पूर्वोत्तर भारत के राज्यों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत काफी पहले से बताई जाती रही है. पूर्वोत्तर के किसी राज्य में जब हिंसा की आग भड़की हो, तो देश का चिंतित होना स्वाभाविक है. ऐसे में पूरे मामले की गहराई से पड़ताल जरूरी हो जाती है.
दरअसल, मणिपुर के चूड़चंदपुर में सोमवार रात हिंसा भड़कने के बाद कानून-व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया. मणिपुर विधानसभा में पारित 3 विधेयकों के विरोध में राज्य में भड़की हिंसा में अब तक कुल 8 लोगों की मौत हो चुकी है और कई घायल हो गए हैं. हिंसक भीड़ में जनजातीय छात्र संगठन के सदस्य भी शामिल थे, जो मणिपुर सरकार द्वारा पारित 3 महत्वपूर्ण विधेयकों का विरोध कर रहे थे. हालात बेहद तनावपूर्ण हैं.
ये हैं विवादास्पद 3 विधेयक
मणिपुर विधानसभा में पारित 3 विधेयकों पर प्रदेश में हंगामा बरपा है. तीनों विधेयक सोमवार को विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिए गए. ये रहे विधेयक...
1. मणिपुर जन संरक्षण विधेयक 2015
2. मणिपुर भू-राजस्व व भूमि सुधार (सातवां संशोधन) विधेयक, 2015
3. मणिपुर दुकान व प्रतिष्ठान (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2015
स्थानीय निवासियों के हितों की सुरक्षा मकसद
ये तीनों ही विधेयक मणिपुर में स्थानीय लोगों के संरक्षण के लिहाज से पारित किए गए हैं. इससे पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस ने 25 अगस्त को इनर लाइन परमिट सिस्टम (JCILPS) के लिए संयुक्त समिति के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, ताकि इन तीन कानूनों से राज्य के मूल निवासियों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
JCILPS पिछले करीब 3 साल से अपनी मांगें मनवाने के लिए प्रदर्शन कर रहा है. इस संगठन का कहना है कि मणिपुर में बाहरी लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है. संगठन का कहना है कि बाहरी लोग मूल निवासियों की जमीन और नौकरी ले रहे हैं.
क्यों हो रहा है विरोध
मणिपुर के जनजातीय समूह राज्य विधानसभा में पारित तीन विधेयकों का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इन विधेयकों से मणिपुर हिल पीपुल एडमिनिशट्रेशन रेग्युलेशन अधिनियम, 1947 के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं का हनन होता है, जो मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में बसने वाले जनजातीय लोगों के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था.
तनाव की मूल वजह
नया कानून बनाने की मांग मणिपुर के बहुसंख्यक मितई समुदाय ने की थी. आदिवासी समूह इसका विरोध कर रहे हैं. आदिवासियों को आशंका है कि उन्हें नए कानून का खमियाजा भुगतना पड़ सकता है. यह अलग बात है कि नया कानून बनने के बाद बाहरी राज्यों से मणिपुर आने वाले लोगों के लिए परमिट लेना जरूरी होगा.
नए कानून का क्या होगा असर
नए कानून के मुताबिक, मणिपुर में जो लोग 1951 से पहले बसे हुए हैं, उन्हें ही संपत्ति पर हक होगा. जो 1951 के बाद बसे हैं, ऐसे लोगों को संपत्ति पर कोई हक नहीं होगा. इतना ही नहीं, उन लोगों को मणिपुर से बाहर का भी रास्ता दिखाया जा सकता है. यही वजह है कि कई छात्र संगठन बाहरी लोगों के राज्य में प्रवेश, निवास व हक को नियंत्रित करने वाले बिल का विरोध कर रहे हैं.
क्या है इनर लाइन परमिट (ILP)
इनर लाइन परमिट (ILP) भारत सरकार की ओर जारी किया जाने वाल वह दस्तावेज है, जो एक सीमित अवधि के लिए एक संरक्षित या प्रतिबंधित क्षेत्र में एक भारतीय नागरिक की यात्रा की अनुमति देता है. यह दस्तावेज सुरक्षित राज्य में प्रवेश करने के लिए उन राज्यों के बाहर से आए भारतीय नागरिकों के लिए अनिवार्य है. यह अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम में एंट्री के लिए अनिवार्य है. इसे ब्रिटिश काल में लागू किया गया था. 1950 में मणिपुर क्षेत्र में इसे निरस्त कर दिया गया. मणिपुर में ILP लागू करने की मांग 1980 में उठी. करीब 30 संगठन JCILPS बना कर आंदोलन कर रहे हैं.