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सुरेश प्रभु ने लुमदिंग-सिलचर ब्रॉड गेज लाइन का उद्घाटन किया, वीडियो कांफ्रेंसिंग से हुआ उद्घाटन

असम का अविकसित बराक घाटी शुक्रवार को रेलवे के ब्रॉड गेज के नक्शे पर आ गया. रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने महत्वपूर्ण लुमदिंग-सिलचर ब्रॉड गेज लाइन का उद्घाटन नई दिल्ली से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए एक मालगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर किया.

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रेल मंत्री सुरेश प्रभु
रेल मंत्री सुरेश प्रभु

असम का अविकसित बराक घाटी शुक्रवार को रेलवे के ब्रॉड गेज के नक्शे पर आ गया. रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने महत्वपूर्ण लुमदिंग-सिलचर ब्रॉड गेज लाइन का उद्घाटन नई दिल्ली से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए एक मालगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर किया. इस मालगाड़ी में पश्चिम बंगाल का 2,300 टन आलू लदा था. इस मार्ग पर सवारी गाड़ियों की सेवा जल्द शुरू होगी.

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कुल 210 किलोमीटर लंबी इस लाइन से बराक घाटी की तस्वीर बदल जाने की उम्मीद है. इसे बाद में त्रिपुरा तक विस्तारित किया जाएगा. पूर्वोत्तर फ्रंटियर रेलवे के प्रवक्ता एस.लाहिरी ने गुवाहाटी में कहा कि मालगाड़ी प्राचीन प्रिस्तीन बरेल घाटी में दाखिल हो चुकी है. यह लाइन पूरे क्षेत्र के लिए जीवन रेखा समझी जा रही है और यह खाद्यान्न, उर्वरक और तेल उत्पादों आदि के लिए महत्वपूर्ण होगी.

इस लाइन में 21 सुरंगें तथा 79 बड़े पुल है. सबसे लंबी सुरंग की लंबाई 3.2 किलोमीटर है. सबसे लंबा पुल दयांग पुल की लंबाई 54 मीटर है. मालगाड़ी को हरी झंडी दिखाने के बाद रेलमंत्री ने कहा, 'यह रेल लाइन बराक घाटी और त्रिपुरा, मणिपुर व मिजोरम की जीवन-रेखा होगी.' उन्होंने कहा, 'इस परियोजना से आवश्यक सामग्रियों जैसे कि खाद्यान्न, उर्वरक और तेल उत्पादों की इस क्षेत्र में आवाजाही सुनिश्चित होगी.'

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पूर्वोत्तर में संपर्क बहाली के संदर्भ में लुमदिंग-सिलचर लाइन एक बड़ी उपलब्धि है और 3500 करोड़ की लागत से यह देश की सबसे बड़ी गेज परिवर्तन परियोजनाओं में से एक है. इस परियोजना को विषम परिस्थितियों वाले पहाड़ी इलाके और कानून-व्यवस्था की चुनौतियों के बीच पूरा किया गया और इसे सभी मामलों में एक बेहतरीन इंजीनियरिंग कार्य के रूप में सराहा जा रहा है. इस परियोजना को पूरा करने में कई रेलकर्मियों ने अपनी जान दे दी.

लुमदिंग-सिलचर गेज परिवर्तन परियोजना को पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के तहत 1996-97 में मंजूरी दी गई थी और इसे 2004 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया. अलगाववाद की वजह से 2006 से 2009 तक कार्य बाधित हुआ और क्षेत्रीय सेना को इस क्षेत्र में तैनात किया गया. 2009 के बाद ही कार्य सुचारू रूप से चला.

इनपुट: IANS

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