रात करीब साढ़े 9 बजे वो कॉल आया, जिससे बात करने की कोशिश दिनभर से हो रही थी. पहले झुंझलाई हुई, फिर पस्त पड़ती आवाज. '16 साल से सुरेंदर के साथ-साथ हम भी जेल ही काट रहे हैं मैडम. घर से सामान उठाकर फेंक दिया था. नाम, चेहरा छिपाए भटकते रहे. माफ कर दीजिए, लेकिन मुलाकात नहीं हो सकती.'
नोएडा के निठारी कांड पर हाल में बड़ा फैसला लेते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा रद्द कर दी. मनिंदर की रिहाई हो चुकी, जबकि कोली पर एक केस बाकी है. ये वही शख्स है, जिसपर 16 रेप और हत्याओं का आरोप था.
गूगल पर निठारी सर्च करते ही नरपिशाच, सीरियल रेपिस्ट, हैवान जैसे शब्दों वाले आर्टिकल हिंदी-अंग्रेजी में पटापट खुलते जाएंगे. साथ में कोली की नई-पुरानी तस्वीरें. शुरुआत में माथे पर सिलवटें, आंखें फटी-फटी. आगे के सालों में चेहरा भरा हुआ. आंखों में सबके लिए हिकारत.
निठारी मामले पर मुलाकात के दौरान एक वकील ने कहा- 'अरे, कोई डर नहीं है उस आदमी को. पहली सजा हुई, तो मुंह सूख गया था. अब बोलता है- एक हो, चाहे सौ- फांसी तो फांसी है. मरूंगा तो एक ही बार मैं? पेशी पर आता तो कंधे फैलाकर चलता.'
बच्चियों का रेप करके उन्हें मारने के आरोपी के बारे में कहा गया कि वो अपने शिकार को कुकर में पकाकर खाता था. किसी थ्रिलर फिल्म जैसी कहानी में क्राइम सीन था- नोएडा का निठारी गांव. कोठी नंबर- डी 5. उस आलीशान बंगले के नाले में 19 शरीरों की हड्डियां मिलीं, जिनमें से 17 का DNA लापता बच्चियों से मैच कर गया.
ये बात है साल 2006 की. तब से लेकर अगले 17 साल तक जो कुछ भी हुआ, उसकी आंच अल्मोड़ा के एक पहाड़ी गांव को भी सुलगाती रही. इनका दो-मंजिला घर अब खाली पड़ा है. गांव के ही एक शख्स ने ताजा तस्वीरें भेजीं. खपरैल की छत पर सूखी हुई घास. खुली हुई खिड़कियां-दरवाजे. इंतजार में नहीं, बल्कि अपने खंडहर होने में. आसपास घना झाड़-झंकाड़ दिखता है.
पास जाकर मुख्य दरवाजे की फोटो भेजने की रिक्वेस्ट पर सीधा इनकार आता है. ‘उस घर के पास नहीं जाएंगे. बंद पड़े-पड़े भुतहा हो गया है. हम तो अपने बच्चों को भी नहीं जाने देते. सांप-बिच्छू भी होंगे ही.’
साल 2006 से पहले ये घर गुलजार हुआ करता था. भरा-पूरा परिवार. चार भाई, पत्नियां और बाल-बच्चे. एक बूढ़ी मां, जो गांव की हर शादी पर पहाड़ी गीत गाने सबसे पहले पहुंच जाती. लगभग 3 साल पहले यही मां जेल में बंद बेटे की याद में रोते-रोते चली गई.
गांव का ही ये शख्स याद करता है- आखिर-आखिर में दिमाग फिर गया था अम्मा का. हम लोग ही खाना-पानी पूछ लेते. परिवार मोती की माला जैसे बिखर गया. दो भाई दिल्ली के आसपास बस गए. एक भाई टीचर है. नीचे के गांव में रहता है. यहां नहीं आता. कोली की पत्नी थी. उसका जाने क्या हुआ. सुना था कि दूसरी शादी कर ली है, लेकिन पता नहीं. उन लोगों से बात भी कौन करे!
इसी ग्रामीण शख्स के जरिए हम सुरेंदर कोली के गांववाले भाई, और फिर दिल्ली रहते बड़े भाई तक पहुंचे.
नाम छिपाने की शर्त पर सारी बातचीत हुई.
