प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अयोध्या में पांच अगस्त को भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन करेंगे. राम मंदिर आंदोलन को धार देने वाले कई बड़े चेहरे अपने जीते जी राम मंदिर के सपने को सकार होते नहीं देख सके. इनमें महंत रामचंद्र परमहंस, वीएचपी के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ जैसे दिग्गज शामिल हैं, जिन्हें राममंदिर आंदोलन का स्तंभ माना जाता था.
अशोक सिंघल
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन चलाने के लिए जनसमर्थन जुटाने में विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष अशोक सिंघल की अहम भूमिका रही. सिंघल को राम मंदिर आंदोलन का 'चीफ आर्किटेक्ट' माना जाता है. अशोक सिंघल का जन्म 15 सितंबर 1926 में हुआ और पढ़ाई के दौरान वह आरएसएस के संपर्क में आए और फिर प्रचारक बन गए. उन्हें साल 1981 में विश्व हिंदू परिषद में भेज दिया गया और देश में हिंदुत्व की भावना को फिर से मजबूत करने के लिए 1984 में धर्मसंसद के आयोजन में अशोक सिंघल ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इसी धर्म संसद में साधु-संतों की बैठक के बाद राम जन्मभूमि आंदोलन की नींव पड़ी थी और उन्होंने इसका विस्तार पूरे देश में किया.
अशोक सिंघल
राममंदिर के शिलान्यास से लेकर कारसेवा और बाबरी विध्वंस में अशोक सिंघल अहम भूमिका में रहे. 1989 में अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अशोक सिंघल ने कहा था, 'यह मात्र एक मंदिर का नहीं, हिंदू राष्ट्र का शिलान्यास है.' राम मंदिर के शिलान्यास के बाद अशोक सिंघल ने राम मंदिर आंदोलन को हिंदुओं के सम्मान से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई और देश भर में आंदोलन के लिए लोगों को एकजुट किया. वह 2011 तक वीएचपी के अध्यक्ष रहे और फिर स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. 17 नवंबर 2015 को उनका निधन हो गया. अब जब अयोध्या में राममंदिर का सपना साकार हुआ तो अशोक सिंघल के घर की मिट्टी को भी राम मंदिर निर्माण में सम्मिलित किया जाएगा.
अटल बिहारी वाजपेयी
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राममंदिर आंदोलन की पहली पंक्ति के नेता के तौर पर शामिल रहे हैं. 1980 में ही भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी थी. अटल बिहारी वाजपेयी पहले बीजेपी अध्यक्ष थे और 1980 में शुरुआत से ही भाजपा ने राम जन्मभूमि को मुद्दा बनाया था. अयोध्या राम जन्मभूमि को लेकर आरएसएस ने आंदोलन चलाने का काम किया तो भाजपा ने वाजपेयी दौर में ही बहुसंख्यतों की राजनीति को हिंदुत्व से जोड़ने की कवायद की. राममंदिर के लिए होने वाली सभी धर्म संसदों में अटल बिहारी वाजपेयी पहली पंक्ति में बैठते थे.
अटल बिहारी वाजपेयी
अटल बिहारी वाजपेयी 6 दिसम्बर 1992 की पूर्व संध्या को यानी 5 दिसम्बर को लखनऊ में मौजूद थे. इस मौके पर उन्होंने कहा था कि वे भी मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण आडवाणी के साथ अयोध्या जाना चाहते हैं लेकिन उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी गई है. वाजपेयी का कहना था कि पार्टी ने उन्हें दिल्ली जाने और वहां मोर्चा संभालने का आदेश दिया है और वे उसका पालन करेंगें. वाजपेयी का निधन अगस्त 2018 में हुआ. वाजपेयी के निधन पर राम जन्म भूमि न्यास के सदस्य राम विलास दास वेदांती ने कहा था कि वाजपेयी की हार्दिक इच्छा थी राम लला का भव्य मंदिर बने. लखनऊ की एक रैली में वाजपेयी ने भीड़ देख कर कहा था 'रैली नहीं ये रैला है, राम लला का खेला है.'
