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RBI-मोदी सरकार के बीच वे विवाद जिनसे तय थी उर्जित पटेल की विदाई

केन्द्रीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल को आखिर इस्तीफा देना पड़ा. मोदी सरकार के कार्यकाल में यह दूसरा मौका है जब रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार के बीच विवादों के चलते गवर्नर को इस्तीफा देना पड़ा. इससे पहले रघुराम राजन ने सरकार के दबाव में इस्तीफा दिया और अब जानें किन दबावों के चलते यह तय माना जा रहा था कि उर्जित पटेल भी इस्तीफा देंगे. 

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उर्जित पटेल, गवर्नर, रिजर्व बैंक (फाइल फोटो)
उर्जित पटेल, गवर्नर, रिजर्व बैंक (फाइल फोटो)

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आखिरकार दो महीने तक खिंचे विवाद के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर उर्जित पटेल ने तत्काल प्रभाव से अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. पटेल ने कहा है कि वह निजी कारणों से इस्तीफा दे रहे हैं. तत्काल प्रभाव से दिए गए इस्तीफे का मतलब है कि अब आरबीआई और केन्द्र सरकार के बीच तालमेल पूरी तरह बिखर गया है और पटेल के लिए इस पद पर खुद को जारी रखना नामुमकिन हो गया था.

RBI  के ‘रिजर्व’ पर थी सरकार की नजर?

हाल ही में केन्द्रीय बैंक गवर्नर और केन्द्र सरकार में स्वायत्तता को लेकर विवाद खड़ा हुआ था. विवाद केन्द्र सरकार द्वारा आरबीआई के खजाने में पड़े सिक्योरिटी डिपॉजिट को लेकर था. रिपोर्ट के मुताबिक केन्द्र सरकार केन्द्रीय रिजर्व से अधिक अंश की मांग कर रहा था. हालांकि इस विवाद के बाद केन्द्र सरकार ने बयान दिया था कि उसके और आरबीआई के बीच स्वायत्तता को लेकर कोई विवाद नहीं है.

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एक्सपर्ट समिति बनाने पर नहीं बनी सहमति?

केन्द्रीय रिजर्व बैंक और केन्द्र सरकार के बीच खींचतान बीते कई महीनों से जारी थी. इन विवादों को सुलझाने के लिए आरबीआई बोर्ड ने 19 नवंबर को मैराथन बैठक करते हुए दोनों केन्द्र सरकार और केन्द्रीय बैंक में नए सिरे से सामंजस्य बैठाने के लिए कई अहम फैसले लिए थे. इसमें आरबीआई और केन्द्र सरकार को मिलकर एक एक्सपर्ट समिति गठित करनी थी. इस समिति को आरबीआई और केन्द्र सरकार के बीच जारी विवादों की समीक्षा करने के साथ उनके हल पर काम करना था. वहीं इस समिति को गठित करने में केन्द्रीय बैंक के साथ-साथ केन्द्र सरकार को भी अहम किरदार दिया गया था. उर्जित पटेल के इस इस्तीफे से जाहिर है कि इस समिति को गठित करने के काम को दोनों आरबीआई और केन्द्र सरकार मिलकर नहीं कर पाई हैं.

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कितना खतरनाक हो गया RBI-सरकार का रिश्ता?

RBI और केन्द्र सरकार के बीच कई संवेदनशील मामलों में विवाद की स्थिति का खुलासा अक्टूबर के अंत में तब हुआ जब RBI के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने दावा किया कि RBI के कामकाज में दखल देने से देश के लिए खतरनाक स्थिति पैदा हो सकती है. आचार्य के इस बयान के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आरबीआई पर आरोप लगाया था कि 2008 से 2014 तक केन्द्रीय बैंक ने कर्ज बांटने के काम की अनदेखी की और देश के सामने गंभीर एनपीए की समस्या खड़ी हो गई.

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एनबीएफसी पर सरकार और RBI आमने-सामने?

बैंकिंग सेक्टर में सुधार के लिए RBI ने हाल में कई कड़े कदम उठाए थे. इनमें बैंकिंग सेक्टर में बैड लोन की समस्या को लेकर RBI ने देश में गैर-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (एनबीएफसी) के बैड लोन को दुरुस्त करने के लिए कड़ी पाबंदियां लगाई थीं. इन एनबीएफसी के जरिए देश में लघु, मध्यम और छोटे कारोबार समेत आम आदमी को नया कर्ज देने का काम किया जाता है. RBI की सख्ती की वजह से एनबीएफसी गंभीर कैश संकट के दौर से गुजर रही हैं. केन्द्र सरकार का दबाव था कि आरबीआई इन कंपनियों के प्रति कम सख्त हो और इनके जरिए नए कर्ज देने के लिए इन कंपनियों के पास तरलता में इजाफा करे.

RBI एक्ट के सेक्शन 7 पर सस्पेंस?    

केन्द्र सरकार और आरबीआई के बीच जारी विवाद में आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 के इस्तेमाल की भी बात सामने आई थी. इस सेक्शन के तहत केन्द्र सरकार जनहित में अहम मुद्दों पर आरबीआई को फरमान देने का काम कर सकती है. गौरतलब है कि इस विवाद के बीच केन्द्र सरकार द्वारा सेक्शन 7को पहली बार इस्तेमाल किए जाने की बात कही गई थी. हालांकि केन्द्र सरकार ने मामले में सफाई देते हुए कहा था कि उसने इस सेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया है. वहीं वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि आरबीआई एक्ट कहता है कि केन्द्र सरकार गंभीर मामलों में सलाह देने का काम करती है और दावा किया कि केन्द्र सरकार इसी प्रावधान के तहत सिर्फ सलाह देती है.

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