ये कहानी साल 1990 में शुरू हुई. तब जबकि रामजन्म भूमि आंदोलन का पहला अध्याय शुरू हुआ. तब पूर्वी दिल्ली के पॉश इलाके विवेक विहार में रहने वाले महेंद्र गुप्ता महज 22 साल के थे. आज 52 साल के गुप्ता उन दिनों को याद करते हैं, जब राम जन्मभूमि आंदोलन चल रहा था. शक्ल सूरत चाल-ढाल से लेकर सब कुछ इन 30 सालों में बदल गया.
अक्टूबर 1990 में रथ यात्रा तब के बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने शुरू की तब दिल्ली से भी कई कार सेवक उसमें शामिल होने गए. उनमें से एक नाम महेंद्र गुप्ता का भी था जो पहले से विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े हुए थे. जब बात कार सेवा की चली तो गुप्ता अपने कई सारे दोस्तों के साथ कार सेवक बनकर अयोध्या की तरफ रवाना हो गए. टिकट ट्रेन का था लेकिन मुरादाबाद में उन सबको उतार लिया क्या और जेल में भर दिया गया. साथियों के साथ 10 दिन मुरादाबाद की उसी जेल में बिताने पड़े.
लेकिन पूर्वी दिल्ली में ही रहने वाले हरीश कुमार गोयल की कहानी कुछ हटकर है. 1990 में जब रथ यात्रा और कार सेवा शुरू हुई तब हरीश महज 20 साल के ही थे. हरीश बताते हैं, 'लगभग एक दर्जन लोगों के साथ हमने ट्रेन में टिकट लेकर अयोध्या जाने का प्लान बनाया. राज्य सरकार कहीं गिरफ्तार न कर लें इसके लिए उन्होंने अपनी पहचान एक खेलने वाली टीम की रखी. किसी तरह से कानपुर तो पहुंचे लेकिन वहां पुलिस बंदोबस्त काफी तगड़ा था इसलिए बस लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा जाना पड़ा. गोंडा पहुंचने से पहले ही उन्होंने बस छोड़ दी और अगले 5 दिनों तक पैदल तकरीबन 200 किलोमीटर का सफर तय कर सरयू पहुंचे और फिर वहां रात में नदी पार कर अयोध्या पहुंचना हुआ.'
लेकिन तब के वक्त को याद कर दिल्ली वाले कारसेवक कहते हैं कि तब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुआ करते थे और इसलिए 1990 में कारसेवा सफल नहीं हो पाई उसके बाद रथ यात्रा करते हुए लालकृष्ण आडवाणी को भी बिहार के समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया.
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फिर लगभग 2 साल बाद यानी साल 1992 में दूसरे चरण की कार सेवा शुरू हुई. महेंद्र गुप्ता कहते हैं कि तब उनकी उम्र तकरीबन 24 साल की थी और इस बार हालात थोड़े बदले हुए थे. उत्तर प्रदेश में अब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री नहीं थे और उनकी जगह कल्याण सिंह थे.
आजतक से बात करते हुए गुप्ता बताने लगे, 'इस बार 1990 जैसी दिक्कत अयोध्या पहुंचने में नहीं हुई लेकिन इस बार चुनौतियां कुछ अलग थीं. 24 नवंबर की रात अचानक झंडेवालान से सूचना मिली कि उन्हें बुलाया गया है. जब वह वहां पहुंचे तो उन्हें तुरंत अयोध्या जाने के लिए कहा गया था. अगले तकरीबन 10 दिनों तक बिना खाए-पिए तमाम टीमों ने योजना बनाने पर काम किया. क्योंकि केंद्र में कांग्रेस की सरकार पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में थी तो यह भी डर था कि कहीं कल्याण सिंह सरकार भंग ना कर दी जाए. इसलिए, यह भी हिदायत दी गई थी कि शायद योजना पर काम वक्त से पहले करना पड़ेगा.'
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महेंद्र और हरीश के एक और दोस्त जिनसे आज तक की बातचीत हुई वह है मनीष लॉ. मनीष अयोध्या तो नहीं गए लेकिन उनका काम दिल्ली में रहकर तमाम योजनाएं बनाना था मसलन कि कौन-कौन अयोध्या जाएगा और हर टीम में कितने सदस्य होंगे और उनमें से कितने युवा होंगे और कितने अनुभवी.
जब 5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है तब 1990 में कारसेवक बने यह तमाम लोग उत्साहित हैं लेकिन कोरोना की वजह से अयोध्या न जाने का थोड़ा अफसोस भी है. हालांकि सबकी जिंदगी तब से लेकर अब तक काफी बदल गई और ये कारसेवक अब अपनी पारिवारिक जिंदगी जी रहे हैं.