scorecardresearch
 

अंबेडकर के नाम में 'रामजी' जोड़ने पर राजनीति से आहत हूं: राम नाईक

राम नाईक ने बताया कि अंबेडकर ने खुद संविधान की मूल प्रतिलिपि पर 'भीमराव रामजी आम्बेडकर' के रूप में अपना हस्ताक्षर किया है. मूल प्रतिलिपि पर संविधान सभा के सभी सदस्यों, जिसमें सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद (जो बाद में आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने) और पंडित जवाहरलाल नेहरू (भारत के पहले प्रधानमंत्री) के भी हस्ताक्षर हैं.

Advertisement
X
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक (फाइल फोटो)
उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक (फाइल फोटो)

Advertisement

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक भारतीय संविधान निर्माता बी.आर. अंबेडकर के नाम को आधिकारिक तौर पर भीमराव रामजी अंबेडकर किए जाने के फैसले के बाद शुरू हुए विवाद से बेफिक्र हैं, लेकिन उनका कहना है कि राजनीतिक दलों द्वारा इस पर विवाद पैदा किए जाने से उन्हें 'बहुत दुख' पहुंचा है.

नाईक ने अंबेडकर के नाम बदलने के अपने प्रयासों के पीछे राजनीतिक उद्देश्य होने के सभी आरोपों को खारिज कर दिया है और कहा है कि दलित आइकन (अंबेडकर) हमेशा से उनके हीरो रहे हैं.

इसे भी पढ़ें : बाबा साहेब अंबेडकर के नाम बदलने पर उदित राज खफा, बोले- दलित भी हैं नाराज

राम नाईक ने आईएएनएस को दिए एक इंटरव्यू में बताया कि अंबेडकर ने खुद संविधान की मूल प्रतिलिपि पर 'भीमराव रामजी अंबेडकर' के रूप में अपना हस्ताक्षर किया है. मूल प्रतिलिपि पर संविधान सभा के सभी सदस्यों, जिसमें सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद (जो बाद में आजाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने) और पंडित जवाहरलाल नेहरू (भारत के पहले प्रधानमंत्री) के भी हस्ताक्षर हैं.

Advertisement

इसे भी पढ़ें : UP में अंबेडकर के नाम में जुड़ेगा 'रामजी', फैसले से BJP सांसद उदितराज खफा

उन्होंने इस जानकारी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ साझा कर उनसे अंबेडकर के नाम में इस 'बड़ी त्रुटि' को ठीक करने का अनुरोध किया. नाईक ने कहा, 'इसके लिए अधिनियम में संशोधन की जरूरत थी, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने मुझे आश्वासन दिया कि उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र के दौरान इसमें संशोधन किया जाएगा.'

नाईक ने आश्चर्य जताते हुए बोले कि जब पिछले साल 29 दिसंबर को नए नाम के विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया था तो समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अब सवाल क्यों उठाया है? इसके बाद लोगों और उनके समर्थकों को यह जानकारी देने के लिए कि दलित आइकन का सही नाम भीमराव रामजी अंबेडकर है, उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती और अंबेडकर के पोते को पत्र लिखकर मदद मांगी थी.

इसे भी पढ़ें : निशाने पर अंबेडकर प्रतिमा: इलाहाबाद में गर्दन तोड़ी, सिद्धार्थनगर में हाथ

मीडिया से बातचीत में नाईक ने कहा,  'वर्ष 1950 के दशक से मैं दलित नेता का प्रशंसक रहा हूं, जब मैं नौकरी की तलाश में मुंबई गया था. मैंने विभिन्न सार्वजनिक रैलियों में उनके भाषणों को सुना था.'

Advertisement

भावुक होते हुए नाईक ने कहा, 'बाबा साहब के लिए मेरे अंदर और यहां तक कि जनसंघ में भी हमेशा से ही आदर का भाव रहा है और यह दुख की बात है कि लोग इन चीजों में राजनीतिक उद्देश्य खोजते हैं, जिनके साथ इसका कोई लेना-देना नहीं है.'

