एम्स का नाम सुनते ही एक भरोसा जाग उठता है, यहां समुचित इलाज होगा. दिल्ली एम्स में ऐसी सुविधाएं भी हैं जहां देशभर मरीज आते हैं और उनका बेहतर इलाज भी होता है. दिल्ली एम्स के तर्ज पर देश के कई हिस्सों में एम्स खोलने का फैसला लिया गया और धीरे-धीरे कई राज्यों में एम्स बनकर तैयार भी हो गया है. लेकिन जब दिल्ली एम्स की तरह उम्मीद लिए मरीज यहां पहुंचते हैं तो उन्हें निराशा हाथ लगती है. 'आजतक' ने पटना, रायपुर और भोपाल एम्स का रियलिटी चेक किया. हमारी पड़ताल में पता चला कि भले ही इन अस्पतालों के नाम में AIIMS जुड़ा है. लेकिन यहां डॉक्टरों से लेकर आधुनिक उपकरणों की भारी किल्लत है और मरीज परेशान होकर यहां से दूसरे अस्पतालों का रुख करने को लाचार हैं.
5 साल बाद भी पटना एम्स बदहाल
दिल्ली के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान एम्स में बिहार से रोजाना सैकड़ों की संख्या में लोग अपना इलाज कराने जाते हैं और इसी समस्या को कम करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कई शहरों में दिल्ली की तर्ज पर एम्स खोलने की कवायद शुरू की गई. पटना भी खुशनसीब था और उससे भी एम्स की सौगात मिल गई. 7 साल की देरी के बाद आखिरकार 2012 से पटना में एम्स में काम करना शुरू कर दिया.
नेता जी का वादा
कुछ दिन पहले केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने भी पटना एम्स को लेकर कहा था कि वह चाहते हैं कि पटना एम्स की स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बेहतरीन कर दी जाए ताकि बिहार के लोगों को अपना इलाज कराने के लिए दिल्ली ना जाना पड़े. ऐसे में सवाल उठता है कि 5 साल के बाद भी क्या पटना एम्स में स्वास्थ्य सेवाएं इतनी बेहतर हो चुके हैं कि बिहार के लोगों को दिल्ली एम्स नहीं जाना पड़े? जमीनी हकीकत अगर देखेंगे तो पटना एम्स की हालत आज भी ऐसी नहीं हुई है कि मरीज इस संस्थान में हर रोग का इलाज करवा पाए. दिल्ली एम्स के तर्ज पर बनाया संस्थान आज भी बुनियादी सुविधाओं के बगैर ही कार्यरत है.
पटना एम्स में इमरजेंसी सर्विस अब भी नहीं
अस्पताल की अगर बात करें तो यहां सबसे जरूरी चीज होती है इमरजेंसी सेवाएं, यानी कि आपातकाल सेवाएं मगर पटना एम्स में 5 साल गुजर जाने के बावजूद भी यहां पर आपातकाल सेवाएं अब तक शुरू नहीं हुई है. यहां पर अलग से आपातकाल विभाग जरूर बना हुआ है मगर कार्यरत नहीं है. ऐसे में गंभीर स्थिति में किसी मरीज को यहां लाया जाता है तो उसे यहां से पटना मेडिकल कॉलेज या फिर इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस रेफर कर दिया जाता है.
बिना 'ब्लड बैंक' पटना एम्स
पटना एम्स में जब आपातकाल सेवाएं उपलब्ध नहीं है तो साथ ही ट्रॉमा सेंटर की भी कमी साफ देखी जा सकती है. पटना एम्स में आज भी ब्लड बैंक की सेवा उपलब्ध नहीं है. ब्लड बैंक के लिए अलग से एक ब्लॉक का निर्माण किया जा चुका है मगर यह अभी तक कार्यरत नहीं हुआ है. पटना एम्स का निर्माण यह सोचकर किया गया था कि बिहार और झारखंड के लोग यहां पर आकर अपना इलाज करवा पाएंगे और इसी वजह से इस बड़े संस्थान में 28 ऑपरेशन थिएटर का निर्माण कराया गया था. लेकिन हालत यह कि आज के दिन केवल चार ऑपरेशन थिएटर काम कर रहे हैं. सूत्रों की माने तो पटना एम्स में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भी भारी कमी है.
