नेस्ले विवाद में जहां देश के कई राज्य एक के बाद एक मैगी नूडल्स पर प्रतिबंध लगा रहे हैं वहीं राजस्थान के फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने भी मैगी का परीक्षण कराने के लिए पूरे राज्य से 185 सैंपल एकत्रित किए. लेकिन इन सैंपल्स की जांच के लिए राज्य सरकार के अधीन एफडीए की लैब में न भेजकर सभी सैंपल्स को प्राइवेट लैब भेज दिया गया.
दरअसल राज्य सरकार के फूड डिपार्टमेंट की लैब में इस जांच से संबंधित परीक्षण को करने की क्षमता नहीं है इसीलिए एकत्रित किए गए सैंपल का टेस्ट प्राइवेट लैब के माध्यम से कराया गया. टीवी टुडे ने इस मामले की पड़ताल की तो कई चौकाने वाले तथ्य सामने आए.
1. राज्य में फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट की कुल 13 लैब हैं जिनमें से 8 लैब बंद पड़ी हैं.
2. पांच चालू लैब में परीक्षण करने के लिए महज तीन लैब हैं जहां एक-एक फूड एनॉलिस्ट तैनात है और बाकी 2 लैब में किसी तरह का कोई एनॉलिस्ट नहीं हैं.
3. राज्य के 32 जिलों में कुल मिलाकर 70 फूड इंस्पेक्टर हैं, यानी प्रति जिला लगभग दो इंस्पेक्टर की तैनाती है.
4. राज्य सरकार की तथाकथित चालू हालत में 5 लैब में से किसी में भी पैकेज्ड फूड का परीक्षण करने के लिए जरूरी उपकरण नहीं हैं.
5. राज्य सरकार की किसी लैब में खाने की सामग्री में मेटल कंटेंट को परखने के लिए कोई टेक्नॉलजी नहीं है.
टीवी टुडे की जांच में सामने आए इन तथ्यों को राज्य के स्वास्थ निदेशक बीआर मीना के सामने रखे जाने पर उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि मैगी जैसा कोई प्रकरण जांच के लिए आ सकता है लिहाजा राज्य की लैब अंतरराष्ट्रीय स्तर के ऐसे परीक्षण के लिए तैयार नहीं की गई. हालांकि सेंट्रल हेल्थ लैब के निदेशक नवीन माहेश्वरी ने कहा कि उनकी 8 लैब मशीनरी और मेनपावर की दिक्कतों के चलते बंद पड़ी हैं और इसकी सूचना कई जीने पहले राज्य सरकार के संबंधित विभागों को दी जा चुकी है.