रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति बन चुके हैं. उन्होंने संसद भवन में शपथ ली. लोकसभा को दिए एक इंटरव्यू में रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमारा देश सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, राष्ट्रपति का पद गरिमामय है. इसकी गरिमा सिर्फ राष्ट्रपति भवन पर निर्भर नहीं है, राष्ट्रपति नागरिकों में प्रथम होता है सभी को मिलकर इस पद की गरिमा को बनाए रखना चाहिए. कोविंद ने कहा कि मैंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है, संघर्ष के बाद ही आगे बढ़े हैं. मेरे गांव में ना सड़क, ना ही स्कूल था कोई भी सुविधा नहीं थी उस समय. पर हमारे देश में ऐसे कई गांव हैं. उन्होंने कहा कि हम लोग पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई किया करते थे.
रामनाथ कोविंद ने कहा कि मैं दिल्ली सिर्फ सिविल सर्विस में इच्छा के तौर पर कुछ करने के लिए आया था, यहां सिर्फ मैं कोचिंग करने के लिए यहां पर आया था. दो ट्राई के बाद मैंने अटेंप्ट में पास कर दिया था. लेकिन मैंने बाद में वकालत करने का फैसला किया. 125 करोड़ आबादी वाला देश. दुनिया का सबसे मजबूत और लोकतंत्र वाला देश. इसमें राष्ट्रपति का पद, उसकी गरिमा. इसकी गरिमा सिर्फ राष्ट्रपति भवन पर निर्भर नहीं है, सब नागरिक की जिम्मेदारी है. देश के सभी नागरिक इसकी गरिमा को बनाए रखने में आगे आएंगे. जो अभी तक गरिमा बनी रही है, यही अपेक्ष करता हूं. मुझे लगता है कि हर एक देशवासी का इसमें आशीर्वाद मिलेगा.
वकालत में बहुत क्लास बने हुए हैं
उन्होंने कहा कि यहां भी संघर्ष है. लगा कि इससे अच्छा नौकरी ज्वाइन कर लेते. फिर पता चला कि जो गरीब तबके का आदामी है उसे त्वरित न्याय नहीं मिलता. शनिवार को हम बैठते थे, लोगों को सलाह देते थे. बताते थे कि ये मुकदमा डालोगे तो जीत मिलेगी. लोग सलाह का स्वागत करते थे.
शपथ लेने के बाद रामनाथ कोविंद ने अपने संबोधन में कहा कि मुझे भारत के राष्ट्रपति का दायित्व सौंपने के लिए सभी का आभार व्यक्त करता हूं. मैं पूरी विनम्रता के साथ इस पद को ग्रहण करता हूं. सेंट्रल हॉल में आकर पुरानी यादें ताजा हुई, सांसद के तौर पर यहां पर कई मुद्दों पर चर्चा की है. मैं मिट्टी के घर में पला बढ़ा हूं, मेरी ये यात्रा काफी लंबी रही है.