नई सरकार की ऊर्जा से लैस शुरुआत तो हुई, लेकिन चुनौतियों ने अपना सिर उठाना शुरू कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पद संभालने के बाद अपने पहले महीने के दौरान त्वरित फैसले लेने की राह तैयार कर शासन को दुरुस्त करने का प्रयास किया है और मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अपना 'कड़ा' फैसला भी लिया है.
इसके अलावा कांग्रेस कार्यकाल की कुछ नियुक्तियों को निष्प्रभावी किया है. मोदी (63) ने अपने घोषित लक्ष्य 'न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन' साधने के लिए दफ्तरी कामकाज की संस्कृति और शासन की शैली में बदलाव लाने का प्रयास किया है.
पहला महीना ऐसे फैसलों का गवाह रहा, जिससे पुराने दिनों की विदाई की झलक मिलती है. प्रधानमंत्री का कार्यालय (पीएमओ) सत्ता की धुरी बना, पूर्व की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के समय का तंत्र मंत्रियों के समूह का बोरिया-बिस्तरा बांध दिया गया और मोदी 'सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दों' को अपने ही कब्जे में रख रहे हैं. लेकिन जिन कदमों से मोदी ने मीडिया में सकारात्मक सुर्खियां बटोरी थीं, उन पर अब चुनौतियों का ग्रहण लग चुका है. उनकी सरकार के सामने इराक में भारतीयों के अपहरण, आसमान छूती महंगाई का और जानलेवा होना और कमजोर मानसून की भविष्यवाणी सुरसा बनकर खड़ी है.
पहले महीने में सरकार ने रेल किराए में 14 प्रतिशत की वृद्धि करने का अलोकप्रिय फैसला किया, जबकि नई सरकार का पहला बजट 10 जुलाई को पेश किया जाना है. बीजेपी के एक नेता ने कहा कि रेल किराया-भाड़ा में वृद्धि पहला कड़ा कदम है और इसके बाद और भी कदम उठाए जाएंगे.
बीजेपी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी कहा, 'कुछ और भी कदम उठाए जाएंगे, जो संभवत: लोकप्रिय नहीं हों, लेकिन वे देशहित में होंगे.' उन्होंने कहा, 'यूपीए ने अर्थव्यवस्था को तबाही में लाकर रख दिया था, इसलिए कुछ ऐसे फैसले लेने होंगे, जो लोकप्रिय नहीं होंगे.'
राज्यपालों और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) और राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) जैसे संस्थानों के प्रमुखों के इस्तीफा दिए जाने के लिए कहे जाने के आरोप का बीजेपी ने खंडन किया है.
नकवी ने कहा, 'हमारी सरकार ने किसी को भी पद छोड़ने के लिए नहीं कहा है. यह उन लोगों को खुद ही विचार करना चाहिए कि उन्हें उस पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार है?'