राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन इस साल जुलाई में रिटायर हो रहे हैं और 41 साल में यह पहला मौका होगा जब उपसभापति का पद कांग्रेस पार्टी के खाते से जा सकता है. साल 1977 से उच्च सदन में कांग्रेस पार्टी के नेता सदन में उपसभापति का पद संभाल रहे हैं.
रामनिवास मिर्धा 1977 में इस पद पर आसीन हुए थे तब से लेकरसदन में सभी उपसभापति कांग्रेस पार्टी से ही रहे हैं. पहली बार जब 2002 में बीजेपी नेता भैरोसिंह शेखावत उपराष्ट्रपति बने थे तब भी यह सिलसिला जारी रहा और कांग्रेस पार्टी के नेता ने ही उपसभापति का पद संभाला था. उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है.
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि संसद में लोकसभा स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और राज्यसभा में सभापति का पद पहले ही कांग्रेस के हाथों से जा चुका है और अब उपसभापति पद भी किसी अन्य दल के नेता को दिया जा सकता है.' बीजेपी के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह पहला मौका होगा जब संसद के चारों उच्च पदों पर कांग्रेस का कोई भी नेता नहीं होगा.'
एनडीए के लिए राज्यसभा में कुरियन की जगह अपने किसी नेता को बैठाना मुश्किल होगा क्योंकि उच्च सदन में गठबंधन के पास इतना संख्याबल नहीं है. आमतौर पर सत्ताधारी दल की ओर से चुने नेता को सभापति चुना जाता है तो उपसभापति का पद विपक्ष के उम्मीदवार को दिया जाता है. साल 2004 की यूपीए सरकार में भी बीजेपी के चरणजीत सिंह अटवाल को डिप्टी स्पीकर चुना गया था और 2009 में भी करिया मुंडा को इस पद के लिए चुना गया था.
जानकारों का मानना है कि बीजेपी उपसभापति के पद के लिए किसी गैर बीजेपी-गैर कांग्रेसी सांसद को चुन सकती है. साल 2014 में कांग्रेस के इनकार के बाद AIADMK सांसद को लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद दिया गया था.
विपक्षी नेताओं का कहना है कि 2019 के चुनाव को देखते हुए बीजेपी सहयोगी दलों और अन्य दलों को रिझाने के हिसाब से उपसभापति का चयन कर सकती है. लोकसभा में AIADMK सांसद एम थंबीदुरई को डिप्टी स्पीकर का पद देना उनकी पार्टी से दोस्ती की ओर इशारा करता है.
राज्यसभा में सहयोगी के अलावा बीजेपी को अन्य दलों के साथ की भी जरूरत है. इस उपसभापति के पद पर किसी नेता का चयन भी इन्हीं सब स्थितियों को देखते हुए किया जा सकता है.