वे कहते हैं- खबर आते ही सबसे पहले हमारी छत छिनी. दिल्ली में ही थे तब. मकान मालिक ने समय दिए बिना सामान खोली के बाहर पटक दिया. कपड़े, खिलौने, जनाना चीजें- सब बीच सड़क पर बिखरे थे. लोग चिल्ला रहे थे. बच्चा खाने वाला बोल रहे थे. मारने की धमकियां दे रहे थे. ठंड का समय था. अगले दिन बच्चे को बुखार हो गया. इसके बाद से सब बिगड़ता ही चला गया. कितनी बार ऐसा हुआ कि रास्ता चलते-चलते गाड़ियों ने मुझे मारने की कोशिश की. गालियां तो ऐसी मिलतीं, जैसे लोग नाम पुकार रहे हों.
जान का खतरा था तो पुलिस से सुरक्षा क्यों नहीं मांगी?
हम क्या मांगते. 19 औरतों-बच्चों के हत्यारे का परिवार मानते थे सब हमें. हर कोई कोसता. गाली के बिना किसी ने बात ही नहीं की. नौकरी तक चली गई. जिंदा बच गए, वही बड़ी बात है.
क्या काम करते हैं आप? अब कहां हैं.
देखिए मैडम, ये सब मैं नहीं बता सकता. बड़ी मुश्किल से काम मिल सका है. जीवन पटरी पर लौट रहा है. आपने पहले फोन किया तो ऑफिस में था. कोई सुन लेता इसलिए बात नहीं कर सका.
अच्छा. हमें कोली पर कोई बात नहीं करनी. आप बस अपने बारे में बताइए.
आपसे पहले भी शुरू-शुरू में कई लोगों ने ये कहा. होटल ले गए. बढ़िया खाना खिलाया. आंसू पोंछे. और अगले दिन हमारे बारे में वही सब लिख दिया. फोन पार से चोट खाई आवाज आती है.
बहुत दिन हम और घरवाली बच्चों को लिए यहां-वहां भटकते रहे. रिश्तेदारों ने फोन उठाना बंद कर दिया. किसी के घर जाते तो दरवाजा नहीं खुलता था. सुरेंदर के बारे में जो कहा जा रहा है, कितना सच है, कितना झूठ, नहीं पता, लेकिन दुनिया के लिए हम भी क्रिमिनल थे, वो भी बहुत खतरनाक.
कोई अपने बच्चों को, हमारे बच्चों के साथ खेलने नहीं देता था. छोटे-छोटे बालक बेचारे सूखा-सा मुंह लिए बैठे रहते. घर में बात होती रहती तो थोड़ा-बहुत अंदाजा था कि कुछ चाचा से जुड़ा हुआ है. लेकिन हम कभी बता नहीं सके. शर्म के मारे स्कूल जाना भी कम कर दिया था.
कोली तो आपका भाई था. उसने ये किया होगा?
क्या बताएं! साथ जन्मे-खेले. लगता तो नहीं कि उसने कुछ भी किया होगा. बड़े आदमियों के साथ था. शायद यही गलत हो गया.
फिर भी. कभी गुस्सा दिखाया हो, किसी से मारपीट की हो!
देखिए मैडम, मैंने कहा न कि ये बात नहीं करनी. वैसे भी हम भाई हैं. मां जिंदा होती तो बोलती. उसकी पत्नी होती तो बोलती. हमारा वैसा हक नहीं.
पत्नी कहां हैं अभी?
दूसरा घरबार कर ली वो. अब तो नई शादी से भी बच्चा है.
मेरी बात हो सकती है क्या उनसे, नंबर देंगे आप!
नहीं. नंबर तो नहीं दे सकता. वो भी किस्मत की मारी थी. सालों इंतजार किया. और रुकती तो शायद पति सही-सलामत लौट आता. अब दूसरे घर की है. उससे हमारी भी बात नहीं होती. सुरेंदर का बड़ा बेटा अभी फैसले के बाद शायद जेल गया था अपने पापा से मिलने.
उसके बेटे से ही बात करवा दीजिए!
पूछकर देखूंगा. अगर उसकी मां मान जाए तो बात कर लेगा. वैसे उम्मीद कम है. वो नए परिवार में रहती है. पुराने करम की आंच नहीं लगने देगी. हम भी दूर ही रहते हैं.
तो आप ही हमसे मिल लीजिए.
