राज्यसभा में गुरुवार को जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाने के मुद्दे पर चर्चा हुई. इस दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने बीजेपी और केंद्र सरकार पर तीखा हमला करते हुए आरोप लगाया कि उनके शासनकाल में पिछले साढ़े चार साल के दौरान जम्मू कश्मीर की स्थिति बेहद खराब हो गई. इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी की ओर से कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की गई ताकि वहां सरकार बनाई जा सके.
आजाद ने कहा कि इस सरकार के कार्यकाल में जम्मू कश्मीर में आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हुईं. वहां पर्यटन क्षेत्र बदहाल हो गया. इसके साथ ही वहां हस्तशिल्प और अन्य क्षेत्रों की भी स्थिति खराब हो गई. नेता प्रतिपक्ष जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने से जुड़े एक संकल्प पर राज्यसभा में हुयी चर्चा में भाग ले रहे थे. आजाद ने कहा कि जब नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस ने सरकार बनाने का विचार किया कि तो एक घंटे के अंदर ही विधानसभा भंग कर दी गई.
कश्मीर पर संवेदनशील नहीं BJP
उन्होंने सवाल किया कि जम्मू कश्मीर की विधानसभा को इतने दिनों तक निलंबित क्यों रखा गया. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर की जरूरत ऐसी है कि वहां क्षेत्रीय दलों को मजबूत बनाया जाए क्योंकि वे भारत समर्थक हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी ने उन दलों को कमजोर करने की कोशिश की और कई लोगों की सुरक्षा वापस ले ली. आजाद ने अपने भाषण में जम्मू कश्मीर के इतिहास का विस्तार से जिक्र किया और कहा कि एक जिम्मेदार पार्टी के रूप में वह इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं लेकिन यह सरकार वहां की स्थिति नहीं समझती और संवेदनशील नहीं है.
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष आजाद ने कहा कि इस सरकार ने वहां की स्थिति को बदतर बना दिया. उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर के संविधान के तहत वहां राज्यपाल शासन में राज्यपाल को व्यापक अधिकार हैं. इसके तहत वहां राज्यपाल शासन में कानूनों में 55 संशोधन किए गए हैं. आजाद ने कहा कि वहां की स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास वही कर सकता है जिसके पास दिल है और दिल किसी एक धर्म के लिए नहीं धड़कना चाहिए. उसे हर देशवासी की पीड़ा को अपना समझना चाहिए.
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी कांग्रेस इस पीड़ा को समझती है. उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि हम उसे पीड़ा समझना कहते हैं लेकिन सत्तारूढ़ पार्टी उसे तुष्टिकरण कहती रही है. आजाद ने आरोप लगाया कि बीजेपी कश्मीर के खिलाफ दुष्प्रचार करती रही है और उसने नफरत को बढ़ावा दिया. उन्होंने कहा कि 1991 से 96 के बीच वहां आतंकवाद पर काबू पाने में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की अहम भूमिका रही. उन्होंने कहा कि बाद में अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कश्मीर की स्थिति को सुधारने का प्रयास किया. उन्होंने दावा किया कि उन्हें आपसी खींचतान के कारण पार्टी का सहयोग नहीं मिला.
पंडित नेहरू ने की थी गलती
चर्चा में दखल देते हुए नेता सदन और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आजादी के बाद जम्मू कश्मीर के राजनीतिक इतिहास का जिक्र करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर की आज जो वास्तविकता है, उसके पीछे कांग्रेस अपने दायित्व से पल्ला नहीं झाड़ सकती है. उन्होंने देश में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का नाम लिये बिना कांग्रेस से कहा कि उनके ही एक नेता जम्मू कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले गये थे.
उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र के साथ जितना खिलवाड़ किया है, उतना किसी ने नहीं किया. उन्होंने कहा कि राज्य में 1957, 1962 और 1967 के चुनाव कैसे हुए थे, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है.
वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि जम्मू कश्मीर में एक अधिकारी थे जिन्होंने यह आदेश निकाला था कि सारे उम्मीदवार सिर्फ एक ही व्यक्ति के सामने अपना नामांकन दाखिल करेंगे. उन्होंने कहा कि इसके चलते बहुत से उम्मीदवार अपना पर्चा ही दाखिल नहीं कर पाते थे.
उन्होंने कहा कि 1977 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के शासनकाल में पहली बार जम्मू कश्मीर में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए थे. उन्होंने कहा कि लोग भूले नहीं हैं कि 1984 में तत्कालीन राज्यपाल बी के नेहरू ने इसलिए इस्तीफा दिया क्योंकि उन्होंने तोड़फोड़ कर गुल की सरकार बनवाने से इंकार कर दिया था.
जेटली ने कहा कि जम्मू कश्मीर में लोगों के अलग थलग पड़ने के दावे को सिरे से गलत बताते हुए कहा कि अगर ऐसा ही होता तो राज्य में हाल में हुए पंचायत चुनाव में 4500 लोग चुनकर नहीं आते. उन्होंने कहा कि इतिहासकार और राजनीतिक टिप्पणीकार बता देंगे कि कश्मीर के बारे में नेहरू का दृष्टिकोण सही था या श्यामा प्रसाद मुखर्जी का. उन्होंने कांग्रेस से कहा कि वह यह आरोप लगाना बंद कर दें कि जम्मू कश्मीर के जो हालात हैं, वे पिछले साढ़े चार साल में बने हैं.
सर्जिकल स्ट्राइक का न करें प्रचार
सपा के रामगोपाल यादव ने जम्मू कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद के कारण राज्य के पयर्टन सहित विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि सरकार को सर्जिकल स्ट्राइक का प्रचार करने के बजाय इन कामों को चुपचाप अंजाम देना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमें अपने दुश्मन को कमजोर नहीं समझना चाहिए, जम्मू कश्मीर में आतंकवादी हमले अभी नहीं रुके हैं.
अन्नाद्रमुक के ए नवनीत कृष्णन ने कहा कि कि राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए संविधान के जिस अनुच्छेद 356 का उपयोग किया जाता है, उसे लागू करने के साफ दिशानिर्देश होने चाहिए. इस अनुच्छेद को ढंग से परिभाषित किये जाने की जरूरत है.
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा होने के समय लद्दाख का भी जिक्र किया जाना चाहिए. उन्होंने सरकार से कहा कि जम्मू कश्मीर देश का स्वर्ग है, उससे नर्क मत बनने दीजिए. डेरेक ने सरकार से जानना चाहा कि क्या जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव के साथ कराया जाएगा?
लोकसभा के साथ कश्मीर में चुनाव!
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पूरी चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि नेता विपक्ष कांग्रेस के शासन में कश्मीर के विकास की बात कर रहे थे, अगर उनका कार्यकाल स्वर्ण युग था तो कश्मीर के हालात ऐसे क्यों हो गए. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद रुचि लेकर पिछले 4 साल में जितना फंड जम्मू कश्मीर को दिया है उतना किसी भी सरकार में नहीं दिया गया.
कांग्रेस सांसद आजाद ने राजनाथ सिंह से पूछा कि क्या सरकार चुनाव आयोग से लोकसभा चुनावों के साथ जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने के लिए कहेगी. इसके जवाब में राजनाथ ने कहा कि अगर चुनाव आयोग यह चाहता है तो हमारी सरकार को कोई दिक्कत नहीं है.