साथ ही नाईक ने कहा, 'महात्मा गांधी की तरह अंबेडकर भी राजनीति से काफी ऊपर थे और उनपर कोई भी समूह, राजनीतिक दल या कोई शख्स अपना अधिकार नहीं जता सकता है.'

मीडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने वर्ष 1989 की एक घटना का जिक्र भी किया, जब उन्होंने लोकसभा में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री के.पी. उन्नीकृष्णन से सवाल किया था कि क्या सरकार ने दलित आइकन की जयंती मनाने के लिए एक डाक टिकट जारी करने की योजना बनाई है. उन्होंने कहा, 'मुझे बताया गया कि केंद्र सरकार की ऐसी कोई योजना नहीं है.'

इसे भी पढ़ें : अंबेडकर के पोते ने दादा के नाम में ‘रामजी’ जोड़ने पर BJP-RSS की मंशा पर उठाए सवाल

पांच बार सांसद रहे और केंद्र में मंत्री रह चुके नाईक ने कहा कि मंत्री ने तब यह कहते हुए प्रतिक्रिया दी कि अंबेडकर पर 15 पैसे और 20 पैसे का टिकट 14 अक्टूबर, 1966 और 14 अप्रैल, 1973 को जारी किए गए थे.

Advertisement

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने न सिर्फ इस पहल पर विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया, बल्कि साथ ही वर्ष 1991 में अंबेडकर पर एक डाक टिकट भी जारी किया. नाईक ने बताया  कि जारी  डाक टिकट पर भी उनका वास्तविक और पूरा नाम लिखा गया था.

रिपोर्टर के यह पूछे जाने पर कि अचानक अंबेडकर के नाम को बदलने का प्रयास क्यों शुरू हो गया? राज्यपाल ने कहा कि यह विचार आगरा में भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा एक दीक्षांत समारोह के लिए मिले निमंत्रण के बाद आया. उन्होंने कहा, 'मैंने उनसे कहा कि यह अंबेडकर जी के नाम को लिखने का गलत तरीका है.' जिसके जवाब में उन्होंने कहा, 'साहब, यहां ऐसे ही चलता है.

इसके बाद नाईक ने कई सरकारी दस्तावेजों पर बारीकी से निगाह डाली और संविधान की मूल प्रति का भी अवलोकन किया. उन्होंने कहा, 'जिस चीज को भी परिवर्तन की जरूरत है, उसे मान्यता के आधार पर नहीं बदला जा सकता है और उसकी संवैधानिक मान्यता के लिए कानूनी समर्थन जरूरी है.'

इसे भी पढ़ें : मायावती बोलीं-भीमराव अंबेडकर के नाम पर नौटंकी कर रही है सरकार

इस कदम से राज्य में एक नई राजनीतिक बहस शुरू हो गई है और बसपा ने आरोप लगाया है कि उनकी प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मिलीभगत है, क्योंकि उनकी जड़ें भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी हैं?

Advertisement

राज्यपाल ने कहा, 'संभवत: इन लोगों और पार्टियों को नहीं पता कि महाराष्ट्र के मराठवाड़ा विश्वविद्यालय के साथ अंबेडकर का नाम जोड़ने के लिए मैंने किस तरह 'सत्याग्रह' शुरू किया था और छह दिनों तक जेल में रहा था.'

विधायक और फिर एक सांसद के रूप में मुंबई की झुग्गी बस्तियों में दो मंजिला शौचालय के लिए पहल करने की बात हो, या फिर गोराई, मनोरी द्वीप में लोगों के लिए बुनियादी ढांचागत सुविधाएं उपलब्ध कराना हो और या फिर सांसदों के लिए सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास (एमपीएलएडी) कोष की शुरूआत की पहल हो, नाईक हमेशा अपने अलग तरह के प्रयासों के लिए जाने जाते रहे हैं.  इस पर वह कहते हैं कि उन्हें जो भी सही लगा, उसे उन्होंने किया है.'

Advertisement
Advertisement