पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम का जवाब देने के लिए भारत ने 1985 में हाइड्रोजन बम को टेस्ट करने की तैयारी की थी. उस वक्त राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे. अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के हाल ही में सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों से ये जानकारी मिली है. दस्तावेज बताते हैं कि उस वक्त के अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों को होड़ को लेकर फिक्रमंद थे और भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने के लिए दूत भेजने के पक्ष में थे.
जानकारी का खजाना दस्तावेज
CIA के इन करीब 9 लाख 30 हजार दस्तावेजों के डेढ़ करोड़ पन्नों को खंगालने पर 80 के दशक में भारत की परमाणु नीति पर कई दिलचस्प जानकारियां मिलती हैं. इनसे साफ होता है कि इस दौरान भारत में पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंताएं थीं.
ये दस्तावेज भारत के परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा पर भी रोशनी डालते हैं. एक दस्तावेज में जिक्र किया गया है कि बेहद कड़ी सुरक्षा के चलते भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम की जानकारी मिलना बेहद कठिन है.
परमाणु कार्यक्रम में पाक से आगे था भारत
CIA का मानना था कि जिस हाइड्रोजन बम के परीक्षण की तैयारियां की जा रही थीं वो इंदिरा गांधी के वक्त हुए पोखरण धमाके से कई गुना ज्यादा ताकतवर था. एजेंसी के दावे के मुताबिक इसे भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के 36 वैज्ञानिकों ने तैयार किया था. इन दस्तावेजों में CIA ने दावा किया है कि भारत 80 के दशक में परमाणु हथियारों के लिए प्लूटोनियम जमा कर रहा था. एजेंसी के दस्तावेजों में स्वीकार किया गया है कि उस वक्त भारत का परमाणु कार्यक्रम पाकिस्तान के मुकाबले कहीं ज्यादा उन्नत था.
क्या थी राजीव की मजबूरी?
इन दस्तावेजों के सच मानें तो राजीव गांधी पहले इंदिरा गांधी के कार्यकाल में शुरू हुए परमाणु हथियार कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के हक में नहीं थे. लेकिन 1985 में जब उन्हें बताया गया कि पाकिस्तान परमाणु हथियार बनाने की तैयारी कर रहा है तो राजीव गांधी को दोबारा सोचना पड़ा.
हालांकि CIA के अधिकारियों का आकलन था कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव में भारत पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों पर हमला नहीं करेगा. उनके मुताबिक भारत पाकिस्तान के बजाए चीन को सुरक्षा के लिए ज्यादा बड़ा खतरा मानता है.
अमेरिकी दूत से नहीं था परहेज
दस्तावेजों में दर्ज है कि राजीव गांधी सरकार रोनाल्ड रीगन की ओर से दूत भेजे जाने को लेकर ज्यादा खुश नहीं थी लेकिन उसे इस दूत से मिलने में परहेज नहीं था. CIA ने अमेरिकी सरकार से सिफारिश की थी कि इस दूत को राजीव गांधी से मिलने भेजा जाए लेकिन इस मुलाकात के नतीजे पर कोई कयास नहीं लगाए थे.