मनसे प्रमुख राज ठाकरे कथित तौर पर दंगा भड़काने के आरोप में महाराष्ट्र की अदालतों में लगभग 73 आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं.
गौरतलब है कि महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) की ओर से वर्ष 2008 में उत्तर भारतीय विरोधी अभियान शुरू किये जाने के सिलसिले में उनकी गिरफ्तारी के बाद ये दंगे भड़के थे. आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि इन 73 मामलों में से छह मामलों में राज अदालत में हाजिर हो चुके हैं और जमानत पा चुके हैं. बाकी बचे मामलों में उन्हें व्यक्तिगत तौर पर पेश होना है और जमानत लेनी है.
उन्होंने बताया कि अब तक वह जलगांव जिले की भडगांव और चोपरा अदालतों तथा औरंगाबाद के गंगापुर इलाके में चार अन्य मामलों में पेश हुए हैं. राज को सभी मामलों में एक-एक करके पेश होना होगा और जमानत लेनी होगी तथा यदि अदालत उनके खिलाफ आरोप तय करती है तो उन्हें सुनवाई का सामना करना होगा. इन सभी मामलों में राज का प्रतिनिधित्व फौजदारी मामलों के जाने माने अधिवक्ता सयाजी नांगरे कर रहे हैं.
जालना के बालनापुर इलाके में अपने खिलाफ दर्ज एक मामले को लेकर मनसे प्रमुख ने बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ का रुख किया और एक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी किये गये गैरजमानती वारंट को चुनौती दी. उच्च न्यायालय ने राज के वकील की दलीलें सुनने के बाद रिकार्ड और बालनापुर में इस मामले में हुई कार्यवाही की रिपोर्ट मंगाई तथा इस साल 17 फरवरी को गैर जमानती वारंट पर रोक लगा दी.
गौरतलब है कि इस मामले में जो आरोप लगाये गये हैं वे दंगों के सभी 73 मामलों में लगाये गये आरोपों के समान हैं. अधिवक्ता सयाजी नांगरे ने दलील दी कि जब दंगे भड़के, उस वक्त मनसे प्रमुख जेल में थे क्योंकि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था इसलिये वे लोगों को दंगों के लिये नहीं भड़का सकते थे.
इस मनसे नेता को उनकी पार्टी की ओर से उत्तर भारतीयों के विरोध में आंदोलन छेड़ने को लेकर 21 अक्टूबर 2008 को रत्नागिरी में गिरफ्तार किया गया था. उनकी गिरफ्तारी के बाद मुंबई और महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में दंगे भड़क उठे और राज तथा उनके समर्थकों के खिलाफ कई मामले दर्ज किये गये थे. कुछ स्थानों पर मनसे के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर सार्वजनिक परिवहन की बसों को नुकसान पहुंचाया और दंगों में भी शामिल रहे.
गंगापुर में दर्ज मामलों में राज के खिलाफ आईपीसी की धारा 143 (गैरकानूनी रूप से एकत्र होने), 341 (लोगों को अनुचित तरीके से रोकने), 336 (उतावलापन और लापरवाही वाली गतिविधियों से दूसरों की जान खतरे में डालने), 427 (हानि पहुंचाने) तथा धारा 109 (अपराध के लिये उकसाने) लगाई गई है. बहरहाल, 22 फरवरी को राज ने जलगांव स्थित अदालत में दंगे के एक अन्य मामले में आत्मसमर्पण कर दिया था और उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था.