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रेल के खाने का 'आजतक' पर टेस्ट, यात्री बोले- प्रभु जी हमें अच्छा खाना खिला दो!

हिंदुस्तान की लाइफ लाइन भारतीय रेलवे. हम सभी अकसर, आए दिन ट्रेन का सफर करते ही रहते हैं. इस दौरान कई बार ट्रेन में मिलने वाला खाना भी खाते हैं. हम सब जानते हैं कि ट्रेन में मिलने वाले खाने की घर के खाने से तुलना नहीं की जा सकती लेकिन लंबे सफर में कई बार पेट भरने के मजबूरी हो जाती है.

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ट्रेन में खराब क्वालिटी के खाने से यात्री परेशान
ट्रेन में खराब क्वालिटी के खाने से यात्री परेशान

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हिंदुस्तान की लाइफ लाइन भारतीय रेलवे. हम सभी अकसर, आए दिन ट्रेन का सफर करते ही रहते हैं. इस दौरान कई बार ट्रेन में मिलने वाला खाना भी खाते हैं. हम सब जानते हैं कि ट्रेन में मिलने वाले खाने की घर के खाने से तुलना नहीं की जा सकती लेकिन लंबे सफर में कई बार पेट भरने के मजबूरी हो जाती है. लिहाजा साफ सफाई और गुणवत्ता से मजबूरी में समझौता कर लेते हैं. लेकिन अगर ट्रेन के खाने में कॉकरोच और छिपकलियां मिलने लगे तब यात्री क्या करे.

पटना लोकमान्य तिलक एक्सप्रेस से मुंबई के लिए चले मलय ठाकुर ने पहली बार पाक कला का ऐसा नायाब उदाहरण देखा था. अंडा बिरयानी सुना था, चिकन बिरयानी सुना था. मटन बिरयानी सुना था. ये भारतीय रेलवे की ताजी तरीन पेशकश थी तिलचट्टा बिरयानी, बोले तो कॉकरोज. भाई लोगों ने किया तो एहसान था. लेकिन मलय ठाकुर ने थाली देखी तो दिल धक से रह गया. हमने तो अंडा कहा था ये सरिसृप वर्ग का प्राणी प्लेट में कैसे.

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मलय ठाकुर पढ़े लिखे थे, ट्विटर पर भी थे. कॉकरोच बिरयानी की थाली की फोटो खींची और सीधे सुरेश प्रभु के टेबल पर पहुंचा दी. प्रभु ने अपनी रेल की माया देखी तो उछल पड़े. ट्वीट को अफसरों को अग्रेसित कर दिया. इसके बाद तो अफसरों की फौज सात्विक थाली लेकर सतना स्टेशन की ओर दौड़ी. मलय ठाकुर की बर्थ तक पहुंच गए. साहब स्वाद नहीं आया? हम कार्रवाई के वादे का चाट मसाला लेकर आए हैं. पूर्वा एक्सप्रेस में तो यात्री ने ऑर्डर किया शुद्ध शाकाहारी और सामने दस्तख्वान सजाया गया तो करारी तली हुई छिपकली साक्षात थाली में लेटी हुई थी.

देश के ज्यादातर रेलवे स्टेशनों में कैंटीन का यही हाल है.

इलाहाबाद

ट्रेन में अपनी बर्थ में बैठकर चमचमाती सिल्वर फाइल में लिपटा रेलवे का खाना देखकर अगर आपकी भी जीभ लपलपाती हो जज्बात पर जरा काबू रखिए. यहां इडली डोसे बनाते वक्त डोसे का तवा जिस कपड़े से साफ किया जा रहा था उसे देखकर रसायनशास्त्र शास्त्र की रंग और गंध की तमाम परिभाषाएं याद हो आईं.  

इलाहाबाद में रसोई से बाहर निकलें तो स्टेशन पर बिकने वाले खाने की हकीकत भूख ही मार देती मिटा देती है. खुले में बिकने वाले खाने पर भिनभिनाती मक्खियां और खाने के स्टॉल के नजदीक ही खुला पड़ा कूड़ेदान. दुर्गंध और भोजन का ऐसा मेल देखकर कसम से मजा ही आ जाता है. भारत ऐसे हरी स्वच्छ थोड़े न हो रहा है.

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कानपुर

कानपुर स्टेशन का इस फ्रूट जूस स्टॉल का जूस पी लीजिए तो जनम-जनम तक जूस पीने की इच्छा नहीं होगी. डायरेक्ट मोक्ष का बंदोबस्त है. गिलास पर मक्खियां ऐसे भिनभिना रही थीं जैसे पिकासो मोनालिसा कीपेंटिंग बनाने से पहले रंगों से खेल रहे हों. मक्खियों का ऐसा गुलदस्ता कि हजारों बाग के फूलों की खुशबू कम पड़ जाए.

ऐसा नहीं है कि सब जगह गंदा ही गंदा है. साफ भी है लेकिन उसके लिए आपको जेब भी जमकर साफ करवानी होगी. कानपुर स्टेशन पर कमसम रेस्टोरेंट में जैसे ही आप अंदर जाते हैं, लगता है किसी और दुनिया में पहुंच गए. ये फर्क है पैसों का. जी हां कमसम रेस्टोरेंट IRCTC का पार्टनर वेंडर है, जिसे रलवे स्टेशनों खाना बेचने का ठेका मिला है, लेकिन इसके लिए आपको रकम ज्यादा चुकानी होगी.

इटारसी

अब आपको रेलवे के एक खास स्टेशन के सफर पर ले चलते हैं. मध्य प्रदेश के सबसे बड़े स्टेशनों में है इटारसी. लगभग ढाई सौ रेलगाड़ियां इस स्टेशन से रोज गुजरती हैं. लेकिन सवा लाख मुसाफिरों के लिए इस स्टेशन पर जब आजतक ने खाना बनते देखा तो उबकाई आ गई. सरकारी कैंटीन में चारों तरफ गंदगी फैली हुई थी, सारा खाना खुला हुआ पड़ा था, कटी हुई सब्जियों से दुर्गंध आ रही थी और मुसाफिर वही खाना खा रहे थे. हैरत ये है कि रेलवे को इसमें कुछ भी अजीब नहीं लगता.

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अब य़ात्रियों को रेल के खाने से डर लगता है. पता नहीं किस निवाले में क्या निकल आए. कहीं छिपकली तो कहीं कॉकरोच तो कहीं वेज खाने में हड्डी. 26 जुलाई को रेलमंत्री ने सदन में क्या भरोसा दिया था और कहां तक वादा पूरा हो सका. तब छिपकली मिली थी और अब कॉकरोच.

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