304 में से 50 डॉक्टर्स कार्यरत
केंद्र सरकार के द्वारा पटना एम्स में 304 डॉक्टरों और टीचरों के लिए पद स्वीकृत है मगर 5 साल बीत जाने के बाद भी हालात यह है कि यहां पर केवल 50 डॉक्टर और टीचर कार्यरत है. योजना के मुताबिक पटना एम्स को 1000 बेड वाला अस्पताल बनाया जाना था और इस संस्थान की क्षमता भी इतनी ही है मगर आज का दिन यहां केवल 200 बेड उपलब्ध हैं. पटना एम्स में आज भी शवगृह नहीं है जिसकी वजह से यहां पर किसी की अप्राकृतिक मृत्यु हो जाती है तो उसका पोस्टमार्टम भी नहीं कराया जा सकता है.
'आजतक' में पटना एम्स के अंदर जाकर हालात का जायजा लिया तो पाया कि 5 साल बीत जाने के बाद भी यहां पर अब तक निर्माण का कार्य चल ही रहा है. रोजाना कई ट्रकों का आना जाना लगा रहता है जिसमें बालू, सीमेंट, ईंट और सरिया लोड रहता है. अस्पताल के पांच जगहों पर अभी भी निर्माण का कार्य चल रहा है और हर तरफ आपको बालू, गिट्टी और सरिया का ढेर नजर आएगा.
रायपुर AIIMS का ये है हाल
रायपुर AIIMS में करीब साल भर तक नौकरी करने वाले मेडिसीन विभाग के एक डॉक्टर ने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि अभी वे नोटिस पीरियड पर हैं. लिहाजा उन्होंने अपनी पहचान जाहिर ना करने की शर्त पर 'आजतक' को बताया कि उनके साथी डॉक्टर सिर्फ इसलिए नौकरी छोड़ कर जा रहे हैं क्योंकि सरकार ने AIIMS की स्थापना तो कर दी. लेकिन उसका हाल-चाल जानने के लिए फिर कभी पलट कर नहीं देखा. इस डॉक्टर के मुताबिक मामला सरकार की इच्छा शक्ति से जुड़ा है. जब सरकार डाक्टरों और स्टाफ की नियुक्ति करने में रूचि नहीं दिखाएगी तो आखिर क्यों डॉक्टर ऐसे संस्थान में काम करेंगे. उनके मुताबिक मामला सिर्फ वेतन का नहीं है. जॉब संतुष्टि भी कोई चीज होती है.
ऑपरेशन के लिए केवल मिलती है तारीख
यहां एक और डॉक्टर ने 14 महीने कार्यकाल के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उनके मुताबिक AIIMS मैनेजमेंट और सरकार के रवैये से ना तो मरीज संतुष्ट हैं और ना ही वे. उन्होंने बताया कि बेहद सिमित संसाधनों के चलते मरीजों को ऑपरेशन के लिए डेट पर डेट देना पड़ता है. कई बार तो ऐसी नौबत आ जाती है कि कई मरीजों को बैरंग ही लौटाना पड़ता है. फिलहाल AIIMS रायपुर में 800 डॉक्टरों में से मात्र 100 डाक्टर ही तैनात हैं. इनमें से 27 डॉक्टर नोटिस पीरियड पर हैं. अच्छे संस्थानों से उन्हें ऑफर लेटर का इंतजार है. कई डाक्टरों ने तो दूसरे संस्थानों में भर्ती होने के लिए अपना इंटरव्यू भी दे दिया है, उन्हें इस बात का इंतजार है कि बगैर व्यवधान के AIIMS प्रबंधन उनका इस्तीफा स्वीकार कर ले.
रायपुर AIIMS खुद बीमार
AIIMS रायपुर में एक दर्जन बड़ी इमारतों का काम अब भी जारी है, इसके चलते विभिन्न विभागों में ना तो ICU बन पाए है और ना ही वार्ड. यहां तक की कई महत्वपूर्ण विभागों में डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं हो पाई है. AIIMS में एक हजार मरीजों के भर्ती करने का बंदोबस्त है. लेकिन आधा-अधूरा निर्माण कार्य डॉक्टरों की कमी और मेडिकल इक्विपमेंट और मशीनों की कमी के चलते मुश्किल से चार सौ बेड पर ही मरीजों की मौजूदगी दर्ज होती है.
