पश्चिम बंगाल के हावड़ा के पास स्थित धुलागढ़ में दंगा हुए दो हफ्ते बीत चुके हैं, लेकिन लोगों में भय अब भी बना हुआ है. हिंसक भीड़ के हमलों से तमाम लोग बेघर हो गए हैं और अब भी अपने घरों में लौटने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं. राज्य सरकार के सचिवालय से महज 20 किमी की दूरी पर स्थित इस छोटे-से कस्बे में आज हर तरफ जले और टूटे हुए घर दिख रहे हैं. तमाम लोग यह इलाका छोड़कर भाग चुके हैं. धुलागढ़ दंगों पर जमकर राजनीति हो रही है, लेकिन इस उन्मादी हिंसा में सबकुछ गंवा देने वालों की मदद के बारे में कोई नहीं सोच रहा.
रामपद मन्ना और उनकी पत्नी सीमा उन कुछ लोगों में से हैं, जो किसी तरह हिम्मत जुटाकर अपने घर वापस आए गए हैं. सीमा बेसब्री से यह देखने में लगी हैं कि उनके घर में कुछ बचा भी है या नहीं. रामपद बताते हैं, 'अब हम यहां नहीं रह सकते, इसलिए हमने अपने रिश्तेदारों के यहां शरण ली है. उस दिन पुलिस आई तो थी, लेकिन जब हमारे ऊपर हमला हुआ, तो पुलिस भी भाग खड़ी हुई. तीन सदस्यों के परिवार का पेट पालने वाले मन्ना नाई हैं. दंगे के दिन हिंसक भीड़ ने उनके गेट को तोड़ दिया और घर को तहस-नहस कर दिया. सीमा ने कहा, 'हम बहुत गरीब हैं. हमने अपने बेटे की पढ़ाई के लिए बड़ी मुश्किल से एक लैपटॉप खरीदा था, जिसे दंगाई उठा ले गए. यही नही, उन्होंने हमारे 65,000 रुपये भी लूट लिए जो हमने एलआईसी में जमा करने के लिए रखे थे.'
पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे
बनर्जी पाड़ा में स्थित मन्ना के घर के बगल में ही मंडल परिवार रहता है. दो बच्चों की मां मैत्री मंडल कहती हैं कि 'पाकिस्तान जिंदाबाद' के नारे लगाते हुए हिंसक भीड़ उनके बेडरूम में आ गई और उनका मकान जला दिया. उन्होंने रोते हुए कहा, ' मेरा बेटे को इस फरवरी में बोर्ड का एग्जाम देना है, लेकिन उन्होंने सब कुछ तबाह कर दिया.
उसकी सभी किताबें जलकर नष्ट हो गई हैं. मेरा बेटा तबसे सदमे में है.'
देर से पहुंची पुलिस
मैत्री ने बताया, 'पांच घंटे तक वे (दंगाई) उपद्रव करते रहे और पुलिस तब आई जब हमारा सबकुछ नष्ट हो चुका था. एक भी मंत्री हमारा हाल जानने नहीं आया.' राजनीति तो सभी कर रहे हैं, लेकिन दंगापीड़ितों की मदद के लिए कोई सामने नहीं आ रहा. राज्य सरकार ने पीड़ितों के लिए महज 35,000 रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की
है, लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह बेहद कम है. दंग के बाद से धुलागढ़ में निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है, बड़े पैमाने पर सुरक्षा बल तैनात हैं और लोगों की आवाजाही पर अंकुश लगाया गया है. अभी कोई नहीं बता पा रहा है कि 12 दिसंबर को मुस्लिमों का त्योहार ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मनाए जाने के बाद आखिर दंगों की शुरुआत
कैसे हुई, लेकिन दंगा रोकने में पुलिस की नाकामी को लेकर हर तरफ आक्रोश है.
तमाशबीन बनी पुलिस ने घर छोड़ने को कहा
दिलीप खन्ना को जब यह पता चला कि दंगाई गांव के करीब पहुंच गए हैं तो उन्होंने खुद को एक कमरे के अंदर बंद कर लिया. उन्होंने बताया, 'जब पुलिस आई, तो उसने हम सबसे कहा कि दो मिनट में घर छोड़कर निकल जाओ ! वे तो दंगाइयों को हमारे घर तहस-नहस करने से भी नहीं रोक पाए. दंगाई मकान लूटते और जलाते रहे, जबकि
पुलिस खड़े होकर तमाशा देखती रही.' उनकी 32 वर्षीय पड़ोसी शुभ्रा भी अपनी जान बचाने के लिए घर से भाग गई थीं. दंगाइयों ने उनके घर का एक हिस्सा जला दिया है, जिससे उन्हें एक मंदिर में शरण लेनी पड़ी है. उन्होंने बताया, 'उनके हाथ में पेट्रोल और केरोसीन के ड्रम थे और वे पूरी तरह से तैयार होकर आए थे. हमारे जेवरात और
पैसे लूटने के बाद उन्होंने सबकुछ जलाकर खाक कर दिया. अब हम कहां जाएं.'
तनाव अब भी बरकरार है
पुलिस तो तब से चुप ही है. राज्य सरकार ने इस इलाके में विपक्षी दलों के नेताओं और मीडिया के प्रवेश पर रोक लगा दी है. कांग्रेस, बीजेपी और माकपा के प्रतिनिधिमंडल को कई किलोमीटर पहले ही रोक दिया गया. दबाव को देखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हावड़ा ग्रामीण जिले के एसपी को हटा दिया है और दंगे के सिलसिले में दर्जनों
लोग गिरफ्तार किए गए हैं, लेकिन स्थिति अब भी काफी तनावपूर्ण है.