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नई रणनीति और वफादार विधायकों पर मजबूत पकड़ के दम पर गहलोत फ्रंट फुट पर

राजस्थान विवाद अब सुप्रीम कोर्ट में है जो कि गहलोत की रणनीति का हिस्सा है. स्पीकर की ओर से कांग्रेस के बागी विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिए जाने से साफ है कि ये विधायक सदन में कदम रखने से पहले ही स्पीकर सीपी जोशी की ओर से अयोग्य करार दे दिए जाएंगे. अगर ये बागी विधायक गुरुग्राम के होटल से बाहर निकलते हैं तो गहलोत खेमा उन्हें लुभाने के लिए तैयार बैठा है.

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राजभवन के बाहर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस विधायकों के साथ (फोटो- पीटीआई)
राजभवन के बाहर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस विधायकों के साथ (फोटो- पीटीआई)

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  • आंकड़ों के खेल में उलझी राजस्थान की राजनीति
  • 103 विधायक के साथ आश्वस्त गहलोत कैंप
  • 19 विधायक पाले में लेकर अहम हो पायलट ग्रुप

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चाहते हैं कि राज्यपाल कलराज मिश्रा विधानसभा सत्र बुलाने की अनुमति दें. उनका दावा है कि वो सदन में विश्वास मत लेने के लिए तैयार हैं. कुछ दिन पहले तक आंकड़ों को लेकर घबराहट में दिख रहे गहलोत अब आक्रामक मुद्रा में हैं. ये क्या गहलोत की रणनीति में बदलाव आने का संकेत है. या ये उनके समर्थक विधायकों की संख्या बढ़ने का प्रतीक है.

सूत्रों का कहना है कि सचिन पायलट ग्रुप के 19 विधायक झुकने को तैयार नहीं हैं, ऐसे में 200 सदस्यीय सदन में गहलोत के हक में आंकड़ों में नाटकीय ढंग से नहीं बदले हैं. लेकिन ऐसी स्थिति में जहां हर विधायक की अहमियत है, लगता है गहलोत भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के दो विधायकों को अपने पाले में बरकरार रखने में कामयाब हुए हैं. कुछ दिन पहले बीटीपी विधायक वायरल वीडियो में कह रहे थे कि उन्हें मुक्त रूप से घूमने की इजाजत नहीं दी जा रही है.

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गहलोत के वफादार विधायकों ने शुक्रवार को राजभवन के उद्यान में प्रदर्शन किया. गहलोत ने राज्यपाल पर निशाना भी साधा कि वो कैबिनेट के शीघ्र विधानसभा सत्र बुलाने के फैसले को मंजूर नहीं कर रहे हैं. ये उनकी उस रणनीति का हिस्सा है कि बागियों को उनके विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए लुभाने का मौका न मिल सके. साथ ही समर्थकों को ये संदेश दिया जा सके कि उनके हाथों में ही कमान है. गहलोत ने अपने समर्थक विधायकों के साथ आधी रात तक बैठक भी की.

राजस्थान की मौजूदा राजनीतिक स्थिति खरीद-फरोख्त के लिए उपजाऊ नजर आती है. वफादारी इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन बेहतर डील ऑफर करता है. लेकिन गहलोत के साथ प्लसपाइंट ये है कि वो इस स्थिति में लगते हैं कि उन्होंने कांग्रेस के और विधायकों को तोड़ने की पायलट ग्रुप और बीजेपी की संभावनाओं पर रोक लगा दी है.

गहलोत विरोधी कैंप के आंकड़े

राजस्थान विधानसभा में बीजेपी के पास 72 विधायकों का एक मजबूत ब्लॉक है. इसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के तीन विधायकों और 1 निर्दलीय का प्रतिबद्ध समर्थन हासिल है. पायलट के वॉकआउट से पहले बीजेपी के साथ कुल 76 विधायक थे.

पायलट वॉकआउट से पहले

बीजेपी+ - कुल 76

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बीजेपी - 72

आरएलपी - 3

निर्दलीय- 1

सचिन पायलट ग्रुप के पास कांग्रेस के 19 विधायक (स्पीकर ने 19 को नोटिस दिए हैं) हैं. दो और निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटा लिया गया है. इस तरह बीजेपी+ और पायलट ग्रुप को मिलाकर गहलोत के खिलाफ कुल 97 विधायकों का जोड़ बैठता है.

