'उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए.' युवाओं के बीच सकरात्मक ऊर्जा और बहुत कम उम्र में
दुनिया में भारत की गरिमा बढ़ाने वाले नरेंद्र नाथ दत्ता उर्फ स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12
जनवरी 1863 को हुआ. अपने विचारों से स्वामी विवेकानंद ने दुनिया के बीच भारत का डंका बजाया.
ऐसे
वक्त में जब भारत को बाकी देशों की तुलना में कमतर समझा जाता था, स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1883 को शिकागो के
विश्व धर्म संसद में हिन्दू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर से आए लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया. स्वामी विवेकानंद
को उस सम्मेलन का लोगों के लिए संबोधन ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ उस वक्त से लेकर आज तक लोगों के जेहन में है. स्वामी
विवेकानंद के जन्मदिन के मौके पर जानिए उनके 10 ऐसे विचार, जिन्हें अपनाने से आपके सोचने और जिंदगी जीने का नजरिया बेहतर हो सकता है और सुनिए 1883 को शिकागो के विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद का यादगार भाषण.
1. जो सच है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो. उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो. दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो. सच की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है और उन्हें बहा ले जाती है. तो ले जाने दो, वे जितना शीघ्र बह जाएं उतना अच्छा ही है.
2. तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ. जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव हो, तब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते.
3. ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्धि कर सकता है. सभी जीवंत ईश्वर हैं. इस भाव से सब को देखो. मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है. जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं. सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं. इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे. मर जाएंगे. तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो.
4.ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका अविष्कार करता है. जब तक जीना, तब तक सीखना. अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है.
5. बड़े-बड़े दिग्गज बह जाएंगे. छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे. अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है. किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो. यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है. डरने का कोई कारण नहीं है, मां मेरे साथ हैं. इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे. भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ.
6. किसी बात से तुम उत्साहहीन न हो. जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अन्तिम सांस भी ले रहे हो तो भी न डरना. सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो.
7. लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो.
स्वामी विवेकानंद की कहानी उन्हीं की जुबानी
8. साहसी होकर काम करो. धीरज और स्थिरता से काम करना, यही एक मार्ग है. आगे बढ़ो. और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म. जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे. तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होंगे. मां तुम्हें कभी न छोड़ेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे.
9. वीरता से आगे बढ़ो. एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो. उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो. स्थिर रहो. स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो. आज्ञा-पालन करो. सत्य, मनुष्य — जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे. याद रखो. व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं.
10. शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है. इसलिए अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो. पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं.
सुनिए स्वामी विवेकानंद का 11 सितंबर 1883 को विश्व धर्म संसद में दिया यादगार भाषण..