बिल्कुल नहीं. हमारे बच्चे शादी-ब्याह लायक हो गए हैं. बहुत साल तकलीफ में रहे. अब कोई बात नहीं करनी. फिर फोन मत कीजिएगा. सूखी-चिड़चिड़ाई हुई आवाज ने फोन काटा और फिर दोबारा बात नहीं की.
CBI कोर्ट, गाजियाबाद में हमारी मुलाकात सीनियर एडवोकेट खालिद खान से हुई. पीड़ितों की तरफ से लड़ रहे खालिद रिहाई से खुद हैरान लगे. वे कहते हैं- शुरुआत में ही नोएडा पुलिस को काफी सबूत मिल चुके थे. हड्डियों-खोपड़ियों की बरामदगी के बाद पंढेर और कोली दोनों के कन्फेशनल स्टेटमेंट रिकॉर्ड हुए. दोनों ने ही जुर्म कुबूल लिया था.
उन्हीं की निशानदेही पर कोठी से साबुत आरी बरामद हुई. उसका भी जब्ती का मैमो पुलिस ने बनाया. लेकिन CBI के पास जाते ही मामला पलट गया. दोनों के कन्फेशन, आरी की बरामदगी और मैमो को जांच में शामिल ही नहीं किया गया. आगे चलकर केस डायरी पेश नहीं की गई. शायद अधिकारी किसी को बचा रहे थे.
किसे बचा रहे थे?
अब ये तो आप भी समझती हैं. सुना है कि विदेश तक से दबाव था.
केस को शुरू से देख रहे खालिद कई सवाल उठाते हैं-
- एक विक्टिम रिंकी के पिता जतिन सरकार ने कोर्ट में केस डायरी पेश की थी. कुछ समय बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में रहस्यमय हालात में उनका मर्डर हो गया. जतिन की मौत भी दबा दी गई.
- CBI ने जो चार्जशीट लगाई, उसमें हर लड़की के गायब होने की जो भी तारीख थी, उस हर डेट पर पंढेर को नोएडा से बाहर दिखाया गया. 16 बार लगातार ये संयोग दिखा. इसपर भी कोर्ट में बात शायद ही हुई हो.
- ज्यादातर पीड़ित परिवारों ने अपने बयान बदल दिए. एक गवाह को तो इस मामले में सजा भी हुई. ये बात भी CBI के भीतर जांच का विषय नहीं बनी.
खालिद के चैंबर में अब भी निठारी मामले की पेपर कटिंग्स चिपकी हुई हैं. साथ में लिखा है- पीड़ितों का वकील! निकलते हुए खालिद जोड़ते हैं- हड्डियां उसी बंगले के पास, उसी नाले में क्यों मिलीं, हमारे या दूसरे घरों के पास क्यों नहीं! मामला जितना आसान था, उतना ही पेचीदा बना दिया गया.
यही बात कड़कड़डूमा कोर्ट के वकील मनीष भदौरिया भी दोहराते हैं. दो लोगों को इतने लंबे समय के लिए जेल में रखा गया. कोर्ट बदले. वकील बदले. सबूत जुटे-मिटे. नाले की सफाई-खुदाई, फोरेंसिक, CBI, सबका खर्च जोड़ें तो 2 आरोपियों पर कई करोड़ खर्च हुए होंगे. उसके बाद एक की रिहाई हो चुकी, और दूसरा कतार में है. कुल मिलाकर, पब्लिक के पैसे 19 मौतों को झुठलाने पर बर्बाद हो गए.
फोन पर बातचीत में मोनिंदर पंढेर के वकील देवराज सिंह कहते हैं- मैं इनकार नहीं करता कि हत्याएं हुई हैं. बच्चियों की मौत हुई है, लेकिन मेरे क्लाइंट को क्यों दोषी क्यों मान लिया! मीडिया और पब्लिक लगातार पीछे पड़े रहे, आखिरकार ट्रायल में हम निर्दोष साबित हुए. अब आपको लगता है कि गलत हुआ है तो दोबारा जांच कराई जाए. देखा जाए कि इतनी मौतों का जिम्मेदार कौन है.
लेकिन कोठी से तो हत्या के लिए इस्तेमाल हुई आरी भी बरामद हुई थी!
आरी-आरी तो आप सब कहते आए हैं, लेकिन वो किस किस्म की आरी थी, ये किसी को नहीं पता. नोएडा पुलिस को लोहे का पाइप काटने वाली पतली आरी का छह इंची टुकड़ा मिला था. इसी पर इतना हल्ला मच गया.