‘मैं नंबर गेम में यकीन नहीं करता. मैं इस रेस में शामिल नहीं हूं. मैं हर रोल में अपना हंड्रेड पर्सेंट देता हूं और फिर बाकी जनता पर छोड़ देता हूं. मैं चूहा दौड़ का हिस्सा नहीं हूं.’ अकसर फिल्म स्टार ऐसे स्टेटमेंट देते हैं. इनमें कुछ जानते हैं कि वे सुपर स्टार हैं, लेकिन फिर भी विनम्र बनने की कोशिश करते हैं. कुछ सुपर तो क्या स्टार भी नहीं हैं, फिर भी इस तरह के स्टेटमेंट देते हैं, ताकि लोग समझें कि स्टार की तरह बोलता है, लगता है स्टार बन गया है. हैसियत और मकसद चाहे जो हो, इन बयानों के जरिए चूहा दौड़ जारी रहती है.
मगर ये फिल्मी दुनिया की बात है. अगर राजनीति की बात करें, तो यहां चूहा दौड़ नहीं सत्ता की लड़ाई होती है, जहां संख्या मायने रखती है, हमेशा ही. मगर खुद को सत्ता की सबसे बड़ी और वैध दावेदार साबित करने में जुटी बीजेपी की अंदरूनी उठापटक इस सच को भूल गई है. उसके मंच पर जो कुछ हो रहा है, वह चूहा दौड़ जैसा ही नजर आ रहा है. ऐसे में फिल्मी ट्रिक यहां भी आजमाई जा रही हैं. खुद को नंबर वन का एक दावेदार समझने वाला सुपर स्टार विनम्र दिखने की कोशिश कर रहा है, टुटपुंजिए एक्टर भी कुछ कुछ करने में जुटे हैं.
बीजेपी का जहाज अभी सत्ता के किनारे लगा नहीं है. उसे उम्मीद है क्योंकि एक बड़े तबके को लगता है कि मोदी के नेतृत्व में वह कप्तान मिल गया है, जो हवा का रुख समझता है. वह जहाज को रफ्तार देगा और उस पर सवार लोगों को साथ रखेगा. बड़े तबके से ज्यादा यह विचार मोदी को भाता है. उन्हें लगता है कि इस जहाज और इसके किनारे पहुंचने पर मिलने वाले किनारे पर स्वाभाविक हक उनका है. उनके समर्थक भी नमो नमो का मंत्र अलाप जीत का सपना देख रहे हैं. तभी इस कीर्तन में एक बुजुर्ग का आलाप खलल डाल देता है.
आडवाणी ने जैसे ही कहा कि मोदी नंबर वन सीएम नहीं हैं, जहाज पर खलबली मच गई. मतलब निकाले जाने लगे कि वे शिवराज के सिर ताज सजते देखना चाहते हैं. तभी आगे आए पार्टी अध्यक्ष राजनाथ और बोले कि मोदी जी नंबर वन सीएम हैं. उन्होंने ये भी चिप्पी चिपका दी कि वे पार्टी के सबसे पॉपुलर नेता हैं. साथ में ये भी कहा कि आडवाणी जी के बयान को गलत समझा गया. हालांकि समझाने के लिए आडवाणी आगे नहीं आए कि उनके बयान को किसने गलत समझा, लोगों ने या उनकी ही पार्टी के नेताओं ने. इन बयानों के बीच सच्चे सुपर स्टार की तरह शिवराज चौहान एंट्री लेते हैं और विनम्रता दर्शाते हुए कहते हैं कि मैं नंबर वन तो क्या नंबर टू भी नहीं हूं. मैं तो नंबर तीन पर हूं. नरेंद्र मोदी और रमन सिंह पार्टी में मेरे सीनियर हैं.
बयानों के इस ब्रेक के बाद कुछ शांति से चल रहे जहाज पर फिर भगदड़ मची. चर्चा फिर शुरू हुई कि कौन हो कप्तान. मोदी इस गुमान में हैं, हिंदुत्व औऱ विकास के मसीहा बन उभरने के बाद गद्दी पर हक बस उनका है. उनके सामने आडवाणी हैं, जो लंबे समय से पीएम इन वेटिंग का दायित्व निभाते निभाते ऊब गए हैं, बेचैन हो गए हैं. उन्हें लग रहा है कि बीजेपी के नेतृत्व में सत्ता मिली, तो अभी भी उनकी वेटिंग का इनाम लिया जा सकता है.
सवाल सत्ता की चाशनी चाटने का है, मगर असल सवाल की तरफ तो किसी का ध्यान ही नहीं कि अभी सत्ता मिली कहां, जो बंटरबांट पर पहले ही लाग डांट शुरू हो गई. और आडवाणी जैसे धुरंधर भी इस सवाल का जवाब देने के बजाय चाशनी पर किसका हक औऱ किसका नहीं, इसकी नापतौल में लगे हैं.
शुरुआत चूहे से हुई थी. चूहा, जो भगवान गणेश की सवारी है. हम मूर्तियों और मंदिरों में चूहा पूजते हैं, मगर असल जिंदगी में उसे देखते ही झाड़ू ले दौड़ते हैं. चूहों को लेकर और भी दुनियादारी हैं. मसलन, जब जहाज डूबने को होता है, तो सबसे पहले चूहे ही उससे बाहर कूदते हैं.
कई बार चूहे काल्पनिक सत्ता के सम्मोहनी संगीत पर झूम भी गिरने मरने लगते हैं. इन सच्चाइयों के बावजूद बीजेपी में किसी का ध्यान अपना जहाज बचाने पर नहीं है. हर कोई अपने स्टारडम में झूम रहा है. कोई खुद को चूहा नहीं मानता, फिर भी दौड़ में शामिल है और दाएं बाएं देखकर बयान पर बयान दिए जा रहा है. इनके मायने भी महीन हैं. हर हां का मतलब न है और न का मतलब हां. और पार्टी का दुर्भाग्य यह कि यह रेस सत्ता के तट पर लग जाने के बाद शुरू नहीं हुई. यह जहाज पर ही शुरू हो गई. इसके चलते जहाज है कि खतरनाक ढंग से हिलने लगा है. सब भूल गए हैं कि सत्ता की रौशनी से पहले संघर्ष का अंधेरा है. और इसे पार पाने के लिए आपस का साथ चाहिए, वर्ना किनारे का सूरज किनारे ही डूब जाएगा और जहाज बिना किनारे पहुंचे.