्बे पटना से उतर गए थे. हादसे के बाद कुछ कोच पूरी तरह मलबे में तब्दील हो गए थे. लेकिन तमाम हादसों के बाद भी भारतीय रेल अपने मुसाफिरों की सुरक्षा को लेकर कितनी गंभीर है, यह कानपुर के पास फिर से रेल हादसे से साफ हो गया है.

वैसे तो हमारे देश में हर साल कई छोटी-बड़ी ट्रेन दुर्घटनाएं होती रहती हैं और इनमें 86 फीसदी हादसे मानवीय भूलों की वजह से होते हैं. लेकिन इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा रेल सिस्टम होने के बावजूद भारतीय रेल अब भी ब्रिटिश काल के इंफ्रास्टक्चर पर चल रही है. जिस हिसाब से पटरियों पर रेलवे ट्रैफिक का दबाव बढ़ रहा है, उस हिसाब से इंफ्रास्टक्चर अपग्रेड नहीं हो पा रहा है. एक ओर तो सरकार बुलेट ट्रेन चलाने की योजना बना रही है, दूसरी ओर मूलभूत ढांचे में बदलाव नहीं होने की वजह से सामान्य ट्रेनों को हादसों से बचाने में सरकार नाकाम दिख रही है. रेलवे के सामने सेफ्टी एक बड़ा मसला बना हुआ है. सिग्नलिंग सिस्टम में चूक और एंटी कॉलीजन डिवाइसेज की कमी से भी आए दिन हादसे होते रहते हैं.

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कागजों पर ही रह जाती हैं सिफारिशें
वर्ष 1998 में बनी जस्टिस एच आर खन्ना कमेटी ने सेफ्टी को लेकर तमाम सिफारिशें की थीं. ये सिफारिशें रेलवे ने मान तो ली हैं लेकिन ये अभी कागजों पर ही दिखती हैं, जमीनी तौर पर इन्हें लागू किया जाना बाकी है. कमेटी ने रेलवे के डिब्बों के बीच होने वाले घर्षण में सुधार के लिए अमेरिका और यूरोप की एजेंसियों से तालमेल कर जरूरी ऊपाय किए जाने की सलाह दी थी. मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्युनिकेशन को प्रायरिटी पर रखने जाने की सलाह दी गई थी लेकिन अब भी यह मसला 'लो प्रायरिटी' पर है. रेलवे क्रॉसिंग पर सिग्नल की व्यवस्था में सुधार किए जाने की जरूरत है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई खासकर देश के 23,000 मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग पर. डिजैस्टर ट्रेनिंग सेल बनाए जाने की बात भी खन्ना कमेटी ने की थी, लेकिन आपदा प्रबंधन का स्तर अब भी उस स्तर पर नहीं है. सबसे जरूरी सिफारिश यह की गई थी कि रेल हादसों के बाद होने वाली जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए ताकि मुसाफिरों के भीतर भरोसा जगाया जा सके लेकिन इस सिफारिश को तो अभी तक माना ही नहीं गया है.

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