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बारिश हो या गर्मी, छतरी के बिना मजा नहीं आता

रिमझिम बरसती बूंदें हों या आग उगलता सूरज, छतरी दोनों ही मौसम में अपनी जरूरत का अहसास कराते हुए आपका बचाव करती है. फैशन का पर्याय बन चुकी रंगबिरंगी छतरियां आज से ही नहीं बल्कि सदियों से अलग-अलग रूप में अपने अस्तित्व का अहसास कराती रही हैं.

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रिमझिम बरसती बूंदें हों या आग उगलता सूरज, छतरी दोनों ही मौसम में अपनी जरूरत का अहसास कराते हुए आपका बचाव करती है. फैशन का पर्याय बन चुकी रंगबिरंगी छतरियां आज से ही नहीं बल्कि सदियों से अलग-अलग रूप में अपने अस्तित्व का अहसास कराती रही हैं.

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बारिश के मौसम में घर से बाहर निकलना हो तो हाथ छतरी की तलाश पहले करते हैं. अगर छतरी घर पर भूल गए और रास्ते में पानी बरस पड़ा तो मुंह से यही निकलता है ‘काश, छतरी न भूले होते.’ रामजस कालेज की छात्रा अर्पिता सिंह कहती हैं ‘गर्मी में छतरी धूप से बचाने के काम आती है. लेकिन बारिश में छतरी लगा कर चलने का मजा ही कुछ और होता है. पिछले साल बारिश के मौसम में मेरी छतरी गुम हो गई. मैंने दूसरी छतरी खरीदी क्योंकि इसके बिना बरसात और गर्मी में काम चलने वाला नहीं है.’

एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क कांता दुबे कहती हैं ‘मैंने तो ऑफिस में अपने दराज में एक छतरी रखी हुई है. बारिश में घर से निकलते समय तो छतरी ले सकते हैं लेकिन अगर भूल गए तो ऑफिस से लौटते समय मुश्किल हो जाती है. मेरा घर वैसे भी बस स्टैंड से दूर है.’ छतरी कब से अस्तित्व में आई यह कहना मुश्किल है. लेकिन प्राचीन इतिहास में राजा महाराजाओं के पीछे उनके अनुचरों के छतरी लेकर चलने का जिक्र मिलता है.

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ऐतिहासिक तस्वीरों में भी महाराजाओं के सर पर छतरी लेकर चलते अनुचर नजर आते हैं. कहा जा सकता है कि किसी जमाने में छाता शाही सम्मान का भी प्रतीक होता था. अलग-अलग देशों में जरूरत के अनुसार, छतरियां अलग-अलग रूप धर कर लोगों के काम आती रहीं. भारत के साथ साथ मिस्र, यूनान तथा चीन की प्राचीन कलाकृतियों में छाते की छवि स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है.

छतरी के महत्व को देखते हुए कुछ देशों ने एक दिन इसके नाम कर दिया है. इन देशों में 10 फरवरी को ‘‘अम्ब्रेला डे’’ मनाया जाता है. सरोजिनी नगर इलाके में छाते की एक दुकान के संचालक गिरधारीलाल गुप्ता कहते हैं ‘पहले काले छाते आते थे जो बड़े होते थे और उन्हें फोल्ड नहीं किया जा सकता था. बुजुर्गों के लिए ये छाते छड़ी की तरह सहारा देने का काम भी करते थे. अब फोल्डिंग छाते आते हैं. इन्हें मोड़ कर आसानी से बैग में रखा जा सकता है.’

वह बताते हैं ‘छातों की कीमत उनकी क्वालिटी के अनुरूप होती है. अब बारिश में दुपहिया वाहन चलाने वाले लोग बरसाती यानी रेन कोट लेना ज्यादा पसंद करते हैं. रेन कोट पहन कर दुपहिया वाहन चलाना आसान होता है जबकि छाते को संभालते हुए दुपहिया वाहन नहीं चलाया जा सकता.’ अर्पिता कहती हैं कि तेज हवा में छतरी उलट भी जाती है. वह कहती हैं ‘‘फोल्डिंग छतरियां नाजुक होती हैं. तेज हवा में ये उलट जाती हैं.’

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छतरी आम आदमी की जिंदगी का एक हिस्सा तो है ही, फिल्मों में भी इसने अपनी जगह बनाई है. फिल्म ‘‘चालबाज’’ में श्रीदेवी और सनी देओल को पारदर्शी छतरी ले कर ‘‘न जाने कहां से आई है’ गीत पर थिरकते देखा जा सकता है. वहीं ‘कोई मिल गया’ में प्रीति जिंटा और रितिक रोशन छतरी लेकर ‘इधर गया.. ’ गीत पर बारिश में झूमते दिखाई देते हैं. अगर ग्वालियर के सिंधिया घराने की बात हो तो छतरी का मतलब बदल जाता है. सिंधिया राजमहल में एक हिस्से में समाधि स्थल है जहां छतरियों के नीचे सिंधिया राजवंश के दिवंगत सदस्यों की समाधियां हैं.

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