महंत रामचंद्र परमहंस
अदालत से लेकर धरातल तक पर राम मंदिर के लिए हमेशा दो-दो हाथ करने को तैयार रहने वाले महंत रामचंद्र दास परमहंस राममंदिर आंदोलन का प्रमुख चेहरा थे. राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष रामचंद्र परमहंस थे, जिन्होंने अयोध्या आंदोलन में अहम भूमिका अदा की थी. 1913 में जन्मे रामचंद्र परमहंस 1934 में राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ गए थे. वे श्री दिगंबर अखाड़ा के अध्यक्ष भी रहे. 1949 में विवादित बाबरी मस्जिद में मूर्ति स्थापित करने वालों में रामचंद्र परमहंस ही प्रमुख थे और उन्होंने 1950 में श्री राम की पूजा अर्चना के लिए कोर्ट में याचिका लगाई और पूजा-अर्चना जारी रखने के लिए जिला न्यायालय के आदेश की पुष्टि कर दी गई थी.
रामचंद्र परमहंस और हासिम अंसारी
रामचंद्र परमहंस के व्यक्तित्व का एक पहलू यह भी था कि राष्ट्रीय स्तर पर भले ही उन्हें मुस्लिम विरोधी माना जाता था, लेकिन अयोध्या में वे मुसलमानों में काफी लोकप्रिय थे. बाबरी मस्जिद निर्माण समिति पैरवी करने मोहम्मद हाशिम अंसारी के साथ रामचंद्रदास परमहंस के सबसे अच्छे संबंध रहे हैं और दोनों लोग एक साथ मुकदमे की पैरवी करने जाया करते थे. परमहंस ने न सिर्फ अपनी आंखों में पल रहे भव्य राम मंदिर निर्माण के सपने को पूरा किया बल्कि इस बहाने वह भक्तों को भी यह संदेश देने में सफल रहे कि आने वाले समय में राम जन्म स्थान पर भव्य और दिव्य मंदिर बनकर ही रहेगा, लेकिन 92 साल की उम्र में 31 जुलाई 2003 को उनका निधन हो गया.
महंत अवैद्यनाथ
राममंदिर आंदोलन से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मठ का तीन पीढ़ियों से नाता रहा है. गोरखनाथ मठ के महंत दिग्विजयनाथ के निधन के बाद शिष्य महंत अवैद्यनाथ ने गद्दी संभाल ली. उन्होंने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया, जिसके वह आजीवन अध्यक्ष बने रहे. उन्हीं की अगुवाई में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ. अवैद्यनाथ के नेतृत्व में सात अक्टूबर 1984 को सीतामढ़ी से अयोध्या के लिए धर्मयात्रा निकाली गई.
1986 में जब फैजाबाद के जिला जज जस्टिस कृष्ण मोहन पांडेय ने राम मंदिर का ताला खोलने का आदेश दिया था तो उसको लागू करने के लिए महंत अवैद्यनाथ मौके पर मौजूद थे. 22 सितंबर 1989 को उस विराट हिंदू सम्मेलन, जिसमें 9 नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित हुआ, उसकी अध्यक्षता अवैद्यनाथ ने ही की. इतना ही नहीं हरिद्वार के संत सम्मेलन में उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण की तिथि घोषित की और 26 अक्टूबर को वह इसके लिए निकल पड़े थे.
23 जुलाई 1992 में मंदिर निर्माण के लिए अवैद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला. बात नहीं बनी तो 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का निर्णय ले लिया गया. कारसेवा का नेतृत्व करने वालों में अवैद्यनाथ सबसे आगे रहे. उनके समय में गोरखनाथ मंदिर को राम मंदिर आंदोलन के मुख्य केंद्र के तौर पर जाना जाता था. हालांकि, 12 सितंबर 2014 को अवैद्यनाथ का निधन हो गया, जिसके बाद योगी आदित्यनाथ ने उनकी गद्दी संभाली.