राम जेठमलानी. देश के सबसे महंगे वकील. जिन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारों से लेकर हर्षद मेहता और संजय दत्त तक कई चर्चित मुकदमे लड़े. जिसके घर के बाहर तख्ती ठुकी है. यहां नए केस नहीं लिए जाते. मगर ये राम का सिर्फ एक रूप है.
एक दूसरा रूप है राजनैतिक का. वह मुंबई से दो बार सांसद रहे. वाजपेयी सरकार में कानून और शहरी नियोजन मंत्री रहे. इस दौरान उनका कभी सुप्रीम कोर्ट से, तो कभी पार्टी नेताओं से टकराव रहा. इसके चलते मंत्री पद से रुखसती भी हुई. नाराज जेठमलानी 2004 के चुनाव में वाजपेयी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में लखनऊ से ताल ठोंक बैठे.
कांग्रेस का समर्थन पाए इस निर्दलीय उम्मीदवार को मुंह की खानी पड़ी. उस दौरान उन्होंने बयान दिया था कि 'मैं दौड़ में आ गया हूं. अटल बिहारी वाजपेयी को हराइए. उनके हारते ही देश की सारी सांप्रदायिक ताकतें भी हार जाएंगी.' जब 2010 में जेठमलानी पार्टी में शामिल हुए, तो उन्हें राजस्थान से राज्यसभा में भेजा गया. तब जेठमलानी ने फिर वाजपेयी का नाम लिया, मगर अंदाज बदला हुआ था. वह बोले, 'मैं अटल बिहारी वाजपेयी के आशीर्वाद से पार्टी में लौट आया हूं. बीच में हमारे कुछ वैचारिक मतभेद रहे थे, मगर दोस्ती हमेशा बरकरार थी.'
मोदी की मदद का ईनाम
राजनैतिक गलियारों में जेठमलानी की पार्टी में वापसी को नरेंद्र मोदी से जोड़कर देखा गया. गुजरात सरकार से जुड़े कुछ केसेस को हैंडल करने के ऐवज में मोदी ने उनको राजस्थान से राज्यसभा की सीट दिलवाई. जेठमलानी ने इस कर्जे को जब तब अपने बयानों से चुकाया. जब पार्टी में पीएम पोस्ट के कैंडिडेट को लेकर बहस उठी, तो जेठमलानी ने कहा, 'मोदी ईमानदार हैं, उनमें प्रशासनिक क्षमता है और वह प्रधानमंत्री बनने की पूरी योग्यता रखते हैं. वह बीजेपी में इस पद के सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार हैं.'
राम ने राम की बुराई की
इस धुरंधर वकील ने भगवान को भी नहीं बख्शा. नवंबर 2012 में स्त्री पुरुष संबंधों पर लिखी गई एक किताब की रिलीज के फंक्शन में वह बोले, 'राम बहुत बुरे पति थे. मैं उनको बिल्कुल भी पसंद नहीं करता हूं. सिर्फ इसलिए कि एक मछुआरे ने सीता के खिलाफ कुछ कहा, उन्होंने उस बेचारी महिला को वनवास के लिए भेज दिया.' उनके इस बयान के बाद देशभर में हंगामा शुरू हो गया. एक बीजेपी नेता ने तो यहां तक कह दिया कि राम जेठमलानी को अपना नाम बदलकर रावण जेठमलानी रख लेना चाहिए.
पार्टी को कोसने वाली चिट्ठी पीएम को
जेठमलानी पर हालिया कार्रवाई की वजह है एक चिट्ठी और उसमें दिया बयान. पिछले साल नवंबर में जब यूपीए सरकार ने विपक्ष के ऐतराज के बावजूद सीबीआई निदेशक के पद पर रंजीत सिन्हा की नियुक्ति की थी, तब बीजेपी के दोनों सदनों में नेता, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली ने पीएम को ऐतराज जताते हुए खत लिखा था. जब जेठमलानी को इसका पता चला, तो उन्होंने पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी को चिट्ठी लिखी. इसकी प्रति पीएम और मीडिया को भी भेजी गई. उन्होंने कहा कि मैं पार्टी के प्रधानंत्री और कांग्रेस पर बोले गए इस हमले से अचंभे में आ गया हूं. मुझे निराशा हो रही है कि इस तरह की आलोचना कई तथ्यों की भयानक अनदेखी कर की गई है.
सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं बख्शा
संजय दत्त के खिलाफ चल रहे केस में राम जेठमलानी ने कुछ समय तक पैरवी की थी. पिछले दिनों जब दत्त पर कोर्ट का आखिरी फैसला आया, तो जेठमलानी पहले तो टिप्पणी करने में टालमटोल करते रहे, फिर बोले, कि दत्त के केस के बारे में कुछ भी बोलना मेरे प्रोफेशनलिज्म के खिलाफ है. लेकिन मुझे नहीं लगता इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो किया, जो आदेश दिया, वो उसे करना चाहिए था.