कहां जाए जनता?
रायपुर में एम्स खुल जाने से राज्य की जनता को उम्मीद थी कि अब उन्हें ना केवल अच्छा इलाज मुहैया होगा बल्कि इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों की खुली लूट से उनका बचाव होगा. लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है. एम्स में डॉक्टरों की भर्ती के बावजूद ना तो मरीजों का सही ढंग से इलाज हो पा रहा है, और ना ही डॉक्टर भी वहां टिक पा रहे हैं. नौकरी ज्वॉइन करने के चंद दिनों में ही यहां उपलब्ध डॉक्टर इस्तीफा देकर रायपुर के ही निजी अस्पतालों में नौकरी करने लगे हैं दरअसल संसाधनों की कमी और मरीजों के दबाव के चलते AIIMS रायपुर में ऐसा मौहोल ही तैयार नहीं हो पाया कि डाक्टर यहां तैनात होकर मरीजों का इलाज कर पाए. यही हाल AIIMS के मेडिकल कॉलेज का भी है. गहन चिकित्सा वाले सैकड़ों मरीज AIIMS की इन बड़ी बिल्डिंगों का दर्शन कर बैरंग लौट जाते हैं.
AIIMS प्रबंधन का अपना तर्क
यहां अस्पताल के ट्रामा सेंटर में दाखिल होते ही डॉक्टरों की सूची दर्ज है. ज्यादातर विभागों में एक मात्र डॉक्टर ही तैनात है. शेष डॉक्टरों का नाम सूची से इस लिए नदारद है क्योंकि उनकी नियुक्ति ही नहीं हो पाई. इसे लेकर AIIMS प्रबंधन का अपना तर्क है. रायपुर AIIMS के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. अजय दानी का कहना है कि यहां विभिन्न श्रेणी के डॉक्टरों के 800 पद स्वीकृत किए गए हैं. इसके अलावा AIIMS प्रशासन के संचालन के लिए विभिन्न विभागों में कर्मचारियों, टेक्नीशियन, कम्प्यूटर ऑपरेटर, बाबू, वार्ड बॉय, स्टोर कीपर, टेलीफोन अटेंडेंट और सहायकों समेत करीब 3800 कर्मचारियों का सेटअप स्वीकृत है. लेकिन वर्तमान में विभिन्न विभागों में मात्र 100 डाक्टरों की नियुक्ति हो पाई है. विभिन्न श्रेणी के करीब साढ़े चार सौ कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस और आउट सोर्सिंग के जरिये काम पर लगाया गया है, ताकि वर्तमान में संचालित सामान्य बीमारियों से ग्रषित मरीजों के चार सौ बेड पर चिकित्सा का काम सुचारु रूप से चल सके.
यहां से डॉक्टरों के जाने का सिलसिला जारी
एम्स में ICU भी सामान्य अस्पतालों की तरह है, जबकि कई उन्नत मशीनों को यहां लगाए जाने का दावा किया गया था. हृदय संबंधी बीमारियों के लिए भी कोई खास व्यवस्था नहीं हो पाई. हृदय के जटिल ऑपरेशन नहीं हो पाते, क्योंकि विशेषज्ञ डॉक्टर्स नहीं है. एम्स रायपुर में न्यूरोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन, ऑर्थोपेडिक सर्जन, सीटीवीएस सर्जन, एनिस्थियोलॉजिस्ट ने ज्वॉइनिंग दी थी. लेकिन ज्यादातर डॉक्टर चंद दिनों बाद ही एम्स का साथ छोड़कर दूसरे प्राइवेट अस्पतालों में चले गए. यही हाल प्लास्टिक सर्जरी और बर्न यूनिट में तैनात डॉक्टरों का है. दोनों यूनिट में डॉक्टरों ने ज्वॉइनिंग दी और अस्पताल का माहौल देखकर चलते बने. उन्होंने भी अपना इस्तीफा एम्स को सौंप दिया.
प्राइवेट अस्पताल जाने को मजबूर मरीज
AIIMS का हाल यह हो गया है कि प्लास्टिक सर्जरी और बर्न यूनिट में डॉक्टरों का टोटा होने से तमाम बर्न केस सीधे प्राइवेट अस्पतालों को रेफर हो रहे हैं. यही हाल हृदय रोग से लेकर कैंसर विभाग समेत दूसरे विभागों और फैकल्टीज का है. विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं होने से मरीज राम भरोसे हैं.