बीजेपी+ पायलट ग्रुप – कुल 97

बीजेपी - 72

आरएलपी - 3

निर्दलीय- 3

पायलट ग्रुप -19

ये आंकड़े पिछले 10 दिन से स्थिर हैं. गहलोत ने दोनों तरफ के हाशिए वाले विधायकों पर दबाव बढ़ाया है कि वो मुख्यमंत्री हैं और अब बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं को लेकर आक्रामक हैं. क्योंकि अभी मौजूदा विधानसभा के 42 महीने बाकी हैं इसलिए अयोग्यता की तलवार विधायकों को पाला बदलने से रोक रही है. बीजेपी गहलोत के किले के और दरकने का इंतजार कर रही है. हालांकि गहलोत को आईटी और ईडी छापों के जरिए कमजोर करने की कोशिश की गई लेकिन स्थिति अचानक पलट गई. पायलट और बीजेपी सदन में शक्ति परीक्षण से परहेज कर रहे हैं.

पढ़ें- राजस्थान का मिडनाइट ड्रामा, देर रात सीएम गहलोत ने की कैबिनेट बैठक, सत्र बुलाने पर अड़े

गहलोत कैंप के आंकड़े

गहलोत कैंप का दावा है कि पायलट ग्रुप के 19 विधायकों के जाने के बाद उसे 107 विधायकों का समर्थन हासिल है. यह संभव नहीं है. क्योंकि अभी बीजेपी+ पायलट ग्रुप से बाहर सिर्फ 103 विधायक ही हैं.

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पायलट की बगावत से पहले गहलोत को 124 विधायकों का समर्थन हासिल था.

गहलोत+ कुल 124

कांग्रेस- 107

बीटीपी- 2

सीपीएम -2

आरएलडी - 1

निर्दलीय- 12

पायलट के नेतृत्व में 19 विधायकों और 2 निर्दलीय विधायकों का समर्थन बरकरार न रहने से गहलोत कैंप का आंकड़ा 103 तक नीचे आ गया.

गहलोत के आंकड़े बिना पायलट ग्रुप

गहलोत कुल- 103

कांग्रेस-88

बीटीपी-2

सीपीएम-2

आरएलडी-1

निर्दलीय-10

गहलोत कैंप के 103 विधायकों में से राज्य विधानसभा के स्पीकर तब तक वोट नहीं दे सकते जब तक कि वोट या फ्लोर टेस्ट के दौरान रिजल्ट टाई न हो. इससे ये आंकड़ा 102 पर आ जाता है.

पढ़ें- सचिन पायलट की तरह हो गई बीजेपी में वसुंधरा राजे की हालत!

चूरू क्षेत्र के सुजानगढ़ से एक कांग्रेस विधायक मास्टर भंवर लाल, जो कैबिनेट में सामाजिक न्याय मंत्री हैं, वो गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती हैं और गंभीर मेडिकल स्थिति से जूझ रहे हैं. वो फ्लोर टेस्ट में फिलहाल हिस्सा लेने की स्थिति में नहीं हैं. इससे गहलोत कैंप की ताकत 101 तक नीचे आ जाती है. दूसरी तरफ बीजेपी+ और पायलट ग्रुप के 97 विधायक हैं.

तकनीकी तौर पर गहलोत कैंप और बीजेपी+ पायलट ग्रुप में चार विधायकों का ही अंतर है. इस तरह से गहलोत की नैया पार लग जाएगी भले ही स्पीकर और एक बीमार विधायक फ्लोर टेस्ट में वोट नहीं करें.

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बीटीपी का रुख

दो विधायकों के साथ भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) 2018 से गहलोत को समर्थन दे रही थी. लेकिन कुछ दिनों पहले इस पार्टी के एक विधायक का वीडियो वायरल हुआ था जिसमें विधायक ने बताया था कि कैसे राज्य पुलिस ने उसकी चाबियां छीन ली थीं और बंद रहने के लिए मजबूर किया था. पार्टी ने एक बयान भी जारी किया कि वह कांग्रेस और बीजेपी दोनों से समान दूरी बनाए रखना चाहती है.

बीटीपी के विधायक अब गहलोत के पास वापस आ गए हैं और दोनों कांग्रेस विधायकों के साथ फेयरमाउंट होटल में ठहरे हुए हैं.

सीपीएम की चिंता

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के विधानसभा में 2 विधायक हैं- बलवंत पूनिया और गिरधारी मेहारिया. पूनिया की वफादारी पर पहले से ही सवालिया निशान है. राज्य में हालिया राज्यसभा चुनावों में पार्टी के निर्देशों की अवज्ञा के लिए 22 जून को सीपीएम की राजस्थान इकाई को पूनिया को एक साल के लिए पार्टी से निलंबित करना पड़ा.

राजस्थान में अपनी विधानसभा यूनिट में विभाजन के डर से लेफ्ट पार्टी ने मंगलवार को अपने राज्य सचिव और पूर्व विधायक अमरलाल के जरिए एक बयान जारी किया. इसमें कहा गया कि उनकी पार्टी अभी न कांग्रेस के साथ है और न ही बीजेपी के साथ. लेकिन सूत्रों के मुताबिक गहलोत सीपीएम के एक विधायक का समर्थन हासिल करने में सफल रहे हैं.

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अगर सीपीएम के 2 विधायकों में से 1 अनुपस्थित या संदिग्ध हो जाता है, तो अशोक गहलोत के आश्वस्त वोट 100 तक कम हो जाएंगे.

निर्दलीय

अगला निर्णायक फैक्टर निर्दलीय हो सकते हैं. विधानसभाओं और संसद में पाला बदलने के लिए सबसे पहले निर्दलीयों पर ही अहम दलों की नजर रहती है. सूत्रों के मुताबिक गहलोत बाकी 10 निर्दलीय विधायकों को अपनी तरफ रखने में कामयाब हुए हैं.

ऐसे में 100 बनाम 97 का आंकड़ा गहलोत की तरफ झुका है. गहलोत फिलहाल पायलट ग्रुप के 19 विधायकों को अपने साथ लाने में सफल नहीं हुए हैं लेकिन ऐसी स्थिति बनाने में कामयाब हुए हैं जिससे बागी ग्रुप से विधायक फिसल सकें.

गहलोत के पास रणनीतिक लाभ

हालांकि राजस्थान विवाद अब सुप्रीम कोर्ट में है जो कि गहलोत की रणनीति का हिस्सा है. स्पीकर की ओर से कांग्रेस के बागी विधायकों को अयोग्यता का नोटिस दिए जाने से साफ है कि ये विधायक सदन में कदम रखने से पहले ही स्पीकर सीपी जोशी की ओर से अयोग्य करार दे दिए जाएंगे. अगर ये बागी विधायक गुरुग्राम के होटल से बाहर निकलते हैं तो गहलोत खेमा उन्हें लुभाने के लिए तैयार बैठा है. ये विश्वास कि बागी 19 विधायक वोट नहीं कर पाएंगे, गहलोत को कुछ हौसला देता है.

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इस तरीके से गहलोत 100 बनाम बीजेपी+ 78 मुकाबला रह जाएगा. इसका मतलब है कि दोनों में 22 का अंतर हो जाएगा. 19 बागियों के अयोग्य होने की स्थिति में सदन की सदस्य संख्या 181 रह जाएगी और बहुमत के लिए आवश्यक 91 का आंकड़ा बीजेपी की पहुंच से दूर होगा.

इस गणना में बहुत सारे किंतु-परंतु शामिल हैं लेकिन यह सिर्फ दिखाता है कि गहलोत मौजूदा आंकड़ों को बरकरार रखने में सफल रहते है तो वो विश्वास मत नहीं खोएंगे.

गहलोत चतुर राजनेता हैं और उन्होंने बीजेपी के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं. गहलोत के आंकड़ों को नुकसान के लिए बीजेपी ने 6 बीएसपी विधायकों के कांग्रेस में विलय को कोर्ट में चुनौती दी है. बीजेपी चाहती है कि कोर्ट इन छह विधायकों के खिलाफ फैसला दे. लेकिन गहलोत अगर अपना विधायकों का कुनबा जोड़े रखने में सफल रहते हैं तो उनकी नैया पार लग जाएगी.

गहलोत की आक्रामक रणनीति अब मूल कांग्रेस परिवार के केवल 82 लोग ही हैं. अगर वो उन पर अपनी पकड़ बनाए रखते हैं तो वो सत्ता के करीब बने रहेंगे और अपने से किसी और विधायक को दूर जाने से रोकने में सफल रहेंगे.

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