रायपुर में एम्स खुलने के बाद सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि सीमावर्ती राज्य झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महारष्ट्र के भी मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं. ऐसे में इस संस्थान में डॉक्टरों की मौजूदगी और यहां का माहौल बेहद मायने रखता है. फिलहाल यह तय नहीं है कि इतने वर्षों बाद भी AIIMS रायपुर में निर्माण कब खत्म होगा और कब डॉक्टरों की तैनाती पूरी तरह से हो पाएगी.
भोपाल एम्स की स्थिति और खराब
भोपाल एम्स का हालात भी कुछ पटना और रायपुर जैसा ही है. भोपाल एम्स की नींव अटल बिहारी वाचपेयी सरकार ने 2003 में रखी थी. और 2012 से ये अस्पताल मरीजों के हर इलाज के लिए चालू है. लेकिन यहां 15 जून 2015 से डायेक्टर का पद खाली पड़ा है. इसके अलावा सभी विभागों में कर्मचारियों और डॉक्टरों की भारी कमी है. अस्पताल प्रशासन के मुताबिक मंजूर 960 बेडों में 415 ही मरीजों के लिए उपलब्ध हैं.
मरीज की जुबानी भोपाल एम्स की कहानी
भोपाल एम्स की कहानी एक मरीज ने बताई. कैसे उसे ऑपरेशन के लिए भोपाल एम्स लाया गया और फिर जान बचाने के लिए उनके परिजनों को यहां से उठाकर उन्हें प्राइवेट अस्पताल ले जाना पड़ा. 49 साल की राहिसुन निशा बताती हैं कि उन्हें अगस्त 2017 में भोपाल एम्स में भर्ती कराया गया था, इस उम्मीद के साथ यहां भी दिल्ली एम्स जैसी सुविधाएं होंगी. बेहोशी की हालत में राहिसुन निशा ऑपरेशन थियेटर में दो बार ले जाया गया. लेकिन ऑपरेशन नहीं हो पाया. जिसके बाद राहिसुन के पति अशरफ ने उन्हें यहां से प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट किया, जहां उनका सही से उपचार हो पाया. एम्स की लापरवाही के खिलाफ अशरफ में प्रशासनिक विभाग से शिकायत की, जिसकी जांच कराई गई और अस्पताल ने माना कि पहली बार राहिसुन का ऑपरेशन थियेटर में इंफेक्शन की वजह से नहीं हो पाया, और फिर दूसरी बार इमरजेंसी की वजह से ऑपरेशन नहीं हो पाया. दरअसल भोपाल में इमरजेंसी और ट्रामा सेंटर अभी भी कार्यरत नहीं है.
बिल्डिंग खड़ी है केवल AIIMS के नाम
भोपाल एम्स की स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहां से इमरजेंसी मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में भेजा जाता है. क्रिटिकल इमरजेंसी से जुड़े दो विभाग सेवा में नहीं हैं और 10 विभागों में कोई फैकल्टी ही नहीं हैं. भोपाल एम्स की नई मेडिकल सुरपरिटेंडेंट मनीषा श्रीवास्ताव का कहना है जून महीने से बाकी 23 और ऑपरेशन थियेटर मरीजों के लिए उपलब्ध हो जाएंगे. यहां के लिए कुल 27 ऑपरेशन थियेटर मंजूर किए गए हैं लेकिन अभी 4 ही मरीजों के लिए उपलब्ध हैं.
मेडिकल छात्र भी बदहाली से नाराज
मरीज ही नहीं यहां से MBBS की पढ़ाई करने वाले मेडिकल छात्र भी बदहाली से नाराज हैं. उनका कहना है कि AIIMS का नाम पर वो यहां आए थे. पिछले तीन सालों में उनके साथ यहां केवल धोखा हुआ है. यहां फैकल्टी की भारी कमी है जिससे उनकी पढ़ाई पर असर पड़ा है. यही नहीं, पिछले 3 सालों से ये मेडिकल कॉलेज बिना डायरेक्टर का ही चल रहा है.